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कटनी जिले के ढीमरखेड़ा विकासखंड अंतर्गत शिवान्या वेयरहाउस झिन्नापिपारिया में मूंग खरीदी प्रभारी संजय पाण्डेय द्वारा साहूकारों की खरीदी गई खराब मूंग की कार्रवाई पर अधिकारियों ने साधी चुप्पी

कलयुग की कलम से सोनू त्रिपाठी की खास रिपोर्ट

कटनी/उमरियापान- जीरो टॉलरेंस के लाख प्रयास एवं मुख्यमंत्री के सख्त निर्देश के बाद भी किसानों के साथ छलावा करने का काम खत्म नहीं हो पा रहा है। मेहनत से फसल पैदा करने वाले किसान एक बार फिर से ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। दरअसल इस वर्ष हुई मूंग की खरीदी में समिति प्रबंधक संजय पाण्डेय की मिलीभगत से पहले खराब क्वालिटी की मूंग वेयर हाउस में भर दी गई और जब किसानों की मूंग खरीदी शुुरू हुई तो किसानों की अच्छी मूंग के साथ यह खराब मूंग भी खपाने की तैयारी की गई थी। मूंग खरीदी में सख्ती के कारण यह मिलीभगत काम नहीं हों पाया और अब इसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है। राज्य शासन ने हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी किसानों से समर्थन मूूल्य पर मूंग की खरीदी की थी। मूंग खरीदी का कार्य नाफेड द्वारा किया गया। इसमें सहकारी समिति के माध्यम से मूंग की खरीदी की गई। मूंग खरीदी कार्य शुरू होने से पहले ही प्रबंधक संजय पाण्डेय के द्वारा बोरी में भरवाकर, कर्मचारियो की मिलीभगत से घटिया क्वालिटी की मूंग वेयर हाउस में रखवा दिया गया। इसके बाद जब मूंग की खरीदी शुरू हुुई तो इस घटिया किस्म के मूंग को किसानोें की अच्छी मूंग के साथ खपाने की तैयारी भी थी, लेकिन नाफेड की सख्ती से यह धांधली नही हो सकी।

मूंग की ग्रेडिंग कराई जाएंगी तो कम मिलेगी

अगर शिवान्या वेयरहाउस की ग्रेडिंग की जाएंगी तो कम मूंग का आकलन निकलेगा ऐसा प्राप्त जानकारी के द्वारा बताया जा रहा है। लिहाजा सूत्रों के द्वारा बताया गया कि जमकर धांधली मूंग खरीदी में की गई हैं। कोई ज़िम्मेदार देखने वाला नही था अपने मन – मुताबिक कार्य किया गया। सरकार की मंशा अनुसार मूंग खरीदने को निर्देशित किया गया था अगर इसकी जांच की जाएं तो मानक से कम मूंग पाई जाएंगी।
वेयर हाउसिंग कारपोरेशन की होती हैं जिम्मेदारीकमीशनलगेग
समर्थन मूल्य पर मूंग तुलाईं की नोडल एजेंसी तो नाफेड हैं, लेकिन इसमें सबसे अहम जिम्मेदारी म. प्र. वेयर हाउसिंग कारपोरेशन की होती है। दरअसल ज्यादातर वेयर हाउसो में गेहूं, चने का भंडारण पहले से ही हैं। अब इन्ही वेयर हाउसों को मूंग का तुलाई सेंटर भी बनाया गया था। इन तुलाई सेंटरों के रखरखाव एवं इनके खोलने, बंद करने की जिम्मेदारी म. प्र. वेयर हाउसिंग कारपोरेशन की होती हैं। यदि इन तुलाई सेंटरों पर बिना सर्वेयर के पास किए मूंग पटकी गई तो इसमें सबसे बड़ी लापरवाही म. प्र. वेयर हाउसिंग कारपोरेशन बोरी प्रबंधक की सामने आ रही है। जब वेयर हाउसिंग कारपोरेशन द्वारा वेयर हाउसों को खोला – बंद किया जाता हैं तो फिर ये मूंग इन सेंटरों पर कैसे रखा गया जो कि संदेह के घेरे में हैं।

