रायल्टी की जगह काट रहे टोकन शासन को लगा रहे करोड़ों का चूना पहले शारदा घाट को बर्बाद किया अब दूसरे घाटों में भी रेत माफियाओं का कहर जारी मूकदर्शक बनकर बैठा प्रशासन, कार्यवाही नहीं होने के कारण धड़ल्ले से हो रहा रेत का अवैध उत्खनन
कलयुग की कलम से राकेश यादव

रायल्टी की जगह काट रहे टोकन शासन को लगा रहे करोड़ों का चूना पहले शारदा घाट को बर्बाद किया अब दूसरे घाटों में भी रेत माफियाओं का कहर जारी मूकदर्शक बनकर बैठा प्रशासन, कार्यवाही नहीं होने के कारण धड़ल्ले से हो रहा रेत का अवैध उत्खनन
कलयुग की कलम ढीमरखेड़ा -तहसील अंतर्गत अनेकों नदियों के घाटों में रेत माफियाओं का कहर जारी है। माफियाओं के द्वारा पहले तो पहरूआ स्थित शारदा घाट पर दो-दो जेसीबी मशीन लगातार अवैध रूप से रेत का उत्खनन किया गया जबकि खनिज विभाग के द्वारा यह घाट स्वीकृत ही नहीं किया गया था बावजूद इसके रसूख के दम पर रेत माफियाओं के द्वारा शारदा घाट की संपूर्ण रेत निकालने के बाद अब दूसरे रेत घाटों से धड़ल्ले से रेत की निकासी की जा रही है जिससे एक ओर तो शासन को आर्थिक क्षति हो रही है तो वही दूसरी तरफ खनिज संपदा का भी दोहन किया जा रहा है।

रेत माफियाओं के द्वारा दर्जनों घाटों से बिना अनुमति रेत का अवैध खनन किया जा रहा है लेकिन प्रशासन का अमला इस तरह से अंजाम बैठा हुआ है जैसे उन्हें रेत माफियाओं के कारनामों की जानकारी ही न हो। ढीमरखेड़ा क्षेत्र के विभिन्न गांवों दशरमन, महादेवी, दतला, बम्हौरी, सगवा, लालपुर, जिर्री, बड़ौदा और कुदरा में रेत माफिया खुलेआम अपना साम्राज्य चला रहे हैं। इन क्षेत्रों में प्रतिदिन सैकड़ों ट्रैक्टर-ट्रॉली बिना रॉयल्टी के रेत निकाल कर ले जाते हैं। यह कार्य रात के अंधेरे में नहीं, बल्कि दिनदहाड़े होता है, जैसे किसी वैध उद्योग की तरह। रॉयल्टी की आड़ में फर्जी टोकन जारी किए जा रहे हैं, जिनका न तो खनिज विभाग से कोई संबंध है और न ही प्रशासन से। यह टोकन महज एक लूट का जरिया बन गया है। रेत माफियाओं के द्वारा दिन दहाड़े रेत का अवैध उत्खनन कर परिवहन किया जा रहा है लेकिन रेत माफियाओं के ये कृत्य न तो खनिज विभाग, राजस्व विभाग, पुलिस को नहीं दिखते है।

दो मासूम बच्चों की मौत के बाद भी नहीं रूका अवैध काम
ग्राम जिर्री की घटना इस पूरे तंत्र की संवेदनहीनता को उजागर करती है। आनंद यादव और चाहत यादव नामक दो मासूम बच्चों की मौत रेत माफिया की लापरवाही के चलते हुई। आरोप है कि एक रेत कंपनी का ट्रैक्टर पीछा करते हुए आया, जिससे घबराकर ट्रॉली पलट गई और दोनों बच्चों की जान चली गई। परिजनों ने विलायतकला रोड पर शव रखकर घंटों तक रास्ता जाम किया, न्याय की मांग की, लेकिन न कोई कार्रवाई हुई, न माफिया पर शिकंजा कसा गया। चाहत की मां का विलाप आज भी प्रशासन के कानों तक नहीं पहुंच सका।
कहां है प्रशासन? हर जगह रेत माफिया
सवाल उठता है कि आखिर प्रशासन क्यों चुप है? तहसील, खनिज विभाग, पुलिस मौन हैं। क्या यह मिलीभगत का नतीजा है या डर का? कई बार ग्रामीणों द्वारा शिकायती आवेदन, ज्ञापन और प्रदर्शन किए गए लेकिन नतीजा सिफर रहा। यह न केवल प्रशासनिक असफलता है, बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था पर करारा तमाचा भी है।
गांव-गांव में अवैध रेत खनन रोजाना सैकड़ों ट्रॉली
जिन गांवों में खनन की अनुमति नहीं है, वहां से भी रेत का उत्खनन हो रहा है। खासकर बम्हौरी और दशरमन जैसे इलाकों में रेत पॉइंट न होने के बावजूद, नदियों का दोहन जोरों पर है। सरकार को करोड़ों का नुकसान हो रहा है, लेकिन माफिया की जेबें भर रही हैं। यह सब कुछ पुलिस और प्रशासन की नाक के नीचे हो रहा है।
ग्रामीणों से टोकन के नाम पर लूट
रेत कंपनी द्वारा ट्रैक्टर ट्रॉली मालिकों से 2000 से 2500 रुपये प्रति ट्रॉली वसूले जा रहे हैं। यह रकम न तो शासन के खाते में जाती है और न ही कोई वैध दस्तावेज दिया जाता है। ट्रॉली मालिकों को जब रॉयल्टी की मांग करते हैं तो धमकाया जाता है, मारपीट की जाती है और गुंडागर्दी की जाती है। यह सबकुछ बताते हैं कि क्षेत्र में कानून का नहीं, बल्कि माफिया का राज है।
महंगी रेत बेचकर लूट रहे आमजनों को
जिस रेत को ग्रामीण पहले उचित दाम पर ले आते थे, अब उसे कई गुना अधिक दाम पर खरीदना पड़ रहा है। इसका सीधा असर निर्माण कार्यों पर पड़ रहा है। मकान बनवाना, शौचालय निर्माण, कुआं खनन या अन्य कोई भी कार्य महंगा हो गया है। गरीब और मजदूर वर्ग सबसे अधिक प्रभावित हो रहा है। जहां लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि होती है, वहीं ढीमरखेड़ा में रेत माफिया सर्वोपरि है। अधिकारी मूक दर्शक बने हुए हैं, और जनप्रतिनिधि इन मुद्दों पर चुप्पी साधे हुए हैं। सवाल यह है कि क्या सरकार की “जीरो टॉलरेंस नीति” सिर्फ कागजों में है? क्या प्रशासनिक तंत्र पूरी तरह माफिया के सामने घुटने टेक चुका है? ढीमरखेड़ा तहसील में रेत माफिया का यह आतंक केवल एक अवैध कारोबार नहीं, बल्कि लोकतंत्र और जनहित पर सीधा हमला है। जिस दिन दो बच्चों की जान गई, उस दिन यह स्पष्ट हो गया था कि माफिया अब किसी भी हद तक जा सकते हैं। अब समय आ गया है कि प्रशासन, शासन, और समाज मिलकर इस समस्या के खिलाफ एकजुट हो। अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब ढीमरखेड़ा पूरी तरह माफिया के अधीन हो जाएगा और शासन नाम की चीज केवल किताबों और कागजों तक सीमित रह जाएगी।




