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ढीमरखेड़ा विकासखंड के ग्राम पिड़रई में वन विभाग की गिरती साख, भ्रष्टाचार की बलि चढ़ा जंगल, लकड़ी तो पकड़ी जाती हैं पर कार्यवाही पर नहीं दिया जाता ध्यान

कलयुग की कलम से सोनू त्रिपाठी की रिपोर्ट

ढीमरखेड़ा- मध्य प्रदेश के कटनी ज़िले के अंतर्गत आने वाला ग्राम पिड़रई, प्राकृतिक संपदाओं से परिपूर्ण एक शांत और हरित क्षेत्र माना जाता था। यह इलाका खासकर आम के पेड़ों के लिए प्रसिद्ध रहा है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से यह गांव वन विभाग की अनदेखी और भ्रष्टाचार का गढ़ बनता जा रहा है। अवैध लकड़ी व्यापार इस कदर हावी हो चुका है कि अब यह व्यापार खुलेआम दिन – दहाड़े चलता है, और अफसोस की बात यह है कि इसके पीछे उन अधिकारियों की मिलीभगत है जिन्हें जंगलों की रक्षा के लिए नियुक्त किया गया है।

रेंजर, डिप्टी रेंजर, और पवन शर्मा की भूमिका

हाल ही में जो मामला सामने आया, वह भ्रष्टाचार की गंभीर स्थिति को उजागर करता है। ग्राम पिड़रई में आम की कीमती लकड़ी जब्त की गई थी, लेकिन यह जब्ती महज एक दिखावा बनकर रह गई। रेंजर अजय मिश्रा, डिप्टी रेंजर रामकुशल मिश्रा और कर्मचारी पवन शर्मा पर आरोप है कि उन्होंने इस मामले को रिश्वत लेकर रफा-दफा कर दिया। सूत्रों के अनुसार, लकड़ी के अवैध कटान की सूचना मिलने के बावजूद वन विभाग की टीम ने समय पर कार्रवाई नहीं की। जब ग्रामीणों के दबाव में आकर कार्रवाई की गई, तो कुछ लकड़ियां ज़ब्त तो की गईं, लेकिन न कोई एफआईआर हुई, न ही किसी दोषी पर कार्रवाई। इसके बजाय आरोप है कि दोषियों से पैसे लेकर पूरे मामले को दबा दिया गया।

ग्राम पिड़रई में वर्षों से चल रहा लकड़ी का अवैध कारोबार

यह कोई पहली बार नहीं है जब ग्राम पिड़रई में अवैध लकड़ी कटान का मामला सामने आया हो। यहां वर्षों से यह गैरकानूनी व्यापार जारी है। आम, सागौन, तेंदू और अन्य बहुमूल्य वृक्षों की कटाई कर लकड़ी का कार्य किया जाता हैं। यह काम इतना संगठित रूप से होता है कि इसकी भनक भी आम लोगों को नहीं लगती और जब लगती है, तब तक या तो गाड़ियों से लकड़ी निकल चुकी होती है या मामला पहले ही ‘सेटिंग’ के जरिए निपटा दिया गया होता है। वन विभाग के कर्मचारी इस व्यापार के संरक्षक बन चुके हैं। रात में ट्रैक्टर-ट्रॉलियों में लकड़ियां भरकर ले जाई जाती हैं और विभाग को इसकी पूरी जानकारी होने के बावजूद कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाता। यह सब बिना विभागीय संरक्षण के संभव नहीं है।

चंद नोटों की कीमत पर बिकी नैतिकता

इस पूरे मामले में सबसे शर्मनाक बात यह है कि कुछ हज़ार रुपये की रिश्वत के सामने अधिकारियों ने न केवल अपने दायित्वों को तिलांजलि दी, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों से भी उनकी हरियाली छीन ली। आम की लकड़ी, जो कई वर्षों में तैयार होती है, कुछ मिनटों में काट दी जाती है और विभाग की मिलीभगत से बाजार में खपा दी जाती है। रेंजर अजय मिश्रा और डिप्टी रेंजर रामकुशल मिश्रा जैसे अधिकारी, जिन्हें इन जंगलों की रक्षा की जिम्मेदारी दी गई थी, वही आज इन जंगलों के सबसे बड़े दुश्मन बन गए हैं। इन पर यह आरोप भी है कि यह केवल एक मामला नहीं, बल्कि ऐसा दर्जनों बार हो चुका है, जब उन्होंने अवैध कटाई पर आंखें मूंद लीं और पैसों के बदले में चुप्पी साध ली।

ग्रामीणों में आक्रोश, लेकिन डर का माहौल

ग्राम पिड़रई के जागरूक नागरिक इस मुद्दे को लेकर चिंतित हैं, लेकिन वे खुलकर कुछ कहने से डरते हैं। उन्हें डर है कि उनके खिलाफ झूठे मुकदमे दर्ज किए जा सकते हैं या उन्हें सरकारी योजनाओं से वंचित किया जा सकता है। कुछ स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जब इस मुद्दे को उठाने की कोशिश की, तो उन्हें धमकियां दी गईं। यह डर का माहौल लोकतंत्र और पारदर्शी प्रशासन की अवधारणा पर सीधा हमला है। जब ग्रामीण अपने जंगल को बचाने के लिए भी आवाज़ नहीं उठा सकते, तो यह सोचने का विषय है कि व्यवस्था किस हद तक सड़ चुकी है।

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