साहूकारों की खराब मूंग खरीदकर, लिया गया कमीशनलगेगा

जहां सरकार की मंशा अनुसार किसानों को समर्थन मूल्य के लिए आदेशित किया गया था लिहांजा प्रभारी संजय पाण्डेय के द्वारा साहूकारों के माध्यम से मूंग की खरीदी की गई। जमकर कमीशन का खेल – खेला गया। किसान अपनी मूंग तुलवाने के लिए अनेकों बार चक्कर काटता रहा लेकिन मूंग तौली नहीं गई वरन नेताओं ने केवल एक बार फोन हिला दिया तो उनकी मूंग तौल दी गई। आखिर जब खरीदी प्रभारी संजय पाण्डेय को मूंग खराब ही नेताओं की लेना था तो किसानों को क्यूं बुलाया गया। कमीशन साहूकारों से लेने के लिए अलग से बिचौलियां को रखा जाता हैं ताकि किसी प्रकार से फंस ना सके। बाद में बिचौलियां और खरीदी प्रभारी का कमीशन का हिसाब किया जाता हैं। जो मूंग संजय पाण्डेय के द्वारा ली गई हैं एक दम उसमें कचरा ही भरा हुआ है। स्मरण रहे कि लक्ष्मी के वजन के आगे सब कुछ संभव है चाहे मूंग खराब हो या अच्छी। प्राप्त जानकारी के अनुसार बारदाना भी एक दम खराब था फटी बोरियों में मूंग को रखा गया है अगर मूंग ख़राब होती हैं तो सरकार को लाखों रुपएं का चूना लगेगा।

शिवान्या वेयरहाउस को खुलवाया जाएं

प्रभारी प्रबंधक संजय पाण्डेय की मूंग जिस स्थान में रखी हुई हैं उस स्थान की मूंग को खुलवाकर आला – अधिकारियों के द्वारा चेक किया जाना चाहिए। अगर इसकी उच्च – स्तरीय जांच की जाएं तो मूंग एक दम खराब निकलेगी। प्राप्त जानकारी के अनुसार बताया जाता हैं कि प्रभारी के खुद के रजिस्ट्रेशन इतने रहते हैं जितने के खुद भूमि स्वामी नही हैं लिहाजा दूसरो से रजिस्ट्रेशन लेकर के खरीदी का क्रम आगे बढ़ाया जाता हैं। साहूकार का मायाजाल खरीदी को सजाएं रहता हैं क्यूंकि साहूकार जमकर कमीशन देते हैं। संजय पाण्डेय जिस भी खरीदी के प्रभारी नियुक्त होते हैं वहां की खरीदी ज्यादा होती हैं क्यूंकि इनके साथ में जो बिचौलियां रहता हैं उसके संबंध ज्यादा साहूकारों से हैं। साहूकार समय उपरांत ही माल लेकर खरीदी में पहुंच जाते है जिसके कारण सबसे पहले तौल कर दी जाती हैं और साहूकार के खाते में पैसा आता हैं तो उसके चेहरे में मानो खुशी नहीं समाती है। जैसे ही पैसा खाते में आता हैं बिचौलियां खुश हों जाता हैं फिर साहूकारों को मुहरा बनाकर उनके खाते से पैसे निकालकर खरीदी के खर्चे को वहन किया जाता हैं। नियमों को ताक में रखकर खरीदी की जाती हैं जो अच्छी मूंग थी उसको दिखाने के लिए एक जगह पर स्थाई रखा गया था ताकि अधिकारी आएं तो माया जाल में फंस जाएं बहरहाल खरीदी प्रभारी जब कदम आगे बढ़ाता हैं तो सारे जगहों में घूमकर खरीदी के बाद मिलेंगे के इशारे कर दिए जाते हैं, लिहांजा सोचा जा सकता है कि खरीदी प्रभारी के संबंध दूर – दराज तक हैं इसलिए जांच नहीं आती बल्कि अधिकारी पीठ- थपथपाते हैं ऐसा है लक्ष्मी के वजन का कमाल।

सर्वेयर बना मूक – दर्शक

स्मरण रहे कि जहां सर्वेयर को खरीदी में नमी, एवं अन्य नियमों की देख- रेख की जिम्मेदारी सौंपी जाती हैं लेकिन ऐसा लगता हैं जैसे सर्वेयर तो केवल नाम के लिए रखा जाता हैं बाकि खरीदी से संबंधित कार्य बिचौलियां ही कर लेता है। आखिर नियमों को ताक में रखकर सर्वेयर के द्वारा इस तरीके की धांधली करवाई जाती हैं जिससे सरकार को नुकसान का खामियाजा भुगतना पड़ सकता हैं। वेतन के आधार पर सर्वेयर को रखा जाता हैं लेकिन सर्वेयर अपनी जिम्मेदारी ना समझते हुए चंद पैसों के कारण अपने ईमान को गिरवी रखते हुए खरीदी में खरीदी प्रभारी का साथ देता हैं। लिहाजा साथ देने के कारण ख़राब मूंग को भी अच्छी बताकर ले लिया गया जिसके चलते खरीदी प्रभारी का कार्य भी आसान हों गया खराब मूंग को भी शासन को समर्थन मूल्य में बेचा गया।

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