मध्यप्रदेश

भ्रष्टाचार ने हर विभाग को कर दिया खोखला ढीमरखेड़ा में चल रहा कमीशन का खेल अधिकारी बन रहे लक्ष्मीपति आम आदमी हों रहा परेशान उच्च अधिकारी लेते हैं लंबी रकम छोटा पैसा लेना इनको पसंद नहीं हर विभाग में जाता हैं अवैध कार्यों में महीना वाला पैसा

कलयुग की कलम से सोनू त्रिपाठी

कटनी/उमरियापान- भ्रष्टाचार ने हमारे समाज के लगभग हर विभाग को खोखला कर दिया है। ढीमरखेड़ा जैसे ग्रामीण इलाकों में भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी का खेल निरंतर जारी है, जहाँ आम आदमी परेशान हो रहा है और अधिकारी लक्ष्मीपति बनते जा रहे हैं। प्रशासनिक तंत्र का ऐसा विकृत रूप आम आदमी के जीवन को प्रभावित कर रहा है, जिससे लोगों को अपने अधिकारों और सुविधाओं से वंचित होना पड़ रहा है। हर सरकारी विभाग में काम के नाम पर मोटी रकम वसूल की जाती है, और बिना पैसा दिए काम करवाना असंभव जैसा हो गया है।

भ्रष्टाचार की जड़ें ढीमरखेड़ा के हर विभाग में मजबूत

भ्रष्टाचार किसी भी समाज और देश की प्रगति में सबसे बड़ा अवरोधक होता है। ढीमरखेड़ा में जब किसी व्यक्ति को सरकारी काम करवाने की जरूरत होती है, तो उसे कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। हर विभाग में भ्रष्टाचार ने इस हद तक जड़ें जमा ली हैं कि बिना कमीशन दिए कोई भी काम नहीं होता। चाहे वो ज़मीन से संबंधित कोई कागज हो, या फिर सरकारी योजनाओं के तहत मिलने वाला लाभ, हर जगह कमीशन और रिश्वतखोरी का जाल बिछा हुआ है। अधिकारी छोटे-मोटे काम करने के लिए भी आम आदमी से पैसा मांगते हैं और अगर कोई व्यक्ति इसे देने में असमर्थ होता है, तो उसका काम अधूरा रह जाता है या फिर अनिश्चितकाल तक टल जाता है।

कमीशनखोरी का खेल, चरम पर

सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार का मुख्य कारण अधिकारियों द्वारा लिए जाने वाला कमीशन है। यह खेल केवल निचले स्तर के कर्मचारियों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उच्च अधिकारी भी इसमें शामिल होते हैं। वे बड़ी रकम की डील करते हैं और छोटे पैसे लेने में उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं होती। हर विभाग के अधिकारी अपनी-अपनी सीमा में काम करने वाले कर्मचारियों से मोटी रकम वसूलते हैं, और इस पैसे को ऊपर तक पहुंचाया जाता है। भ्रष्टाचार की यह कड़ी इतनी मजबूत हो चुकी है कि इसे तोड़ पाना कठिन हो गया है। अधिकारी केवल अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए काम करते हैं और आम आदमी के हितों की अनदेखी करते हैं।

अवैध कार्यों का खुला खेल

ढीमरखेड़ा में अवैध कार्यों का खेल खुलेआम चल रहा है। चाहे वो ज़मीनों की हेराफेरी हो, या फिर अवैध निर्माण, हर अवैध कार्य में सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत होती है। अधिकारियों के संरक्षण में अवैध कारोबार चलाए जा रहे हैं और इनसे मोटी कमाई की जा रही है। अवैध निर्माण से लेकर सरकारी जमीनों पर कब्जा करने तक, सब कुछ अधिकारियों की जानकारी और सहमति से हो रहा है। इसमें शामिल हर व्यक्ति को महीने के हिसाब से ‘महीना’ दिया जाता है, जिससे वे इन अवैध गतिविधियों को नज़रअंदाज़ करते रहते हैं। यह ‘महीना’ एक निश्चित रकम होती है, जो भ्रष्ट अधिकारियों को दी जाती है ताकि वे अवैध कामों पर आंख मूंद लें।

भ्रष्टाचार से प्रभावित जनता

भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा असर आम जनता पर पड़ता है। ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता क्योंकि उनकी फाइलें रिश्वत की वजह से लटकाई जाती हैं। अगर कोई किसान अपनी जमीन के दस्तावेज बनवाने जाता है, तो उसे महीने-दर-महीने चक्कर लगाने पड़ते हैं। कई बार तो किसानों की जमीनों पर अवैध कब्जा भी हो जाता है, और जब वे शिकायत करते हैं, तो उन्हें भी रिश्वत देकर ही न्याय मिलता है। ऐसी स्थिति में आम आदमी अपनी जिंदगी को कठिनाईयों में घिरा पाता है, और भ्रष्टाचार ने उनकी आशाओं को तोड़ दिया है।

उच्च अधिकारियों को चाहिए बड़ा पैसा

उच्च अधिकारी अक्सर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार में लिप्त होते हैं। उनकी नज़र छोटे-मोटे पैसों पर नहीं होती; वे बड़ी रकम लेने में दिलचस्पी रखते हैं। कई बार सरकारी ठेके, निर्माण कार्य, और अन्य बड़े प्रोजेक्ट्स में बड़े पैमाने पर घोटाले किए जाते हैं। उच्च अधिकारियों द्वारा ठेकेदारों से मोटी रकम वसूली जाती है, और काम की गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया जाता। नतीजतन, निर्माण कार्य खराब होता है, और आम जनता को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। इन घोटालों में छोटे कर्मचारियों का भी सहयोग होता है, जो कमीशन के एक हिस्से के बदले अपने अधिकारियों की मदद करते हैं।

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