जांच की आड़ में फुटकर मेडिकल संचालक हो रहे परेशान, झोलाछाप डॉक्टरों पर क्यों नहीं कार्रवाई? बी. एम. ओ. संदेह के घेरे में
कलयुग की कलम से राकेश यादव

जांच की आड़ में फुटकर मेडिकल संचालक हो रहे परेशान, झोलाछाप डॉक्टरों पर क्यों नहीं कार्रवाई? बी. एम. ओ. संदेह के घेरे में
कलयुग की कलम उमरिया पान– प्रशासन द्वारा इन दिनों मेडिकल स्टोर्स संचालकों पर लगातार जांच की कार्रवाई की जा रही है। दवा दुकानों पर तरह-तरह के निर्देश दिए जा रहे हैं जिनमें यह भी शामिल है कि केवल रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट ही रजिस्टर्ड डॉक्टरों के प्रिस्क्रिप्शन पर दवाइयां बेचें। पालन न करने पर लाइसेंस रद्द करने और दंडात्मक कार्रवाई की चेतावनी दी जा रही है, लेकिन सवाल यह उठता है कि जब गांव-गांव में बिना डिग्री, बिना ड्रग लाइसेंस के झोलाछाप डॉक्टर खुलेआम इलाज और दवा विक्रय कर रहे हैं, तो उन पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं होती? न जांच, न जवाबदेही। ग्रामीण इलाकों में यही झोलाछाप डॉक्टर मरीजों का शोषण कर रहे हैं और यह सब शासन-प्रशासन की जानकारी में होने के बावजूद चलता रहता है।
*किराना दुकानों पर भी बिक रही दवाइयां*
यह भी हैरानी की बात है कि कई किराना और जनरल स्टोर्स पर भी बिना बिल और बिना लाइसेंस के दवाइयां खुलेआम बेची जा रही हैं। लेकिन इस पर प्रशासन की निगाह नहीं जाती। वहीं दूसरी ओर, लाइसेंसधारी मेडिकल संचालकों को बार-बार जांच और कागजी कार्रवाई के नाम पर परेशान किया जा रहा है।
*ग्रामीण इलाकों में डॉक्टरों का अभाव*
ज्यादातर शासकीय अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी रहती है। जो डॉक्टर पदस्थ हैं, वे अक्सर ड्यूटी से अनुपस्थित रहते हैं या महज औपचारिक उपस्थिति दिखाकर चले जाते हैं। ऐसे में ग्रामीण जनता मजबूरी में झोलाछाप डॉक्टरों की शरण में जाती है जो बिना किसी योग्यता के इलाज करते हैं।
*प्रशासन जवाब देने से बच रहा*
सवाल यह भी उठता है कि जब ग्रामीण क्षेत्रों में रजिस्टर्ड डॉक्टर ही नहीं हैं, तो वहां मेडिकल स्टोर्स को जारी लाइसेंस का औचित्य क्या है? और जनता को वैध इलाज कैसे मिलेगा? इस दिशा में न स्वास्थ्य विभाग कुछ स्पष्ट बता रहा है, न जिला प्रशासन कोई ठोस कदम उठाने को तैयार है। ऐसा प्रतीत होता है कि जांच और नियम पालन की कार्रवाई केवल फुटकर दवा विक्रेताओं तक सीमित है, जबकि असल समस्या ग्रामीण चिकित्सा अव्यवस्था को नजरअंदाज किया जा रहा है।
 
				 
					
 
					
 
						


