हरितालिका तीज पर निर्जला व्रत रखकर महिलाओं ने पति की लंबी आयु व सौभाग्य की कामना की उमरिया पान, ढीमरखेड़ा, कटनी व ग्रामीण क्षेत्र सहित आसपास के गाँवों में सुबह से ही महिलाओं और कन्याओं का उत्साह देखने लायक था।
कलयुग की कलम से राकेश यादव

हरितालिका तीज पर निर्जला व्रत रखकर महिलाओं ने पति की लंबी आयु व सौभाग्य की कामना की उमरिया पान, ढीमरखेड़ा, कटनी व ग्रामीण क्षेत्र सहित आसपास के गाँवों में सुबह से ही महिलाओं और कन्याओं का उत्साह देखने लायक था।
कलयुग की कलम उमरिया पान -सावन-भादो के पावन संयोग में आने वाला हरितालिका तीज पर्व इस बार बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। क्षेत्र की महिलाओं ने मंगलवार को निर्जला व्रत रखकर पूरे दिन-रात रतजगा किया और भगवान शिव-पार्वती की पूजा-अर्चना कर अपने पति की लंबी आयु, अखंड सौभाग्य तथा पारिवारिक सुख-समृद्धि की कामना की। उमरिया पान, ढीमरखेड़ा, कटनी ग्रामीण क्षेत्र सहित आसपास के गाँवों में सुबह से ही महिलाओं और कन्याओं का उत्साह देखने लायक था।

क्यों मनाई जाती है हरितालिका तीज?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, हरितालिका तीज व्रत का संबंध भगवान शिव और माता पार्वती से जुड़ा हुआ है। कथा के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। पार्वती जी की सखियों ने उन्हें हरि (हरकर ले जाना) और तालिका (सखी) के सहयोग से उनके मायके से निकालकर जंगल में ले जाकर तपस्या करने का अवसर दिया। तभी से इस व्रत का नाम हरितालिका पड़ा। इस दिन महिलाएँ माता पार्वती के इसी तप को स्मरण करती हैं और शिव-पार्वती के मिलन का पूजन कर अपने वैवाहिक जीवन की मंगल कामना करती हैं।

इस पर्व का विशेष महत्व यह भी है कि यह व्रत केवल महिलाएँ ही करती हैं। विवाहित महिलाएँ अपने पति की लंबी आयु और अखंड सौभाग्य के लिए तथा अविवाहित कन्याएँ योग्य पति की प्राप्ति के लिए यह व्रत रखती हैं। यह व्रत निर्जला उपवास के साथ किया जाता है, जिसमें न तो जल ग्रहण किया जाता है और न ही भोजन।
व्रत की विधि
हरितालिका तीज की पूजा प्रातःकाल स्नानादि के पश्चात शुरू होती है। महिलाएँ नए या साफ-सुथरे वस्त्र धारण कर सोलह शृंगार करती हैं। मिट्टी या बालू से भगवान शिव-पार्वती और गणेश जी की मूर्तियाँ बनाई जाती हैं। पूजा में बेलपत्र, धतूरा, आक के पुष्प, सुहाग की सामग्री, फल-फूल और मिष्ठान चढ़ाए जाते हैं। पूरे दिन निर्जला उपवास रखने के बाद रात्रि भर जागरण और भजन-कीर्तन किए जाते हैं। अगले दिन प्रातः कथा सुनकर, दान-दक्षिणा देकर व्रत का समापन किया जाता है।
धार्मिक और सामाजिक महत्व
हरितालिका तीज व्रत न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक और पारिवारिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह पर्व नारी के त्याग, श्रद्धा और अपने पति व परिवार के प्रति समर्पण का प्रतीक है। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से वैवाहिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती है और परिवार पर आने वाली विपत्तियाँ टल जाती हैं। अविवाहित कन्याओं के लिए भी यह व्रत विशेष फलदायी माना गया है।
स्थानीय स्तर पर आयोजन
उमरिया पान व ढीमरखेड़ा क्षेत्र में इस बार हरितालिका तीज बड़े धूमधाम से मनाई गई। मंदिरों में दिनभर श्रद्धालुओं की भीड़ रही। मंगल भवन, शिव मंदिर और ग्राम पंचायत प्रांगण में महिलाओं ने सामूहिक रूप से भगवान शिव-पार्वती का पूजन किया। महिलाओं ने पारंपरिक लोकगीत गाए, भजनों के माध्यम से शिव-पार्वती का स्मरण किया और रातभर रतजगा कर व्रत कथा का श्रवण किया।
गाँव की गलियों में सजी-धजी महिलाएँ जब समूह में गीत गाते हुए मंदिर पहुँचीं तो वातावरण भक्तिमय हो उठा। कई जगह महिलाओं ने अखंड दीप प्रज्वलित कर रात्रि जागरण किया। युवतियों ने भी माता पार्वती की आराधना कर योग्य वर प्राप्ति की प्रार्थना की।
व्रती महिलाओं की आस्था
व्रत करने वाली महिलाओं का कहना था कि यह व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं, बल्कि यह उनके परिवार के सुख-समृद्धि और पति की दीर्घायु के प्रति गहरी आस्था का प्रतीक है। निर्जला व्रत कठिन जरूर है, परंतु शिव-पार्वती की कृपा पाने के लिए यह तपस्या सुखद अनुभूति देती है।
तीज और संस्कृति
हरितालिका तीज भारतीय संस्कृति में नारी शक्ति के तप, त्याग और विश्वास की अनूठी मिसाल है। यह पर्व इस बात को भी दर्शाता है कि नारी अपने परिवार के सुख और पति के मंगल के लिए किसी भी कठिनाई को सहने के लिए तत्पर रहती है। इस व्रत का उद्देश्य केवल धार्मिक आस्था नहीं, बल्कि पारिवारिक बंधन को मजबूत करना और समाज में स्त्रियों की श्रद्धा-भक्ति को प्रतिष्ठित करना भी है।
समापन इस प्रकार हरितालिका तीज पर्व उमरिया पान, ढीमरखेड़ा और आसपास के क्षेत्रों में महिलाओं ने बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया। निर्जला व्रत रखकर रातभर जागरण करने वाली व्रती महिलाओं ने भगवान शिव-पार्वती से अखंड सौभाग्य और पति की लंबी आयु की कामना की। इस दौरान गाँवों में धार्मिक उत्साह, भक्ति और सांस्कृतिक उमंग का अनोखा संगम देखने को मिला।




