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कटनी जिले में गूंजा गोवर्धन पूजा का उल्लास: ग्वालों ने किया पारंपरिक दीवारी नृत्य, गांव-गांव में छाया भक्ति और भाईचारे का माहौल सनातन परंपरा से जुड़ा है गोवर्धन पूजा का इतिहास

कलयुग की कलम से राकेश यादव

कटनी जिले में गूंजा गोवर्धन पूजा का उल्लास: ग्वालों ने किया पारंपरिक दीवारी नृत्य, गांव-गांव में छाया भक्ति और भाईचारे का माहौल सनातन परंपरा से जुड़ा है गोवर्धन पूजा का इतिहास

कलयुग की कलम उमरिया पान – दीपों का पर्व दीपावली इस वर्ष भी जिले के शहर से लेकर गांव तक उल्लास, परंपरा और आपसी सद्भाव के प्रतीक रूप में मनाया गया। दीपावली के अगले दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाने वाला गोवर्धन पूजा और दीवारी नृत्य इस पर्व का विशेष आकर्षण रहा। जिले के स्लीमनाबाद, उमरियापान, ढीमरखेड़ा, खमतरा, दशरमन, सिलौंडी, पथरौला, चोपन, खितौली सहित अनेक ग्रामों में ग्वालों की टोलियों ने पारंपरिक वेशभूषा में सजधजकर गोवर्धन पर्व की पूजा की और दीवारी नृत्य करते हुए पूरे क्षेत्र को भक्ति और आनंद से भर दिया।

सनातन परंपरा से जुड़ा है गोवर्धन पूजा का इतिहास

हिंदू धर्म में गोवर्धन पूजा का विशेष धार्मिक महत्व है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र द्वारा कराई जा रही अंधाधुंध वर्षा से वृंदावन वासियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा उंगली पर उठाया था, तभी से इस दिन को गोवर्धन पूजा के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई। यह पर्व न केवल प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का प्रतीक है, बल्कि यह मनुष्य और गौमाता के बीच गहरे संबंध का भी प्रतिरूप है।

इस अवसर पर यदुवंशी समाज और गौपालक समुदाय विशेष रूप से भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हुए गांव-गांव में गोवर्धन पर्वत का प्रतीक रूप बनाकर पूजा-अर्चना करते हैं। गोबर से निर्मित पर्वत के रूप में गोवर्धन की रचना की जाती है और उसके चारों ओर परिक्रमा करते हुए श्रद्धालु सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।

दीपावली की अमावस्या से शुरू हुई दीवारी की धूम

कटनी जिले के गांवों में दीपावली पर्व केवल एक दिन का नहीं होता, बल्कि यह परंपरा कार्तिक अमावस्या से प्रारंभ होकर कई दिनों तक चलती है। अमावस्या की रात्रि में यदुवंशीय समुदाय द्वारा “छाहुर बांधने” की परंपरा निभाई जाती है। इस अनुष्ठान में ग्राम के देवी-देवताओं को जागृत करने और आगामी दिनों में ग्राम की रक्षा करने की कामना की जाती है।

इसके अगले दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गांव के गोरैया बाबा या खेरापति देवता स्थान पर गोवर्धन पूजा का आयोजन किया जाता है। गौमाता की पूजा के साथ ग्रामीण अन्न, दूध, दही, गन्ना और अन्य कृषि उत्पाद अर्पित करते हैं। पूजा के बाद गांव में पारंपरिक दीवारी नृत्य की शुरुआत होती है।

गांव-गांव में गूंजा ढोल-मृदंग का स्वर

स्लीमनाबाद, उमरियापान, ढीमरखेड़ा, खमतरा, दशरमन और सिलौंडी जैसे ग्रामों में सुबह से ही उत्सव का माहौल रहा। ग्वालों की टोलियां पारंपरिक परिधान पहनकर, सिर पर पगड़ी और कंधे पर गेरुआ अंगोछा धारण किए, ढोल और मृदंग की थाप पर नृत्य करते दिखाई दिए। युवाओं के साथ बुजुर्ग भी इस दीवारी नृत्य में बढ़-चढ़कर शामिल हुए।

नाचते-गाते ग्वालों की ये टोलियां जब गांव की गलियों से होकर निकलीं, तो वातावरण में भक्ति, उल्लास और लोक संस्कृति की सुगंध फैल गई। शोभायात्रा के रूप में निकले इन ग्वालों ने गायों की पूजा कर एक-दूसरे को दीपावली और गोवर्धन पूजा की शुभकामनाएं दीं।

दीवारी नृत्य: लोक संस्कृति का अमूल्य धरोहर

दीवारी नृत्य केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि यह मध्यप्रदेश की ग्रामीण संस्कृति की जीवंत झलक है। माना जाता है कि यह नृत्य भगवान श्रीकृष्ण के ग्वाल सखाओं द्वारा किए गए उस उल्लासपूर्ण नृत्य की याद दिलाता है, जब उन्होंने इंद्र के अहंकार को तोड़ा और ब्रजवासियों की रक्षा की।

आज भी यदुवंशी समाज इस परंपरा को जीवित रखे हुए है। नृत्य के दौरान ‘डोर’ और ‘मृदंग’ जैसे पारंपरिक वाद्य बजाए जाते हैं, और सामूहिक स्वर में “गोवर्धन धराधारी, जय श्रीकृष्ण मुरारी” जैसे भक्ति गीत गाए जाते हैं। यह नृत्य गांव के हर द्वार पर जाकर सम्पन्न होता है, जिससे सभी ग्रामीण इस उल्लास का हिस्सा बनते हैं।

भाईचारे और सामाजिक एकता का संदेश

दीवारी पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं, बल्कि यह समाज में एकता, सहयोग और सद्भाव का प्रतीक भी है। इस दौरान गांव के सभी वर्ग और समुदाय एक साथ मिलकर पूजा-अर्चना करते हैं और दीपावली के पर्व को सामूहिकता के साथ मनाते हैं। बच्चे, युवा और महिलाएं सभी इस पर्व की तैयारियों में योगदान देते हैं।

इस अवसर पर ग्रामीण क्षेत्रों में गौशालाओं और मंदिरों की विशेष सजावट की गई, दीपों की रोशनी से सजे घर और गलियां देखने लायक थीं।

समापन पर गांव में बंटा प्रसाद और खुशी का माहौल

पूजन और नृत्य के उपरांत गांव के प्रमुख स्थानों पर प्रसाद वितरण किया गया। लोगों ने एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर दीपावली और गोवर्धन पूजा की बधाइयां दीं। बच्चों में विशेष उत्साह देखा गया, वहीं बुजुर्गों ने इसे अपनी संस्कृति की पहचान बताते हुए नई पीढ़ी से इस परंपरा को आगे बढ़ाने का आह्वान किया।

इस तरह कटनी जिले के प्रत्येक गांव में गोवर्धन पूजा और दीवारी नृत्य ने दीपावली के उत्सव को और भी भव्य बना दिया। भक्ति, संगीत, नृत्य और एकता से सराबोर यह पर्व आज भी मध्यप्रदेश की ग्रामीण संस्कृति की आत्मा को जीवंत बनाए हुए है।

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