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धान की फसल में रोग और कीट का प्रकोप, किसान रहें सतर्क कृषि विभाग द्वारा किसानों के लिए एडवायजरी जारी

कलयुग की कलम से राकेश यादव

धान की फसल में रोग और कीट का प्रकोप, किसान रहें सतर्क कृषि विभाग द्वारा किसानों के लिए एडवायजरी जारी

कलयुग की कलम कटनी –जिले में गर्म मौसम, अधिक नमी और बारिश में अंतराल के कारण धान की फसल में ब्लास्ट रोग, जीवाणु पत्ती झुलसा रोग और भूरा माहू कीट का प्रकोप देखा जा रहा है। किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग ने किसानों को इन रोगों और कीटों से बचाव के लिए विशेष सलाह जारी की है।

*ब्लास्ट रोग की पहचान और नियंत्रण के उपाय*

ब्लास्ट रोग, पायरीक्यूलेरिया ओरिजे नामक फंगस के कारण होता है, इस रोग की शुरुआत पुरानी पत्तियों पर कथ्थई एवं पीले रंग के अंडाकार धब्बे के रूप में होती है। ये धब्बे बाद में बड़े होकर किनारों पर भूरे रंग के और बीच में राख जैसे भूरे रंग के हो जाते हैं, जिन्हें आँख के आकार के धब्बे भी कहते हैं। गंभीर संक्रमण में ये धब्बे तो और दानों तक फैल सकते हैं, जिससे “नेक ब्लास्ट” होता है और दाने काले पड़ जाते हैं। इस रोग के प्रबंधन हेतु संतुलित मात्रा में नाइट्रोजन उर्वरक एवं पोटाश उर्वरक का उपयोग करें। नाइट्रोजन के अधिक प्रयोग से रोग का प्रकोप बढ़ सकता है। इस रोग के नियंत्रण हेतु, ट्राईसाइक्लाज़ोल 75% WP की 120 से 150 ग्राम मात्रा को 150 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ छिडकाव करे एवं आवश्यकता अनुसार 10 से 15 दिन बाद कासुगामाइसिन 3% SL 400 मि.ली. प्रति एकड़ का पुनः छिडकाव करें। हेक्साकोनाजोल 5% एससी का 400 मिलीलीटर या Azoxystrobin + Tebuconazole का 150 से 200 ग्राम प्रति एकड़ का भी प्रयोग किया जा सकता है।

*जीवाणु पत्ती झुलसा रोग की पहचान एवं नियंत्रण के उपाय*

यह रोग जैथोमोनास ओराइजी पीवी. ओराइजी नामक बैक्टीरिया (जीवाणु) के कारण होता है। इस रोग में पत्तियों की उपरी सतह के दोनो किनारों पर कत्‍थई एवं पीले रंग की धारियाँ दिखाई देती हैं जो बाद में लंबी होकर सिकुड कर झुलस जाती है एवं भूरी-सफेद पड़ जाती हैं सुबह के समय पत्तियों पर बैक्टीरिया के पीले रंग के तरल पदार्थ की बूँदै देखी जा सकती हैं। इस रोग के फैलाव को रोकने के लिए खेत में पानी के स्तर को नियंत्रित रखें, अधिक जल जमाव से बचें एवं रोग की अवस्था में यूरिया प्रयोग न करे अन्यथा यह रोग तजी से फैलता है।

इस रोग के नियंत्रण के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% डब्ल्यूपी की 500 ग्राम मात्रा एवं स्ट्रप्टोसाईक्लिन (स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90% + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10% एसपी की 15-20 ग्राम मात्रा को प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें या कासुगामाइ‌सिन 5%+ कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% डब्ल्यूपी की 300 ग्राम मात्रा का प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। आवश्यकतानुसार 10-15 दिन बाद छिडकाव को पुनः दोहरावें।

*भूरा माहू रस चूसक कीट (बीपीएच)*

जिले में भूरा माहू कीट के प्रकोप से फसल को बचाने के लिए किसानों को सलाह दी गई है कि वह अपनी फसल का सतत देखभाल करते रहे इस कीट का प्रकोप पौधों के निचले भाग में होता है एवं उपरी सतह पर कीट का प्रकोप दिखाई नहीं देता है जल भराव वाले खेत में इस कीट के प्रकोप की ज्यादा संभावना होती है। कीट के प्रकोप की स्थिति में पतियों का व्यापक रूप से पीला पडना, भूरा होना, सूखना जो किनारो से शुरू होता है, इसका प्रकोप खेत में चकतो के रूप में दिखाई देना, जमीन के पास तनों में भूरे रंग का रस चूसक माहू कीट दिखाई देने पर नियंत्रण के उपाय अपनाये इसके लिए बारी बारी से खेतों में जल भराव करे फिर पानी को बाहर निकल दे और खेत को 3 से 4 दिनों के लिए सूखा रखें। अपनी धान फसल में माहू नियंत्रण हेतु रासायनिक दवाओं का प्रयोग करें, दवा को पौधे के नीचे तक पहुँचाना आवश्यक है। एक एकड में 150 से 200 लीटर पानी या 10 से 12 स्प्रेयर पंप (15 लीटर) के मान से छिडकांव करें। भूरा माहू से नियंत्रण के लिए कृषक पायमेट्रोजिन 50 प्रतिशत डब्लूजी 300 ग्राम/हेक्टेयर या डायनोटेफ्यूरोन 70 प्रतिशत डब्लूजी 85 ग्राम हेक्टेयर या डायनोटेफ्यूरोन 15 प्रतिशत डब्लूजी पाईमेट्रोजिन 45 प्रतिशत डब्लूजी 330 ग्राम हेक्टेयर या थायोमेथेक्जाम 25 प्रतिशत डब्लूजी 100-120 ग्राम/हेक्टेयर या इमीडाक्लोरोप्रिड 17.8 प्रतिशत एसएल 150-200 मि.ली./हेक्टेयर या फिप्रोनिल 3 प्रतिशत व्यूप्रोफेजिन 22 प्रतिशत 500 मि.ली. हेक्टेयर या ब्यूप्रोफेजिन 15 प्रतिशत एसीफेट 35 प्रतिशत 50 ग्राम/हेक्टेयर में से किसी भी एक रासायनिक दवा का प्रयोग कर धान फसल में भूरा माहू कीट से निदान पाया जा सकता है।

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