प्रशासनमध्यप्रदेश

सफलता की कहानी स्व-सहायता समूह से अर्चना की जिंदगी हुई खुशहाल

कलयुग की कलम से राकेश यादव

सफलता की कहानी स्व-सहायता समूह से अर्चना की जिंदगी हुई खुशहाल

कलयुग की कलम कटनी – विकासखंड ढीमरखेड़ा के ग्राम इमलिया की निवासी अर्चना हल्दकार ने आजीविका मिशन से जुड़कर न केवल अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को मजबूत किया, बल्कि गाँव की अन्य महिलाओं के लिए भी एक मिसाल कायम की है। वर्तमान में सुधरी माली हालत की वजह से अब अर्चना स‍परिवार खुशहाल जिंदगी बसर कर रही है।

सामान्य परिवार की अर्चना का परिवार पारंपरिक खेती पर निर्भर था। इससे परिवार का गुजारा मुश्किल से हो पाता था। वर्ष 2020 में अर्चना को एक स्‍थानीय गैर-सरकारी संस्था के माध्यम से ‘स्मिता स्व-सहायता समूह’ के बारे में जानकारी मिली। जिसके बाद अर्चना इसकी सदस्य बन गई। शुरुआत में बचत से केवल छोटी-मोटी जरूरतें ही पूरी हो पाती थीं।

आजीविका मिशन के कर्मचारियों ने समूह को मिशन की योजनाओं की जानकारी दी  एवं ‘पंचसूत्रों’ के बारे में बताया। अर्चना ने आर्थिक मदद मिलने पर आजीविका गतिविधि शुरू करने का निश्‍चय किया।

्छह महीने तक पंचसूत्रों का पालन करने के बाद, समूह को मिशन से 12 हजार रूपये का चक्रीय कोष (रिवाल्विंग फंड) मिला। अर्चना ने इस फंड से ऋण लेकर आंतरिक लेन-देन शुरू किया। इसके बाद समूह को 1 लाख रूपये की सीसीएल की राशि प्राप्त हुई। इस राशि से 30 हजार रूपये का ऋण लेकर अर्चना ने पारंपरिक खेती की जगह एस.आर.आई. विधि से धान की फसल लगाई, जिससे उन्हें अच्छा मुनाफा हुआ।

अगले साल, ब्लॉक टीम की सलाह पर, उन्होंने गेहूँ के साथ राई की फसल भी लगाई और कृषि की आधुनिक तकनीकों को अपनाया। इससे उनकी पैदावार और आय दोनों में वृद्धि हुई। अर्चना ने अपने घर के आँगन में पोषण वाटिका भी लगाई, जिससे उनके परिवार को साल भर जैविक सब्जियाँ मिलती रहीं। अतिरिक्त सब्जी बेचकर उन्हें अलग से आय भी होने लगी। इन सभी गतिविधियों से उनके परिवार की मासिक आय बढ़कर 15 हजार से 18 हजार रूपये तक पहुँच गई।

अर्चना ग्राम और संकुल स्तरीय संगठनों की बैठकों में सक्रिय रूप से भाग लेती थीं। यहीं उन्हें सीआरपी ड्राइव के बारे में पता चला। उन्होंने समूह गठन करने की इच्छा जताई, जिसके बाद उन्हें ब्लॉक स्तर पर प्रशिक्षण दिया गया। अपने उत्कृष्ट संवाद कौशल के कारण, अर्चना ने अपने और आसपास के गाँवों में 15 स्व-सहायता समूह बनाए। इससे उनकी पहचान ‘सीआरपी दीदी’ के रूप में बनी और उनका सामाजिक दायरा बढ़ा।

वर्तमान में अर्चना मोबाइल के माध्यम से सर्वेक्षण का काम भी करती हैं, जिससे उन्हें अतिरिक्त आय होती है। पहले वह घरेलू खर्चों और बच्चों की शिक्षा के लिए अपने पति पर निर्भर थीं, लेकिन अब वह खुद अपने परिवार की आर्थिक जरूरतों को पूरा कर रही हैं। अब वह इमलिया गाँव की अन्य महिलाओं के लिए एक प्रेरणास्रोत हैं।

Related Articles

Back to top button