प्रशासनमध्यप्रदेश

कटनी जिले में वर्षों से कलेक्टर दर पर कार्यरत श्रमिक संविदा एवं स्थायीकरण से वंचित, शासनादेशों के बावजूद अनदेखी

राहुल पाण्डेय की कलम

कटनी जिले में वर्षों से कलेक्टर दर पर कार्यरत श्रमिक संविदा एवं स्थायीकरण से वंचित, शासनादेशों के बावजूद अनदेखी

कटनी । स्कूल शिक्षा विभाग के अंतर्गत राज्य शिक्षा केन्द्र भोपाल एवं जिला शिक्षा केन्द्र कटनी के अधीन विकासखण्डों में स्थापित जनपद शिक्षा केन्द्रों (बीआरसीसी) कार्यालयों में कार्यरत अकुशल, अर्धकुशल एवं कुशल श्रमिक पिछले डेढ़ से दो दशक से अधिक समय से कलेक्टर दर पर सेवाएँ दे रहे हैं। न्यूनतम मजदूरी पर जीवन यापन कर रहे इन श्रमिकों की सुध शासन स्तर पर समय-समय पर ली गई, किंतु जिला स्तर पर कार्यवाही अधर में अटकी हुई है। परिणामस्वरूप आज भी ये श्रमिक अपने भविष्य और अधिकारों के लिए भटक रहे हैं।
*दो दशक से जारी सेवाएँ, फिर भी उपेक्षा*
वर्ष 2003 में राज्य शिक्षा केन्द्र भोपाल के पत्र क्रमांक रा.गां.शि.मि./2003/1448 दिनांक 4 अप्रैल 2003 की कंडिका 2.2.6 के अनुसार जिला शिक्षा केन्द्र कटनी सहित प्रदेश भर में जनपद शिक्षा केन्द्रों में भृत्य पद पर अकुशल एवं अर्धकुशल श्रमिकों की नियुक्तियाँ की गई थीं। नियुक्ति के बाद से अब तक उनकी सेवाएँ निरंतर जारी हैं। कई कर्मचारी 15 से 20 वर्षों से अधिक समय से अपनी सेवाएँ दे रहे हैं, लेकिन उन्हें संविदा या स्थायीकरण का लाभ नहीं मिल पाया।
*शासन के स्पष्ट आदेश, जिलों में हुई कार्यवाही*
मध्यप्रदेश शासन सामान्य प्रशासन विभाग मंत्रालय, भोपाल ने 7 अक्टूबर 2016 को पत्र क्रमांक एफ 05-1/2013/1/3 के जरिए “स्थायी कर्मियों को विनियमित करने की योजना” लागू की थी। इसके तहत प्रदेश के कई जिलों में दैनिक वेतनभोगी श्रमिकों को संविदा अथवा स्थायीकरण का लाभ प्रदान किया गया। कटनी जिले में भी इस संबंध में जानकारी संकलित की गई, लेकिन वर्षों बीत जाने के बाद भी यहाँ कार्यवाही पूरी नहीं हो सकी।
*वरिष्ठ कर्मचारियों की अनदेखी, कनिष्ठों को संविदा पद*
सबसे बड़ा सवाल तब खड़ा हुआ जब सत्र 2020 में जिला शिक्षा केन्द्र कटनी के आदेश क्रमांक स्था./जिशिके/4022/कटनी दिनांक 9 सितंबर 2020 के तहत उन कर्मचारियों को भृत्य से लेकर लेखापाल तक के पदों पर संविदा नियुक्ति प्रदान कर दी गई, जिनकी नियुक्ति 7 से 8 वर्ष बाद हुई थी।
इन कर्मचारियों को बिना किसी विज्ञापन या परीक्षा के सीधे संविदा पद पर पदस्थ किया गया और वेतनमान भी प्रदान किया जाने लगा। जबकि उनसे कहीं अधिक वरिष्ठ, लंबे समय से कार्यरत श्रमिक कर्मचारी योजना के लाभ से वंचित रहे।
*ज्ञापन और आश्वासन तक सीमित कार्यवाही*
वंचित कर्मचारियों द्वारा 22 मई 2024 को तत्कालीन जिला परियोजना समन्वयक के.के. डहेरिया को ज्ञापन सौंपा गया था। उस समय आश्वासन दिया गया कि शीघ्र कार्यवाही की जाएगी। किंतु अपेक्षित निर्णय अब तक नहीं लिया गया।
