संतान प्राप्ति और दीर्घायु की कामना के लिए महिलाओं ने रखा संतान सप्तमी व्रत भगवान शिव-पार्वती का पूजन कर अपने परिवार के मंगल की प्रार्थना की।
कलयुग की कलम से राकेश यादव

संतान प्राप्ति और दीर्घायु की कामना के लिए महिलाओं ने रखा संतान सप्तमी व्रत भगवान शिव-पार्वती का पूजन कर अपने परिवार के मंगल की प्रार्थना की।
कलयुग की कलम उमरिया पान -धार्मिक आस्था और परंपराओं के अनुरूप शनिवार को संतान सप्तमी का पर्व बड़े ही श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया गया। इस अवसर पर कटनी, स्लीमनाबाद, उमरियापान, ढीमरखेड़ा, सिलौडी सहित आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं ने संतान की प्राप्ति एवं संतान की दीर्घायु की कामना करते हुए संतान सप्तमी का व्रत रखा। जगह-जगह महिलाओं ने सामूहिक रूप से एवं घर-घर परंपरा के अनुसार भगवान शिव-पार्वती का पूजन कर अपने परिवार के मंगल की प्रार्थना की।
अलसुबह से दिखा उत्साह
सुबह सूर्योदय से पहले ही महिलाएं स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण कर तैयार हो गईं। घरों के आंगन और चौक को गोबर व गेरू से लीपकर पवित्र बनाया गया। चौक पूरने के बाद महिलाएं आसन जमाकर बैठीं और भगवान शिव-पार्वती की मूर्ति या चित्र की पूजा की तैयारी की। पूजा सामग्री में चंदन, अक्षत, धूप, दीप, नैवैद्य, सुपारी, नारियल, रोली, फूल-माला आदि का उपयोग किया गया। महिलाओं ने घरों पर पंडितों को बुलाकर विधि-विधान से पूजन कराया।
पूजन का महत्व और धार्मिक आस्था
पंडितों ने पूजा कराते हुए बताया कि संतान सप्तमी का व्रत पुत्र की दीर्घायु और परिवार के सुख-समृद्धि के लिए विशेष महत्व रखता है। जिन दंपतियों को संतान नहीं होती, वे भी संतान की प्राप्ति की कामना से यह व्रत करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि यह व्रत करने से संतान की रक्षा होती है और जीवन में संतान सुख प्राप्त होता है।पूजा विधान में विशेष रूप से चांदी की चूड़ी का उपयोग किया जाता है। महिलाएं पूजन में चांदी की चूड़ी रखकर उसका पूजन करती हैं और बाद में स्वयं अपने हाथों में धारण करती हैं। मान्यता है कि यह चूड़ी संतान सुख और संतान की लंबी आयु का आशीर्वाद देती है।
21 पुए बनाने की परंपरा
इस व्रत की एक विशेष परंपरा है – महिलाएं बिना नमक के 21 पुए बनाती हैं। इनमें से सात पुए अपने पुत्र को, सात पुए पंडित को दानस्वरूप तथा शेष सात पुए अपने पति अथवा अन्य परिजनों को देती हैं। इस परंपरा के पीछे मान्यता है कि यह दान-पुण्य संतान के लिए मंगलकारी होता है। कई महिलाएं अपनी पुत्रियों के लिए भी यह व्रत करती हैं और परिवार के हर बच्चे की दीर्घायु की कामना करती हैं।
संतान सप्तमी का धार्मिक महत्व
हिंदू धर्मग्रंथों में संतान सप्तमी का व्रत अत्यंत फलदायी माना गया है। कथा के अनुसार एक समय रानी वर्मिला को संतान सुख प्राप्त नहीं हो रहा था। उन्होंने संतान सप्तमी का व्रत रखकर भगवान शिव-पार्वती की पूजा-अर्चना की, जिसके बाद उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। इसी विश्वास से प्रेरित होकर आज भी महिलाएं यह व्रत करती हैं।यह व्रत विशेषकर भाद्रपद मास की शुक्ल सप्तमी को किया जाता है। धार्मिक आचार्यों का मानना है कि इस दिन किया गया व्रत संतान के जीवन में आने वाले कष्टों को दूर करता है और उसके अच्छे स्वास्थ्य, दीर्घायु और सफलता का आशीर्वाद प्रदान करता है।
सामूहिक पूजन ने बढ़ाई श्रद्धा
गांव-गांव में महिलाओं ने सामूहिक रूप से पूजन कर व्रत की परंपरा निभाई। सामूहिक पूजा से धार्मिक वातावरण और भी पवित्र हो उठा। महिलाएं एक-दूसरे को संतान सप्तमी के महत्व और परंपराओं की जानकारी भी देती नजर आईं। इस अवसर पर घर-घर भक्तिमय वातावरण रहा और आंगनों से मंत्रोच्चार गूंजते रहे।
परिवार और समाज में विश्वास का प्रतीक
संतान सप्तमी केवल धार्मिक आस्था ही नहीं बल्कि परिवार और समाज में विश्वास का प्रतीक भी है। यह पर्व मातृत्व की भावनाओं को सशक्त करता है और संतान के भविष्य को लेकर माता-पिता की गहरी ममता और चिंता को दर्शाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह पर्व केवल धार्मिक परंपरा ही नहीं बल्कि सामाजिक एकता का भी उदाहरण प्रस्तुत करता है।
आस्था और परंपरा का संगम
संतान सप्तमी का पर्व एक ओर जहां महिलाओं की आस्था को प्रकट करता है, वहीं दूसरी ओर भारतीय परंपराओं की गहराई और धार्मिक जीवनशैली को भी सामने लाता है। इस व्रत से यह संदेश मिलता है कि संतान सुख मानव जीवन का अनमोल उपहार है और उसकी रक्षा व मंगल की प्रार्थना हर माता का परम कर्तव्य है।




