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कटनी जिले में धूमधाम से मनाया गया रक्षाबंधन एवं कजलियों का पर्व–बहनों का प्रेम, भाइयों का स्नेह और कजलियों की लोक परंपरा ने बढ़ाई खुशियों की रौनक

कलयुग की कलम से राकेश यादव

कटनी जिले में धूमधाम से मनाया गया रक्षाबंधन एवं कजलियों का पर्व–बहनों का प्रेम, भाइयों का स्नेह और कजलियों की लोक परंपरा ने बढ़ाई खुशियों की रौनक,

कलयुग की कलम उमरिया पान -जिले में इस वर्ष रक्षाबंधन और कजलियों का पर्व पूरे हर्ष और उल्लास के साथ मनाया गया। पर्व की सुबह से ही गाँव और कस्बों में एक विशेष रौनक देखने को मिली। हर घर में सजे-धजे थाल, रंग-बिरंगे राखियों के पैकेट, मिठाइयों की खुशबू और पारिवारिक मिलन का उल्लास वातावरण में घुला हुआ था। बहनों ने अपने भाइयों की कलाई पर राखी बाँधकर उनके दीर्घायु, सुख और समृद्धि की कामना की, वहीं भाइयों ने भी बहनों को उपहार स्वरूप प्रेम और आशीर्वाद भेंट किया।

इस अवसर पर उमरियापान, ढीमरखेड़ा, सिलौड़ी और आसपास के ग्रामीण अंचलों में विशेष उत्साह देखा गया। गाँव-गाँव में सुबह से ही लोग अपने रिश्तेदारों और मित्रों से मिलने निकल पड़े। नन्हे-मुन्ने बच्चों के चेहरे पर भी त्यौहार को लेकर अपार उत्साह था। लड़कियाँ रंग-बिरंगे परिधान पहनकर, माथे पर तिलक सजाकर, हाथ में थाल लिए अपने भाइयों की प्रतीक्षा कर रही थीं।

रक्षाबंधन का महत्व और सांस्कृतिक परंपरा

रक्षाबंधन भारतीय संस्कृति का एक ऐसा पर्व है, जो भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को और भी मजबूत बनाता है। इस दिन बहनें भाई की कलाई पर रक्षा-सूत्र बाँधकर उसे अपने प्रेम, स्नेह और विश्वास का प्रतीक देती हैं, और भाई भी जीवन भर उसकी रक्षा करने का संकल्प लेता है। कटनी जिले में इस पर्व को न केवल पारिवारिक स्तर पर, बल्कि सामुदायिक और सामाजिक रूप से भी मनाया जाता है। कई जगहों पर सामूहिक राखी बंधन समारोह आयोजित किए गए, जहाँ विद्यालयों, सामाजिक संगठनों और स्वयंसेवी संस्थाओं ने सैनिकों, पुलिसकर्मियों, बुजुर्गों और समाज के सेवाभावी व्यक्तियों को राखी बाँधकर उनका सम्मान किया।

कजलियों का पर्व – लोक परंपरा और उत्सव का संगम

रक्षाबंधन के दूसरे दिन शाम को कजलियों का पर्व भी बड़े उत्साह के साथ मनाया गया। यह पर्व विशेष रूप से ग्रामीण अंचलों में लोक परंपरा का प्रतीक माना जाता है। कजलियां सावन माह में बोए गए जौ या अन्य हरी फसलों के पौधों का प्रतीक होती हैं, जिन्हें बहनें और महिलाएं विशेष विधि से तैयार करती हैं। ये कजलियां रक्षा-सूत्र की तरह ही एक-दूसरे के साथ अपनापन और भाईचारे का संदेश देती हैं।

दूसरे दिन शाम को, ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों में लोग चिन्हित घाटों पर एकत्र हुए। घाटों पर भजन-कीर्तन और पारंपरिक गीतों की गूंज से वातावरण भक्तिमय हो उठा। कजलियों का जल में विसर्जन करने के बाद, लोग एक-दूसरे को कजलियां भेंट करते हुए सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। इस आदान-प्रदान की प्रक्रिया में प्रेम, आशीर्वाद और पारस्परिक सहयोग की भावना झलकती है।

गाँवों में त्योहार की झलक

उमरियापान: यहाँ सुबह से ही बाजार में भीड़ उमड़ पड़ी। मिठाई की दुकानों पर रासगुल्ला, बर्फी, लड्डू और गुलाब जामुन खरीदने वालों की लाइनें लगीं। राखियों के स्टॉल पर बच्चों की चहक और खरीददारी का जोश देखते ही बन रहा था।

ढीमरखेड़ा: कस्बे में रक्षाबंधन और कजलियों का उत्सव सामूहिक रूप से मनाया गया। यहाँ एक विशेष कार्यक्रम में गाँव की बुजुर्ग महिलाएं बच्चों को कजलियों की परंपरा और उसके धार्मिक महत्व के बारे में बता रही थीं।

सिलौड़ी: यहाँ शाम को घाटों पर कजलियों के विसर्जन के बाद नृत्य-गीत का आयोजन हुआ, जिसमें युवाओं और बच्चों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया।

नन्हे-मुन्नों का उत्साह

बच्चों के लिए यह पर्व एक आनंदमय अवसर था। लड़कियाँ अपने छोटे भाइयों को राखी बाँधकर खुशी से झूम रही थीं, जबकि लड़के उपहार पाने के बाद खिलखिला उठते थे। विद्यालयों में भी बच्चों ने विशेष कार्यक्रमों के माध्यम से रक्षाबंधन का महत्व सीखा।

सामाजिक सौहार्द का संदेश

कटनी जिले में रक्षाबंधन और कजलियों के पर्व ने न केवल पारिवारिक रिश्तों को मजबूत किया, बल्कि सामाजिक एकता और भाईचारे को भी बढ़ावा दिया। सभी जाति और वर्ग के लोग एक-दूसरे के घर जाकर बधाई देते रहे, जिससे यह संदेश गया कि त्योहार केवल रीति-रिवाज नहीं, बल्कि एक-दूसरे से जुड़ने और प्रेम बढ़ाने का अवसर हैं।

कलयुग की कलम परिवार की ओर से सभी पाठको को रक्षाबंधन एवं कजलियां पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

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