उमरिया पान कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर अधिकारियों से सांठगांठ कर करवाई फर्जी रजिस्ट्री ,भूमिहीन महिला फुलबाई के साथ अधिकारियों ने किया धोखाधड़ी, रजिस्ट्री को होना चाहिए शून्य घोषित ,फुलबाई को मिलना चाहिए न्याय पीड़िता ने तहसीलदार से लेकर कलेक्ट्रेट जनसुनवाई में जाकर लगाई गुहार
कलयुग की कलम से राकेश यादव

उमरिया पान कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर अधिकारियों से सांठगांठ कर करवाई फर्जी रजिस्ट्री ,भूमिहीन महिला फुलबाई के साथ अधिकारियों ने किया धोखाधड़ी, रजिस्ट्री को होना चाहिए शून्य घोषित ,फुलबाई को मिलना चाहिए न्याय पीड़िता ने तहसीलदार से लेकर कलेक्ट्रेट जनसुनवाई में जाकर लगाई गुहार
कलयुग की कलम उमरिया पान -भारत के संविधान में प्रत्येक नागरिक को सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार प्राप्त है। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में खेती जीवन का आधार है। किन्तु जब कोई निर्धन, भूमिहीन महिला वर्षों की मेहनत के बाद एक बंजर भूमि को उपजाऊ बनाती है, और फिर कोई दबंग व्यक्ति उस पर कब्जा करने का प्रयास करता है, तो यह केवल भूमि विवाद नहीं, बल्कि सामाजिक, नैतिक और संवैधानिक मूल्यों पर सीधा आघात होता है। फुलबाई ने तहसीलदार उमरिया पान को आवेदन देकर जांच की मांग की एवं कटनी कलेक्टर की जनसुनवाई में भी आवेदन देकर न्याय की गुहार लगाई है।



खून पसीने की कमाई को कब्जाधारी ने बनाया निशाना
प्रार्थिनी फुलबाई एक भूमिहीन महिला हैं, जिनके पास कोई आधिकारिक भूमि स्वामित्व नहीं था। उन्होंने अपने परिवार के भरण-पोषण हेतु ग्राम पंचायत बम्हनी के करौदी हल्के में खसरा नंबर 94 से लगी बंजर जमीन को 15 वर्षों पूर्व खेती लायक बनाया। यह कार्य न केवल उनकी मेहनत और जीवटता का प्रमाण है, बल्कि एक सामाजिक संदेश भी है कि महिला सशक्तिकरण केवल नीति-निर्माण से नहीं, बल्कि ज़मीनी संघर्ष से भी संभव है। फुलबाई ने जिस बंजर भूमि को उपजाऊ बनाया, उस पर उन्होंने बाड़ी लगाई, फलदार वृक्ष लगाए जो अब चार वर्ष के हो चुके थे, और सतत कृषि कार्य कर अपने बच्चों का पेट पालती रहीं। यह संघर्ष नारी शक्ति, स्वावलंबन और ग्रामीण भारत की हकीकत का जीवंत चित्र है।


विवाद की उत्पत्ति, जब दबंगई और फर्जीवाड़ा हावी हो जाए
स्मरण रहें कि 27-28 जून को जब प्रार्थिनी किसी कारणवश खेत में नहीं थीं, तभी विष्णु पिता गबडू चक्रवर्ती, निवासी उमरियापान ने उनके द्वारा तैयार की गई बाड़ी को उजाड़ दिया और लगभग 10 फलदार पौधों को काट डाला। ये पौधे फुलबाई के जीवन की आशा और पूंजी थे। यह कृत्य न केवल एक महिला की आत्मनिर्भरता पर हमला है, बल्कि वन अधिनियम, भूमि अधिनियम और भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं का सीधा उल्लंघन है। इसके साथ ही, यह सामने आया है कि आरोपी विष्णु चक्रवर्ती पूर्व से ही फुलबाई पर खेती छोड़ने का दबाव बना रहा था। यह दबाव सिर्फ व्यक्तिगत नहीं, बल्कि एक पूर्व नियोजित साजिश का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य महिला के श्रम और अधिकार को कुचलकर भूमि पर कब्जा करना है।
दस्तावेजी हेराफेरी पहले का नक्शा कुछ और है वर्तमान नक्शा कुछ और ही बयां कर रहा,

