
उमरियापान – कितनी हसरतों से हमारे पुरखों ने आशियाने सजाए थे,ये आशियाने हमारे सुख दुःख के सहभागी थे। इनसे हमारी यादें जुड़ी थी इनके कण कण में स्नेह सुधा बरसती थी। ये आशियाने ही हमारे संसार थे पर हाय! पेट की आग ले चली हमें बहुत दूर तक, समय न मिला आज तक पीछे देखने का । आज भी ये हवेलियाँ एक नज़र पाने को तरस रही है। एक बार तो आओ बस एक बार ही सही ,इतनी भी दूरियाँ ठीक नहीं ,माना कि आप सुखी है , सम्पन्न है , समृद्धि आपके द्वार खड़ी है पर एक बार गांव तो देख लीजिए । आख़िरकर हम भी आपके पुरखों की विरासत है। आपने सोच लिया होगा हम न जाएँगे तो क्या फ़र्क़ पड़ेगा , जनाब ! बहुत फ़र्क़ पड़ता है मै गाँव में गली- गली घूमा हूँ। मैंने महसूस किया है सूनेपन के दर्द को। गलियाँ सूनी – सूनी है । पेड़ – पौधे उग आए है। हरियाली चारों तरफ छाई है ,उजड़े घर , गिरती ईंटे अपनी बर्बादियों पर,आंसू बहा रही है। देवालय भी सूने पड़े है , गाँव में बुजुर्गो का लाड़ प्यार पुकार रहा है। बचपन की उन सारी गलियों से रौनक़ ग़ायब सी हो गयी। सन्नाटा पसरा पड़ा है । कभी जिन नगर सेठों के दर पर मजमा लगा रहता था वो आज बंद पड़े है । जनाब! आपने सोच लिया होगा कि हम तो केवल शरीर ही लेकर गाँव से आए है। पर ऐसा नही है मेरे भाई! जिस दिन आप गाँव से निकले थे उस दिन आपके साथ कई और भी थे। क्या ? सोचिए तो ज़रा जनाब! आप ले गये थे उन सारे जीवन मूल्यों को जो जीवन जीने की प्रेरणा देते थे। आपके साथ वे सांस्कृतिक मूल्य भी चले गये जो गाँव को गाँव बनाते थे । गाँव ख़ाली हो गये परोपकार, शांति , ईमानदारी, सहिष्णुता जैसे मूल्यों से।आज की पीढ़ी को कौन सिखाए वो व्यापारिक कौशल जो पीढ़ियों से विरासत में मिला था। आज की पीढ़ी को कौन सिखाएँ कमाए धन का सदुपयोग कैसे करे आख़िरकार आप ही तो धन के दुर्गुण और गुणों के पारखी थे । आज के गाँव उन सारे मूल्यों से ख़ाली मुझे तो अब राग दरबारी के गाँव से भी डरावने लगने लगे है। गाँव को सूनेपन से आज़ादी मिले और गलियाँ आबाद रहे फिर से बस यही कामना है मेरी आओं अब गाँव चले।।