मध्यप्रदेश

कलम देश की बड़ी शक्ति है भाव जगाने वाली दिल ही नहीं दिमागोऺ में भी आग लगाने वाली कलेक्टर बनने का सपना देखने वाले पत्रकार बने राहुल पाण्डेय

कलयुग की कलम से राकेश यादव

कलम देश की बड़ी शक्ति है भाव जगाने वाली दिल ही नहीं दिमागोऺ में भी आग लगाने वाली कलेक्टर बनने का सपना देखने वाले पत्रकार बने राहुल पाण्डेय

ढीमरखेड़ा | कलम देश की बड़ी शक्ति हैं भाव जगाने वाली, दिल ही नहीं दिमागों में भी आग लगाने वाली ये चंद पंक्तियां बयां कर रही हैं पत्रकार राहुल पाण्डेय को, सिविल सेवा की तैयारी कर समाज की सेवा करने का मन बना लेने वाले राहुल पाण्डेय का अचानक जुड़ाव पत्रकारिता जगत से हों गया जहां कमल और लेखनी के माध्यम से क्षेत्र में तहलका मचाएं हुए हैं। राहुल पाण्डेय का कहना है कि हमेशा अपनी कलम के प्रति ईमानदार रहो अगर लग्न मेहनत से किसी भी कार्य को करते हैं सफलता जरूर मिलती हैं। कलेक्टर या अन्य कोई सेवा में चयनित होने के लिए पहले मनमें विचार करना चाहिए कि आपको किसी भी सेवा में जाना क्यूं हैं अगर आपका ध्येय पक्का हैं तो सफलता जरूर मिलती हैं सफलता एक दिन में तो नहीं लेकिन प्रयास करते रहने से एक दिन जरूर मिलती है। अगर असफलता मिलती हैं तो असफलता से घबराएं नहीं बल्कि उसमे विचार करे कि हमसे आखिर गल्ती कहां हों गई और उसमे सुधार कहां करना चाहिए वही हमारी सफलता का मूल मंत्र है। भाग्य से ज्यादा मनुष्य को कर्म में विश्वास करना चाहिए कर्म से ही भाग्य का निर्माण होता हैं अपनी गलतियों को भाग्य में नही थोपना चाहिए बल्कि जो हमारे पास संसाधन है उनका उपयोग करते हुए लक्ष्य प्राप्त करना चाहिए।

*परिवार से बड़ी सेवा कुछ नहीं*

समाज की प्राथमिक इकाई परिवार होता है, तथा इसी परिवार में सामाजिक करण की प्रक्रिया या सीखने-सिखाने की प्रक्रिया के तहत उसका विकास होता है। इस विकास प्रक्रिया में दो चीजे महत्वपूर्ण आधार रखती है- व्यक्ति की सामाजिक स्थिति, व्यक्ति की आर्थिक स्थिति। सामाजिक स्थिति में व्यक्ति का पद, रोजगार, सामाजिक निर्णय प्रक्रिया में हिस्सा, व्यक्ति की जाति, धर्म आदि तथा आर्थिक स्थिति में व्यक्ति की आर्थिक साधनों तक पहुंच, उसकी उपलब्धता तथा सम्पति तथा आर्थिक साधनों की सुनिश्चितता को सम्मिलित किया जाता है। कई अवसरों पर यह देखनों को आता है कि आर्थिक स्थिति का सशक्त होना, सामाजिक स्थिति को भी सशक्त कर देता है, परन्तु कुछ जगहों में यह प्रभाव नगण्य नजर आता है।

*वृद्धावस्था को मानव जीवन की चौथी अवस्था कहा गया है*

सांस्कृतिक, आर्थिक एंव सामाजिक परिदृश्यों में परिवर्तन आया, विशेषकर आर्थिक परिदृश्य में। बदलाव की बयार में आमजन की परिस्थितियों में भी परिवर्तन हुआ। अच्छी चिकित्सकीय सेवा, खाद्यान्न उपलब्धता, आर्थिक सुदृढ़ीकरण ने जीवन प्रत्याशा को बढ़ा दिया। समाज सेवा की सबसे अधिक जरूरत वरिष्ठ नागरिक अर्थात् वृद्धों को होती है। वृद्धावस्था को मानव जीवन की चौथी अवस्था कहा गया है। जिसमें व्यक्ति आगे देखना यानी भविष्य के सुखद सपने बुनना बंद कर देता है। भावात्मक दृष्टि से भले ही बुजुर्ग, सम्मान, श्रद्धा और आस्था के पात्र माने जाते हो लेकिन व्यावहारिक धरातल पर इन वरिष्ठ नागरिकों को अनेक तरह से कष्टों और परेशानियों से गुजरना पड़ता है। समाज सेवा में “परस्परोपग्रहोजीवानाम्“ से लेकर ’जियो और जीने दो’ का सिद्धान्त निहित रहता है। इसके अनुसार मनुष्य अपने व्यक्तिगत संतोष एवं आत्म विकास द्वारा सामाजिक रूप से सक्रिय रहकर सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर सकता है। समाज सेवा मानव जीवन को सर्वांगपूर्ण तथा सौन्दर्यमय बनाने पर बल देती है। इसके अनुसार कला एवं सौन्दर्य का अधिक से अधिक विकास होना चाहिए।

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