कटनी- कटनी जिले की पहचान एक समय पर शांतिपूर्ण क्षेत्र के रूप में होती थी। परंतु जब से वर्तमान पुलिस अधीक्षक (एसपी) पुलिस कप्तान अभिनय विश्वकर्मा ने कटनी की कमान संभाली है, तब से अपराधों का ग्राफ लगातार ऊपर चढ़ता जा रहा है। चारों ओर अपराधियों के हौसले बुलंद हैं चोरी, मारपीट, अवैध कारोबार, और सामाजिक असंतुलन जैसी घटनाएँ अब आम हो गई हैं। जनता यह सोचने को मजबूर है कि आखिर कटनी की कानून व्यवस्था का पहिया उल्टी दिशा में क्यों घूम रहा है? क्या वाकई अपराध पर लगाम लगाने की बजाय अब प्रशासन खुद सवालों के घेरे में है?
अपराधियों के बढ़े हौसले और जनता में भय
कटनी जिले के कई क्षेत्रों में अब यह आम चर्चा है कि अपराधी बेखौफ घूम रहे हैं। नशे का कारोबार, अवैध खनन, महिलाओं के साथ अपराध, और लूटपाट जैसी घटनाओं में लगातार इजाफा हो रहा है।
लोगों का कहना है कि पहले पुलिस की मौजूदगी मात्र से अपराधी भयभीत रहते थे, लेकिन अब स्थिति इसके बिल्कुल विपरीत है। अपराधी यह जानते हैं कि “स्थानांतरण” या “सिफारिश” से सब कुछ संभल जाएगा। ऐसे में कानून व्यवस्था का डर खत्म हो जाना स्वाभाविक है।
मटवारा कांड: सबूतों के बिना एफ.आई.आर. न्याय या अन्याय?
मटवारा कांड की बात करें तो यह मामला अब पूरे जिले में चर्चा का विषय बना हुआ है। जिस प्रकार बिना किसी ठोस सबूत के एफ.आई.आर. दर्ज की गई, वह गंभीर सवाल खड़े करता है।
कानून कहता है कि हर अपराध की जांच निष्पक्षता से होनी चाहिए, लेकिन यहां ऐसा प्रतीत होता है कि पुलिस ने जल्दबाज़ी में कदम उठाया बिना तथ्य जांचे, बिना गवाहों के बयान लिए। लोगों का कहना है कि इस मामले में जातिवाद का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखा। न्याय के तराजू में निष्पक्षता की जगह जाति का पलड़ा भारी दिखाई दिया। यही वह बिंदु है जहां जनता का विश्वास पुलिस से उठने लगता है।
बाकल थाना प्रभारी के पति का मामला शर्मनाक उदाहरण
बाकल थाना प्रभारी के पति द्वारा किए गए कृत्य ने पुलिस विभाग की छवि को और भी धूमिल कर दिया। जिस व्यक्ति का संबंध कानून व्यवस्था बनाए रखने वाले परिवार से हो, यदि वही कानून तोड़े, तो यह समाज के लिए दोहरी विडंबना है। यह घटना यह दर्शाती है कि कुछ पुलिस कर्मियों के परिजन भी “पद के प्रभाव” का दुरुपयोग करने से नहीं चूकते। ऐसे मामलों में यदि कठोर कार्यवाही न हो, तो पुलिस विभाग की विश्वसनीयता पर गहरा आघात पहुंचता है।
जनता की यह मांग बिल्कुल जायज़ है कि इस पूरे प्रकरण की उच्चस्तरीय जांच हो और दोषी चाहे कोई भी हो, उसे सज़ा मिलनी ही चाहिए।
पुलिस की भूमिका पर उठते सवाल
कटनी में पुलिस की प्राथमिक जिम्मेदारी नागरिकों की सुरक्षा है, लेकिन हालात इसके विपरीत हैं। जहां जनता को भरोसा दिलाना चाहिए था, वहां डर और असंतोष बढ़ रहा है। पुलिस पर आरोप लग रहे हैं कि वह सामाजिक या राजनीतिक दबाव में कार्य कर रही है। अक्सर देखा जा रहा है कि जिन मामलों में सच्चाई जनता के पक्ष में होती है, वहां कार्रवाई धीमी पड़ जाती है, और जहां प्रभावशाली लोगों का दबाव होता है, वहां बिजली की गति से एफ.आई.आर. दर्ज होती है।
यह दोहरा रवैया पुलिस की निष्पक्षता पर गहरा सवाल खड़ा करता है।
क्या प्रशासन को चाहिए आत्ममंथन?
किसी भी जिले की सुरक्षा व्यवस्था उस जिले के पुलिस अधीक्षक की कार्यशैली पर निर्भर करती है। अभिनय विश्वकर्मा जी से जनता को बहुत उम्मीदें थीं कि वे कटनी में कानून-व्यवस्था को सख्ती से लागू करेंगे, परंतु जमीनी हकीकत इसके उलट दिख रही है। जनता यह पूछने को मजबूर है कि जब अपराधियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने का समय आता है, तो पुलिस मौन क्यों हो जाती है? क्या “स्थानांतरण नीति” ही अब अपराध नियंत्रण का नया हथियार बन गई है?
जातिवाद और पक्षपात का बढ़ता प्रभाव
पिछले कुछ महीनों से कई घटनाओं में यह देखा गया है कि पुलिस की कार्यप्रणाली पर जातिगत पक्षपात का आरोप लग रहा है। जहां किसी विशेष वर्ग से जुड़ा व्यक्ति शामिल होता है, वहां तुरंत कार्रवाई की जाती है; और जहां कोई प्रभावशाली समुदाय से जुड़ा आरोपी होता है, वहां पुलिस नरमी दिखाती है।
यह प्रवृत्ति न केवल न्याय की भावना को कमजोर करती है, बल्कि सामाजिक एकता पर भी चोट पहुंचाती है।