सुनहरे भविष्य की तलाश में दर-दर की ठोकरे खाने को मजबूर आज का युवा- संपादक राहुल पाण्डेय
कलयुग की कलम से सोनू त्रिपाठी
कटनी/ढीमरखेड़ा – पत्रकार राहुल पाण्डेय ने देश के युवा वर्ग के भविष्य को लेकर देश के भविष्य की कमजोर होती नींव को लेकर चिंता जाहिर की है। उन्होंने कहा कि पूर्व में भी प्रदेश ने व्यापम जैसे बड़े घोटाले को झेला है इस घोटाले से जुड़ी तमाम स्थिति परिस्थिति को देश- प्रदेश के युवा वर्ग उनके अभिभावक सभी ने इसका दंश झेला है फिर भी आज तक हमने कोई सार्थक प्रयास नही किया जिससे युवाओं के साथ इस तरह का खिलवाड़ न हो। आज भी जब कोई भर्ती परीक्षा आयोजित होती है तो हमारा युवा वर्ग उनके अभिभावक जो तमाम कठिनाइयों को झेलते हुए अपने बच्चे को उस परीक्षा के योग्य पढ़ा लिखाकर तैयार करता है सरकार और जिम्मेवार तंत्र की ओर बड़ी आशा भरी निगाह से देखता है उसे एक उम्मीद बनती है कि मेरा बेटा या बेटी अपने भविष्य को संरक्षित सुरक्षित करने हेतु आयोजित परीक्षा या भर्ती परीक्षा में बैठ रहा है। इसके पहले वह पिता वह अभिभावक अपने बच्चे का भविष्य संवारने के लिए सब – कुछ दाव में लगा चुका होता है यहां तक कि एक पिता अपने जीवन उपार्जन के संसाधन तक गहन रखकर एक जुआड़ी की तरह दाव तो लगा देता है लेकिन जब उस परीक्षा का रिजल्ट नही आता परीक्षा रद्द कर दी जाती है हुए भ्रष्टाचार की बदौलत मामला अदालतों की दहलीज दर दहलीज भटकता है तो उस गरीब पिता की आत्मा उसे ही कुढ़ने लगती है और वह सोचने लगता है कि मेरा निर्णय बच्चों को पढ़ाना गलत था। आज भी देश प्रदेश में तमाम भर्ती कंपटीशन की परीक्षाएं तो आयोजित होती है लेकिन उनके परिणाम नही आते ये हमारी सरकारों के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। आज देश मे नीट जैसी यूजीसी नेट जैसी महत्वपूर्ण परीक्षाएं एक के बाद एक भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रही है। बिचौलिए इन परीक्षाओं को आमदनी का जरिया बनाकर हमारे होनहारों का भविष्य नष्ट किये दे रहे है हम हाथ पे हाथ धरे बैठे है आखिर कब तक? क्या ये बिचौलिए हमारे सरकार हमारे तंत्र से ताकतवर हो गए कि हम इनके कृत्यों के सामने नतमस्तक है। कही न कही हम देश के भविष्य के प्रति सजग नही है हमारा तंत्र अपने कर्तव्यो के प्रति लापरवाह है जिसका परिणाम है कि आज हमारे सरकारों की प्रतिष्ठा दाव पर है। एक तरफ हम तमाम स्लोगनों के माध्यम से तमाम आयोजनों के माध्यम से यह बताने में नही थकते की युवा हमारे देश का भविष्य है हमारे प्रगति के नींव का पत्थर है कोई देश उतनी ही तेजी से विकास करेगा जिस देश मे युवाओं की जितनी ज्यादा संख्या में होगी फिर हम अपनी ही बातों में अमल क्यो नही करते। उसी युवा के साथ तमाम तरह के खेल – खेल जाते है जब हम अपने भविष्य पर स्वयं ग्रहण लगाएंगे अपने बुनियाद के पत्थर को कमजोर करेंगे तो फिर सुनहरे भविष्य की परिकल्पना कैसे कर सकते है ये बड़े चिंतन का विषय है जिस पर हमारी सरकारों को सजग होना पड़ेगा। आज एक गरीब पिता बेबस युवा से पूंछा जाय जो रात दिन एक करके मेहनत करता है उन परिवारों से पूंछा जाय जो उनकी उस मेहनत के पीछे संघर्ष करता है एक पिता जो एक बनियान एक माँ जो एक साड़ी में गुजारा कर अपने लाड़ले का भविष्य संवारने की जुगत करते है और जिस दिन पेपर लीक या घोटाले की वजह से परीक्षा रद्द होती है उस दिन उन सब पर क्या गुजरती होगी एक बार अगर आत्मा से सोच लिया जाय तो ये घटनाएं दुबारा हो ही नही सकती। हमारी सरकारों को भी अब यह जिम्मेवारी लेनी चाहिए कि यदि कोई परीक्षा किसी घोटाले की वजह से रद्द होती है तो उस परीक्षा के लिए किए गए खर्च की जिम्मेवारी जैसे फार्म भरने की फीस आयोजित परीक्षा केंद्र तक जाने में किया गया व्यय सरकार वहन करेगी। आज इन्ही वजहों से हमारा युवा भटक रहा है रास्ते बदल रहा है कोई परीक्षा रद्द होने पर अगर वह युवा कोई धरना प्रदर्शन करता है आंदोलन करता है तो पुलिस उसपर लाठियां बरसाती है उन बच्चों पर तमाम मुकदमे लाद दिए जाते है जिससे उनका भविष्य बर्बाद हो जाता है इसलिए अब आवश्यक हो चला है कि इस तरह की परीक्षाएं,भर्ती मामले में जबाबदेही तय हो जो लोग इस प्रक्रिया के हिस्सा होते है उनकी पूर्ण जवाबदेही तय हो कि अगर कुछ गड़बड़ या घोटाला हुआ तो एक्शन जिम्मेवारो पर होगा। भारत जैसे विकासशील देश में युवावर्ग को सुनहरे भविष्य की तलाश में कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इस प्रक्रिया में उन्हें सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर विभिन्न प्रकार की ठोकरे खानी पड़ती हैं।




