जनपद पंचायत ढीमरखेड़ा अनेकों निर्माण कार्य हैं भ्रष्टाचार के शिकार मनरेगा के कार्यों में जमकर चालू हैं कमीशन का खेल , अनेकों ग्राम पंचायत के सरपंचों ने लगाया आरोप नहीं देते कमीशन तो बिल पास करने में करते हैं हीलाहवाली जो देते हैं कमीशन उनको जिलापंचायत तक से मिल जाते हैं काम
कलयुग की कलम से राकेश यादव
जनपद पंचायत ढीमरखेड़ा अनेकों निर्माण कार्य हैं भ्रष्टाचार के शिकार मनरेगा के कार्यों में जमकर चालू हैं कमीशन का खेल , अनेकों ग्राम पंचायत के सरपंचों ने लगाया आरोप नहीं देते कमीशन तो बिल पास करने में करते हैं हीलाहवाली जो देते हैं कमीशन उनको जिलापंचायत तक से मिल जाते हैं काम
कलयुग की कलम ढीमरखेड़ा– मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर प्रदान करना और सार्वजनिक संपत्ति का निर्माण करना है। इस योजना के तहत, जनपद पंचायत ढीमरखेड़ा की कई ग्राम पंचायतों में विभिन्न विकास कार्यों को शुरू किया गया है। हालांकि, हाल ही में कुछ ग्राम पंचायतों के सरपंचों ने आरोप लगाया है कि मनरेगा के तहत होने वाले कार्यों में कमीशनखोरी का खेल चालू है। इन सरपंचों का दावा है कि जो सरपंच कमीशन देते हैं, उनके बिल बिना किसी समस्या के पास हो जाते हैं, जबकि जो कमीशन नहीं देते, उन्हें विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है। सरपंचों का आरोप है कि उन्हें मनरेगा के तहत कार्यों के लिए भुगतान प्राप्त करने के लिए एक निश्चित प्रतिशत राशि अधिकारियों को देनी पड़ती है। अगर वे इस कमीशन को देने से इनकार करते हैं, तो उनके बिल पास करने में हीलाहवाली की जाती है। इस प्रकार, उन ग्राम पंचायतों में कार्य धीमी गति से होते हैं या बिल लंबित रह जाते हैं, जिससे मजदूरों को समय पर भुगतान नहीं हो पाता। यह समस्या केवल जनपद पंचायत स्तर तक ही सीमित नहीं है; सरपंचों का कहना है कि जिला पंचायत स्तर पर भी उन्हें इसी प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उन लोगों को प्राथमिकता दी जाती है जो कमीशन देने के लिए तैयार होते हैं। यह स्थिति न केवल विकास कार्यों में रुकावट डालती है बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में भी बाधा उत्पन्न करती है।
सरपंचों की दर्दनाक पीड़ा
मनरेगा के कार्यों में हो रही इस अनियमितता से कई सरपंच परेशान हैं। उनकी शिकायतें न केवल आर्थिक हैं, बल्कि नैतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी हैं। जब कमीशन का खेल चलता है, तो उस पैसे का भार अंततः ग्राम पंचायत के बजट पर पड़ता है। इससे पंचायत के विकास कार्यों के लिए उपलब्ध धनराशि कम हो जाती है, और काम करने की गुणवत्ता पर असर पड़ता है। सरपंचों का मानना है कि इस तरह की प्रथाएं न केवल भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती हैं, बल्कि ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ सरपंचों को भी गलत रास्ते पर चलने के लिए मजबूर करती हैं। यह ग्रामीण समाज में भ्रष्टाचार की स्वीकृति को बढ़ावा देता है और नई पीढ़ी के लिए एक गलत उदाहरण स्थापित करता है। जो सरपंच कमीशन नहीं देते, उन्हें समाज में हंसी का पात्र बनाया जाता है, और उन्हें असफल माना जाता है। यह उनके आत्मसम्मान पर चोट करता है और उन्हें समाज में हाशिए पर धकेल देता है।
सरपंच और सचिव है परेशान इनकी पीड़ा सुनने वाला नहीं है कोई
इस समस्या का समाधान केवल कानूनी और प्रशासनिक उपायों से ही नहीं, बल्कि सामाजिक जागरूकता और नैतिकता के प्रचार-प्रसार से भी हो सकता है। राज्य और केंद्र सरकारों को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए और इस प्रकार की अनियमितताओं के खिलाफ सख्त कदम उठाने चाहिए। दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए और ईमानदार सरपंचों को प्रोत्साहित करना चाहिए। ग्राम पंचायतों के लोगों को जागरूक करना जरूरी है ताकि वे समझ सकें कि कमीशन का खेल उनके विकास को रोक रहा है। उन्हें अपने अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए।
अनेकों निर्माण कार्य भ्रष्टाचार के शिकार
समाज में नैतिकता और ईमानदारी का प्रचार-प्रसार करना महत्वपूर्ण है। लोगों को यह समझने की जरूरत है कि केवल आर्थिक लाभ ही महत्वपूर्ण नहीं है; बल्कि, सामाजिक और नैतिक मूल्यों का पालन करना भी जरूरी है।मनरेगा जैसी योजनाएं ग्रामीण विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं, लेकिन जब इनमें भ्रष्टाचार और अनियमितताएं प्रवेश करती हैं, तो यह योजना अपनी मूल भावना को खो देती है। जनपद पंचायत ढीमरखेड़ा की ग्राम पंचायतों में जो कमीशनखोरी का खेल चल रहा है, वह न केवल सरपंचों के लिए, बल्कि पूरे ग्रामीण समाज के लिए चिंता का विषय है




