मध्यप्रदेश

ढीमरखेड़ा क्षेत्र में फर्जी व कम पढ़े लिखे पत्रकारों की भरमार, बोलकर लिखने की कला और ब्लैकमेलिंग करने में महारत हासिल

कलयुग की कलम से रामेश्वर त्रिपाठी की रिपोर्ट

उमरियापान- कटनी जिले के ढीमरखेड़ा क्षेत्र में कई ऐसे लोग हैं जो 5 वीं और 8 वीं तक की शिक्षा पूरी करने के बाद खुद को पत्रकार घोषित कर लेते हैं। इनकी पत्रकारिता का तरीका किसी भी मानक पर खरा नहीं उतरता, और इन्हें देखकर यही कहा जा सकता है कि न तो इन्हें सही ढंग से बोलना आता है, न लिखना, और न ही समझने की क्षमता होती है। ऐसे पत्रकार अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए पत्रकारिता को साधन बना लेते हैं, और धीरे-धीरे ब्लैकमेलिंग की कला में माहिर हो जाते हैं। 5 वीं और 8 वीं तक की शिक्षा प्राप्त करना किसी भी व्यक्ति की मानसिक और बौद्धिक विकास के लिए पर्याप्त नहीं होता, विशेषकर यदि वह पत्रकारिता जैसे गंभीर पेशे में शामिल होने का दावा करता है। पत्रकारिता में न केवल समसामयिक घटनाओं की गहरी समझ होनी चाहिए, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों, सरकारी नीतियों और कानूनी मुद्दों की भी व्यापक जानकारी आवश्यक होती है। जो व्यक्ति खुद सही ढंग से पढ़ा – लिखा नहीं होता, उसके पास ये आवश्यक समझ और दृष्टिकोण कहां से आएगा? ढीमरखेड़ा क्षेत्र में ऐसे कई कथित पत्रकार हैं जो न तो सही तरीके से संवाद कर पाते हैं, न ही उनके पास किसी विषय की गहन समझ होती है। जब वे अधिकारियों के पास किसी मुद्दे को लेकर जाते हैं, तो उनकी बातों का कोई सिर-पैर नहीं होता। ऐसी स्थिति में अधिकारी उनके निकलने के बाद हंसी-मजाक करते हैं और उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लेते। एक पत्रकार का काम होता है समाज की समस्याओं को सही तरीके से सामने लाना, लेकिन जब पत्रकार को खुद समस्या का पता न हो या वह उसे सही तरीके से प्रस्तुत न कर सके, तो उसका पत्रकार होना ही व्यर्थ हो जाता है।

ब्लैकमेलिंग की कला में महारत

शिक्षा और जानकारी की कमी होने पर जब व्यक्ति पत्रकार बनने का प्रयास करता है, तो अक्सर उसका उद्देश्य पत्रकारिता से समाज सेवा या जनहित के मुद्दे उठाने का नहीं, बल्कि निजी स्वार्थ साधने का हो जाता है। ढीमरखेड़ा क्षेत्र में कई ऐसे उदाहरण हैं जहां कथित पत्रकार खुद को अधिकारियों पर दबाव बनाने और उनसे निजी लाभ लेने के उद्देश्य से पत्रकारिता का इस्तेमाल करते हैं। इनके पास कोई वास्तविक जानकारी या शोध नहीं होता, लेकिन ये किसी छोटे मुद्दे को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करने की कला में निपुण हो जाते हैं। इसी प्रक्रिया में ये ब्लैकमेलिंग का सहारा लेते हैं और अधिकारी इनसे बचने के लिए इन्हें संतुष्ट करने का प्रयास करते हैं। ब्लैकमेलिंग करने वाले ये तथाकथित पत्रकार अपने स्वार्थ के लिए किसी भी मुद्दे को मोड़ सकते हैं। वे समाज के असली मुद्दों को कभी नहीं उठाते, बल्कि उन मुद्दों को ही उठाते हैं जिनसे उन्हें निजी लाभ हो सके। इनके लिए पत्रकारिता का मतलब जनसेवा या सच्चाई सामने लाना नहीं होता, बल्कि इसका उपयोग अपने लिए पैसे और सुविधाएं जुटाने के साधन के रूप में करते हैं।
*ब्लैकमेलिंग के तरीक़े अधिकारियों को भी इनसे सीखने होगे*
इन पत्रकारों के पास न तो सही भाषा का ज्ञान होता है और न ही संवाद करने की क्षमता। जब वे अधिकारियों से मिलने जाते हैं, तो उनकी बातचीत किसी विषय पर आधारित नहीं होती। वे ऐसे सवाल करते हैं जिनका न तो कोई तार्किक अर्थ होता है और न ही कोई निष्कर्ष निकलता है। अधिकारियों को इनकी बातों में कोई गंभीरता नज़र नहीं आती, और उनके जाने के बाद वे उनकी बातों पर हंसी-मजाक करते हैं। जब संवाद की क्षमता ही नहीं होती, तो पत्रकारिता का उद्देश्य भी धुंधला हो जाता है।