इसके बाद 28 जुलाई 2025 को नवागत जिला परियोजना समन्वयक प्रेमनारायण तिवारी को भी कर्मचारियों ने ज्ञापन सौंपा। श्री तिवारी ने मामले की गंभीरता को समझते हुए तत्काल जिला शिक्षा केन्द्र कटनी की लेखापाल से चर्चा की। परंतु स्थायीकरण अथवा संविदा नियुक्ति न दिए जाने का कोई ठोस कारण सामने नहीं आया।
*वरिष्ठता के बावजूद वंचित क्यों?*
कर्मचारियों का कहना है कि शासन के स्पष्ट निर्देश और वर्षों की वरिष्ठता के बावजूद उन्हें बार-बार अनदेखा किया गया है। जो कर्मचारी उनकी नियुक्ति के कई वर्षों बाद पदस्थ हुए, वे संविदा का लाभ ले रहे हैं, जबकि पहले से सेवाएँ दे रहे श्रमिक अभी भी कलेक्टर दर पर मजदूरी करने को मजबूर हैं। यह न केवल अन्याय है, बल्कि शासनादेशों की भी अवहेलना है।
*श्रमिकों का संघर्ष और मांग*
कलेक्टर दर पर कार्यरत इन कर्मचारियों ने एक स्वर में कहा कि वे शासन की योजनाओं के अनुरूप संविदा अथवा स्थायीकरण का लाभ चाहते हैं। उनका तर्क है कि जब अन्य जिलों और यहां तक कि कटनी जिले के ही कई कर्मचारियों को संविदा नियुक्ति मिल चुकी है, तो उन्हें क्यों वंचित रखा जा रहा है? उनकी मांग है कि राज्य शासन तत्काल संज्ञान लेकर जिला प्रशासन को निर्देशित करे कि वरिष्ठ कर्मचारियों को भी “स्थायी कर्मियों को विनियमित करने की योजना” अथवा संविदा पद का लाभ मिले।
*न्यायोचित मांग, शासन की छवि दांव पर*
कर्मचारियों का यह भी कहना है कि राज्य शासन सदैव कर्मचारी हित में कदम उठाता रहा है और जीवन स्तर सुधारने के प्रयास करता आया है। किंतु कटनी जिले में वर्षों से कार्यरत श्रमिकों की मांगों पर ध्यान न देना शासन की छवि को धूमिल करता है। यदि समय रहते समाधान नहीं निकाला गया तो यह उपेक्षित वर्ग आंदोलन की राह भी पकड़ सकता है।
*जीवन स्तर और भविष्य की चिंता*
आज भी ये श्रमिक न्यूनतम मजदूरी पर कठिन जीवन यापन कर रहे हैं। महंगाई के इस दौर में उनकी आय इतनी कम है कि परिवार का भरण-पोषण करना मुश्किल हो गया है। बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक जिम्मेदारियाँ पूरी करना इनके लिए बड़ी चुनौती है। ऐसे में संविदा या स्थायीकरण ही उनके जीवन स्तर को सुधार सकता है और भविष्य को सुरक्षित बना सकता है।कटनी जिले के ये श्रमिक दो दशक से शासन की योजनाओं और आदेशों के बावजूद उपेक्षित हैं। जिनके बाद में नियुक्त हुए कर्मचारी संविदा पद और वेतन का लाभ ले रहे हैं, वहीं पहले से कार्यरत कर्मचारी अपने हक के लिए संघर्षरत हैं। अब देखना यह होगा कि राज्य शासन और जिला प्रशासन कब इनकी न्यायोचित मांगों पर ठोस कदम उठाता है। यदि शीघ्र निर्णय नहीं हुआ, तो यह मामला केवल कर्मचारियों के जीवन स्तर का ही नहीं, बल्कि शासन की संवेदनशीलता और कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े करेगा।

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