सरकारी रिकॉर्ड्स में सन 2022 के पहले तक खसरा नंबर 90 पर बल्लो बाई पत्नी हल्कू आदिवासी और उनके पुत्रों के नाम पट्टे दर्ज थे। लेकिन यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि इन लोगों ने कभी उस भूमि पर कोई कृषि कार्य नहीं किया। इसके बाद वर्ष 2022 में, विष्णु चक्रवर्ती ने कुटरचित दस्तावेजों और अधिकारियों से सांठगांठ के आधार पर उस जमीन की फर्जी रजिस्ट्री अपने नाम करवा ली।अब वह न केवल जमीन पर दावा कर रहा है, बल्कि वर्षों से उसे उपजाऊ बनाने वाली फुलबाई को कानूनी और सामाजिक रूप से बेदखल करने का प्रयास कर रहा है। यह सीधे तौर पर भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 468, 471 और अधिनियम 2005 की अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दंडनीय है। यह एक बेहद चिंताजनक स्थिति है कि एक गरीब महिला, जो सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से आती है, उसके द्वारा तैयार की गई भूमि पर एक ताकतवर व्यक्ति अवैध रूप से कब्जा करता है और प्रशासन चुप बैठा रहता है।
क्या अधिकारियों को इस फर्जीवाड़े की जानकारी नहीं थी? क्या बिना सत्यापन के रजिस्ट्री कैसे हो गई? क्यों अब तक किसी ने इस महिला की शिकायत पर संज्ञान नहीं लिया? यह प्रशासन की विफलता का ज्वलंत उदाहरण है। कलेक्टर, एसडीएम, तहसीलदार और राजस्व निरीक्षक जैसे अधिकारियों की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि वे फुलबाई की बात को गंभीरता से लें और मामले की निष्पक्ष जांच कराएं।
संविधान और कानून की दृष्टि से फुलबाई को मिलना चाहिए न्याय
संविधान का अनुच्छेद 14, 15 और 21 स्पष्ट रूप से समानता, भेदभाव रहित व्यवहार और जीवन के अधिकार की बात करता है। भूमिहीनों को भूमि का पट्टा देने की नीतियां भी मध्यप्रदेश शासन में लागू हैं, जिसके तहत लंबे समय से खेती कर रहे भूमिहीनों को भूमि का अधिकार मिल सकता है। मध्यप्रदेश भू-अधिकार अधिनियम 1976, वन अधिकार अधिनियम 2006, और मनरेगा जैसी योजनाओं के अंतर्गत भूमि पर कब्जा और उपयोग को मान्यता दी जाती है, बशर्ते वह लंबे समय से किया जा रहा हो।फुलबाई की 15 वर्षों की मेहनत इस बात का प्रमाण है कि वह उस भूमि की असली हकदार हैं। यदि सरकार समय रहते इस पर ध्यान नहीं देती, तो यह न केवल एक महिला के अधिकार का हनन होगा, बल्कि ग्रामीण न्याय-प्रणाली की गंभीर विफलता भी मानी जाएगी।
फर्जी रजिस्ट्री की निष्पक्ष जांच कर तत्काल प्रभाव से उसे शून्य घोषित किया जाए
15 वर्षों से कब्जाधारित बंजर भूमि पर खेती का वैधानिक अधिकार प्रदान किया जाए। फसल, बाड़ी और वृक्षों को नष्ट करने वाले आरोपी विष्णु चक्रवर्ती पर कठोर कानूनी कार्रवाई की जाए। गरीब भूमिहीनों के अधिकार सुनिश्चित करने के लिए प्रशासनिक स्तर पर भू-प्रबंधन प्रणाली में पारदर्शिता लाई जाए। यदि उचित मुआवजा नहीं दिया गया तो संबंधित राजस्व अधिकारियों के विरुद्ध भी प्रशासनिक कार्यवाही की मांग। फुलबाई की व्यथा केवल एक महिला की पीड़ा नहीं, बल्कि हमारे समाज, हमारी प्रशासनिक व्यवस्था और हमारी न्याय प्रणाली की कसौटी है। यह देखा जाना चाहिए कि क्या एक निर्धन भूमिहीन महिला को 15 वर्षों की मेहनत के बाद भी अपना हक मिलेगा या नहीं? यदि इस मामले में न्याय नहीं होता, तो यह आने वाले समय में अनेकों फुलबाइयों के हौसले को तोड़ेगा, और दबंगई तथा फर्जीवाड़ा ही इस देश की जमीन नीति तय करेगा। इसलिए प्रशासन, जनप्रतिनिधि, समाजसेवी और जागरूक नागरिकों से अनुरोध है कि फुलबाई को न्याय दिलाने में साथ दें, ताकि भारत के संविधान की गरिमा और आमजन का भरोसा जीवित रह सके।




