बरही ग्राम पंचायत का नवनिर्मित रंगमंच, सरपंचपति के तानाशाही रवैये से ग्रामीणों में आक्रोश , जनपद पंचायत ढीमरखेड़ा का मामला
संदीप तिवारी की खबर

बरही ग्राम पंचायत का नवनिर्मित रंगमंच, सरपंचपति के तानाशाही रवैये से ग्रामीणों में आक्रोश , जनपद पंचायत ढीमरखेड़ा का मामला
कटनी | जनपद पंचायत ढीमरखेड़ा के अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत बरही, विकास की दिशा में लगातार कदम बढ़ा रही है। ग्राम पंचायत स्तर पर शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता और सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएँ चलाई जा रही हैं। इन्हीं योजनाओं के अंतर्गत ग्राम पंचायत में हाल ही में एक रंगमंच का निर्माण किया गया। इस रंगमंच का उद्देश्य ग्रामीणों के लिए सांस्कृतिक, सामाजिक और शैक्षिक गतिविधियों को बढ़ावा देना था ताकि स्थानीय प्रतिभाओं को मंच मिल सके और ग्रामवासी सामाजिक कार्यक्रमों में एकजुट होकर भाग ले सकें।लेकिन, इस नवनिर्मित रंगमंच का जिस उद्देश्य से निर्माण हुआ था, आज वह उद्देश्य गौण होता दिखाई दे रहा है। रंगमंच पर ग्रामीणों के बजाय सरपंचपति का दबदबा बना हुआ है। ग्रामीणों का आरोप है कि सरपंचपति ने इस सार्वजनिक स्थल को अपनी निजी संपत्ति समझ लिया है और उसका उपयोग केवल अपने स्वार्थ और व्यक्तिगत गतिविधियों के लिए किया जा रहा है।
*नवनिर्मित रंगमंच का उद्देश्य*
रंगमंच किसी भी गाँव में सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक होता है। इसका निर्माण इसलिए किया गया था कि ग्राम के लोग धार्मिक आयोजन, सांस्कृतिक कार्यक्रम, लोकगीत-लोकनृत्य, पंचायत स्तरीय बैठकें और सरकारी योजनाओं से जुड़ी गतिविधियाँ कर सकें। यह ग्रामीण युवाओं को अपनी कला व प्रतिभा दिखाने का स्थान प्रदान करता और समाज में मेल-जोल को प्रोत्साहित करता। सरकारी अनुदान और ग्राम पंचायत की निधि से निर्मित यह रंगमंच गाँव की साझा धरोहर माना जाना चाहिए था, लेकिन इसकी स्थिति इसके विपरीत हो गई है।
*सरपंचपति का हस्तक्षेप और तानाशाही रवैया*
बरही ग्राम पंचायत की जिम्मेदारी चुनी हुई सरपंच पर है, लेकिन वास्तविकता यह है कि पंचायत की कार्यप्रणाली में सरपंचपति की पकड़ ज्यादा मजबूत है। सरपंचपति रंगमंच का उपयोग निजी समारोहों, पारिवारिक कार्यक्रमों और राजनीतिक गतिविधियों के लिए करने लगे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि जब भी गाँव में कोई सामाजिक या सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करने की बात होती है, तो अनुमति देने के नाम पर अड़चनें खड़ी कर दी जाती हैं। आम लोगों को रंगमंच इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दी जाती या फिर शर्तें इतनी कठिन बना दी जाती हैं कि लोग पीछे हट जाएँ। इस प्रकार का रवैया न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है बल्कि इससे ग्राम पंचायत की गरिमा भी प्रभावित होती है। ग्रामीणों के अनुसार, यह रवैया तानाशाही की तरह है जहाँ सार्वजनिक स्थल पर केवल एक ही परिवार का अधिकार है।
*ग्रामीणों में बढ़ता आक्रोश*
बरही ग्राम पंचायत के लोगों में इस बात को लेकर गहरा आक्रोश है। गाँव के बुजुर्गों का कहना है कि रंगमंच जनता की संपत्ति है, जिस पर हर ग्रामीण का बराबर का अधिकार है। वहीं, युवाओं का मानना है कि अगर उन्हें इस मंच तक पहुंच नहीं मिलेगी तो उनकी कला और सांस्कृतिक गतिविधियाँ दब जाएँगी। महिलाएँ भी इस मुद्दे पर खुलकर अपनी नाराज़गी जाहिर कर रही हैं। उनका कहना है कि सामाजिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों के दौरान उन्हें एक सुरक्षित और उपयुक्त स्थान की आवश्यकता होती है, लेकिन सरपंचपति द्वारा कब्जा जमाने के कारण वे अपनी इच्छानुसार कार्यक्रम आयोजित नहीं कर पा रही हैं। ग्रामीणों का आक्रोश केवल नाराज़गी तक सीमित नहीं है, बल्कि धीरे-धीरे यह असंतोष आंदोलन का रूप भी ले सकता है। यदि हालात नहीं सुधरे तो ग्रामीण पंचायत भवन और रंगमंच के बाहर विरोध-प्रदर्शन करने को मजबूर हो सकते हैं।
*लोकतंत्र और पंचायत व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न*
भारत की पंचायती राज व्यवस्था का उद्देश्य गाँव के लोगों को निर्णय लेने की स्वतंत्रता और स्थानीय संसाधनों पर उनका अधिकार देना है। सरपंच जनता द्वारा चुना जाता है ताकि वह जनता के हित में काम करे। लेकिन यदि वास्तविक निर्णय सरपंचपति लेने लगें और सार्वजनिक संपत्ति पर उनका एकाधिकार हो जाए, तो यह लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करता है। बरही पंचायत की यह स्थिति पंचायत व्यवस्था की असफलता की ओर भी इशारा करती है, जहाँ जनता के प्रतिनिधि केवल नाममात्र के होते हैं और वास्तविक सत्ता किसी और के हाथ में रहती है।
 
				 
					
 
					
 
						