ढीमरखेड़ा क्षेत्र में अशिक्षा ने पत्रकारिता की तोड़ी कमर पत्रकारो में संवाद कमी

अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। एक अच्छा पत्रकार वही होता है जो सही सवाल पूछे, मुद्दों को तार्किक ढंग से प्रस्तुत करे और समाज के असली मुद्दों पर रोशनी डाले। लेकिन जब संवाद का ही अभाव हो, तो पत्रकारिता का उद्देश्य ही खो जाता है। ढीमरखेड़ा में ऐसे कई पत्रकार हैं जो खुद सही ढंग से बोल भी नहीं पाते, और जब वे किसी से बातचीत करते हैं तो उनकी बातों का कोई विशेष अर्थ नहीं होता।

झूठ बोलना कोई इनसे सीखे, अपने निजी ग्रामों में बनाएं पत्रकारिता के नाम पर रुतबा

यह भी देखा गया है कि जब ऐसे कथित पत्रकार अधिकारियों से मिलते हैं, तो उनका रवैया नकारात्मक होता है। वे अधिकारियों को प्रश्नों से घेरने का प्रयास करते हैं, लेकिन चूंकि उनके सवालों का कोई अर्थ नहीं होता, अधिकारी उनके सवालों को नज़रअंदाज कर देते हैं। अधिकारी भी समझते हैं कि ये पत्रकार केवल दबाव बनाने और ब्लैकमेलिंग के उद्देश्य से आए हैं, इसलिए वे उन्हें गंभीरता से नहीं लेते। इसके बाद, जब ये पत्रकार चले जाते हैं, तो अधिकारी उनके ऊपर हंसते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उनका संवाद स्तरहीन होता है, और उनके पास किसी भी मुद्दे की सही जानकारी नहीं होती। एक अधिकारी से बातचीत करना और किसी मुद्दे को उनके सामने प्रस्तुत करना एक कला है, जो इन पत्रकारों के पास नहीं होती। इनकी उपस्थिति अधिकारियों के लिए एक मनोरंजन का साधन बन जाती है, और इनके द्वारा उठाए गए मुद्दों को अनदेखा कर दिया जाता है।

समाज में गिरती पत्रकारिता की साख

ऐसे पत्रकारों के कारण समाज में पत्रकारिता की साख भी गिर रही है। जब पत्रकारिता जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में ऐसे लोग प्रवेश करते हैं, तो इसका प्रभाव पूरे समाज पर पड़ता है। ढीमरखेड़ा जैसे क्षेत्रों में जहां जनसंपर्क का बहुत महत्व होता है, वहां पत्रकारों से उम्मीद की जाती है कि वे समाज के असली मुद्दों को उठाएं और जनता की आवाज़ बनें। लेकिन जब ऐसे पत्रकार समाज के मुद्दों को छोड़कर निजी स्वार्थों में लिप्त होते हैं, तो उनकी विश्वसनीयता कम हो जाती है। इससे पत्रकारिता के प्रति समाज में अविश्वास पैदा होता है। लोग समझते हैं कि पत्रकारिता अब केवल ब्लैकमेलिंग और स्वार्थपूर्ति का साधन बन गई है, और असली मुद्दों पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। इससे पत्रकारिता का उद्देश्य पूरी तरह से धूमिल हो जाता है और समाज के असली मुद्दे पीछे छूट जाते हैं। ढीमरखेड़ा क्षेत्र में ऐसे कथित पत्रकारों का उदय जो केवल 5वीं या 8वीं तक पढ़े हैं, न केवल पत्रकारिता के मानकों को गिरा रहे हैं, बल्कि समाज में पत्रकारिता की साख को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं। इनका संवाद का स्तर निम्न होता है, और इनके सवालों का कोई तार्किक अर्थ नहीं होता। अधिकारियों से मिलने पर ये उन्हें प्रभावित करने के बजाय हंसी का पात्र बन जाते हैं, और इनके जाने के बाद अधिकारी इनके ऊपर हंसते हैं।इन पत्रकारों की ब्लैकमेलिंग की प्रवृत्ति और निजी स्वार्थों को साधने की कोशिशें समाज और पत्रकारिता दोनों के लिए घातक हैं। पत्रकारिता का उद्देश्य जनहित और सच्चाई को उजागर करना होता है, लेकिन जब यह स्वार्थपूर्ण हो जाती है, तो समाज को इसका नुकसान उठाना पड़ता है।

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