मध्यप्रदेश

इंदौर जिला प्रशासन की रिपोर्ट में खुलासा, 200 करोड़ की जमीन लुटवाने में नौ तहसीलदार दोषी, जानें पूरा मामला

कलयुग की कलम से रामेश्वर त्रिपाठी की रिपोर्ट

इंदौर- 27 साल पहले बेशकीमती जमीन की जिला कोर्ट में एकतरफा बिक्री हुई, लेकिन उसे बचाने जिमेदारों ने प्रयास नहीं किए। लगातार हार के बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील स्वीकृत हुई। शासन को अब दोषियों पर कार्रवाई करनी है। इसे लेकर जिला प्रशासन ने एक रिपोर्ट तैयार की है, जिसमें नौ तहसीलदारों को दोषी माना है। उनमें से अधिकांश सेवानिवृत्त हो गए हैं।
कबीटखेड़ी के सर्वे नंबर 113 की चार एकड़ जमीन की कीमत 200 करोड़ रुपए से अधिक है। इसे बचाने जिला प्रशासन सुप्रीम कोर्ट में संघर्ष कर रहा है। 1997 में जिला कोर्ट ने पन्नालाल व भगवान प्रजापत के नाम पर डिक्री कर दी। 2003 में अपील की गई, लेकिन विलंब क्षमा के पांच हजार रुपए नहीं भरने से प्रशासन केस हार गया। 2021 में सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी, जिसमें दोषियों की विभागीय जांच व कार्रवाई का हवाला देने पर याचिका स्वीकार हुई।
प्रशासन ने 1996 से 2003 तक के तहसीलदारों को दोषी माना है। तर्क है, 1997 में एकतरफा डिक्री होने के बाद अपील की चिंता नहीं की। 6 साल बाद जब कोर्ट ने 5 हजार का क्षमा शुल्क जमा कर केस चलाने की मंजूरी दी तो पैसे जमा क्यों नहीं कराए गए? शुरुआत के छह साल में घोर लापरवाही हुई, जिसके लिए तत्कालीन तहसीलदार दोषी हैं।
कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट ने पूछ लिया कि दोषियों पर क्या कार्रवाई हुई? तब खुलासा हुआ कि ऐसी कोई जांच शुरू ही नहीं हुई। इस पर कोर्ट ने सचिव स्तर के अधिकारी से जवाब मांग लिया है कि विलंब के लिए दोषी अफसर कौन हैं और क्या कार्रवाई की गई?
कार्रवाई नहीं हुई तो क्या कारण हैं? सुप्रीम कोर्ट में शपथ-पत्र पर जानकारी देने के लिए जिला प्रशासन ने रिपोर्ट तैयार कर ली है, जो शासन को सौंपी जाएगी, ताकि कोर्ट में तारीख से पहले कार्रवाई हो जाए।o

तहसीलदार इसलिए दोषी

जिला प्रशासन ने 1996 से 2003 तक के तहसीलदारों को दोषी माना है। तर्क है कि कोर्ट में केस लगने के बाद ध्यान नहीं दिया गया। 1997 में एक तरफा डि₹ी होने के बाद अपील की चिंता नहीं की। छह साल बाद जब कोर्ट ने 5 हजार का क्षमा शुल्क जमा कर केस चलाने की मंजूरी दी तो पैसे जमा क्यों नहीं कराए गए? शुरुआत के छह साल में घोर लापरवाही हुई, जिसके लिए तत्कालीन तहसीलदार दोषी हैं।

ये तहसीलदार दोषी

1997 से 2000 डीएस शर्मा, अरुण रावत, मनोरमा कोष्ठी, राजीव श्रीवास्तव, ओपी पगारे, रजनीश श्रीवास्तव होने के बाद तीन साल बाद पहली अपील 2000 में की।)
2003 वि₹म सिंह गेहलोत व अशोक व्यास। (न्यायालय के निर्देश पर 5 हजार अर्थदंड जमा जमा नहीं किया, जिससे प्रथम अपील निरस्त हो गई।)

बच गए बड़े अफसर

अपर कलेक्टर गौरव बैनल ने 1996 से 2008 तक पदस्थ तहसीलदार, 2007 से 2018 तक मल्हारगंज, जूनी इंदौर और सेंट्रल कोतवाली एसडीओ व 2018 से 2024 तक अपर कलेक्टरों की सूची मांगी थी। इसके अलावा 1996 से 2022 तक जेसी शाखा के प्रभारी अपर कलेक्टरों की भी जानकारी तलब की थी। इस हिसाब से 27 अधिकारियों की जानकारी कोर्ट को भी दी गई थी। प्रथम जांच रिपोर्ट में मात्र नौ तहसीलदारों को ही दोषी माना गया है।

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