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बढ़ती महंगाई का असर देखिए जो पुलिस की गाड़ी 100 में आती थी अब 112 में आने लगी दिख रहा है महंगाई का असर कोई बोलने वाला नहीं

राहुल पाण्डेय की कलम से

बढ़ती महंगाई का असर देखिए जो पुलिस की गाड़ी 100 में आती थी अब 112 में आने लगी दिख रहा है महंगाई का असर कोई बोलने वाला नहीं

कलयुग की कलम कटनी | महंगाई एक ऐसा शब्द जिसे सुनते ही आम आदमी की धड़कनें तेज़ हो जाती हैं। कभी तेल–घी की कीमतें बढ़ जाती हैं, कभी गैस सिलेंडर, कभी सब्ज़ियाँ तो कभी बिजली के बिल। आज़ादी के बाद से लेकर अब तक महंगाई एक स्थायी साथी की तरह भारतीय जनता के जीवन में मौजूद रही है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इसका असर और भी गहरा और व्यापक हो गया है। जहाँ पहले परिवार के खर्च का बड़ा हिस्सा खाने-पीने की चीज़ों पर होता था, वहीं अब शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास और रोज़मर्रा की सेवाओं में भी महंगाई ने गहरी पैठ बना ली है। महंगाई का असर सिर्फ़ जेब पर नहीं पड़ता, यह सामाजिक, मानसिक और राजनीतिक परिस्थितियों को भी प्रभावित करता है।

*महंगाई का व्यंग्यात्मक पहलू*

लोग कहते हैं कि पहले “100 नंबर” डायल करने पर पुलिस की गाड़ी आ जाती थी, अब वही गाड़ी “112” डायल करने पर आती है। देखने में यह महज़ एक तकनीकी बदलाव है, लेकिन व्यंग्य में छिपा दर्द साफ़ झलकता है। यह बदलाव मानो यह बताने के लिए काफी है कि महंगाई हर जगह अपनी पकड़ बनाए हुए है चाहे वह पेट्रोल-डीज़ल हो, मोबाइल रिचार्ज हो या फिर सरकारी सेवाएँ।यह व्यंग्य असलियत से अलग नहीं है। पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों ने आम आदमी की साइकिल से लेकर सरकार की गाड़ियों तक पर असर डाला है। पुलिस की गाड़ी हो या एंबुलेंस, सबको चलने के लिए ईंधन चाहिए। और जब ईंधन की कीमतें बढ़ती हैं, तो सरकारी खजाने से लेकर आम नागरिक की जेब तक सब पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है।

*महंगाई और आम आदमी*

महंगाई का सबसे सीधा असर आम आदमी की रसोई पर पड़ता है। दालें, जो कभी “आम” खाने की चीज़ मानी जाती थीं, अब कई घरों में “विशेष अवसर” का हिस्सा बन चुकी हैं। सब्ज़ियों की कीमतें दिन-ब-दिन बढ़ती रहती हैं आज आलू सस्ता है तो टमाटर महँगा, कल प्याज़ आसमान छूने लगेगा। दूध और तेल की कीमतें स्थायी रूप से ऊपर की ओर बढ़ रही हैं। इन सबका असर यह होता है कि मध्यवर्ग और निम्नवर्ग के परिवार अपने बच्चों की पढ़ाई, स्वास्थ्य या अन्य ज़रूरतों पर खर्च घटाने के लिए मजबूर हो जाते हैं।

*शिक्षा और स्वास्थ्य पर असर*

महंगाई ने शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी अधिकारों को भी महँगा बना दिया है। स्कूलों की फ़ीस, किताबें और यूनिफ़ॉर्म महँगी हो चुकी हैं। सरकारी स्कूलों में सुविधाओं की कमी और निजी स्कूलों में ऊँची फ़ीस के बीच आम परिवार परेशान है। स्वास्थ्य सेवाओं की बात करें तो दवाइयों से लेकर अस्पताल के बेड तक, सबकी कीमतें बढ़ रही हैं। प्राइवेट अस्पतालों के बिल आम आदमी को कर्ज़ लेने पर मजबूर कर देते हैं। इस तरह महंगाई सिर्फ़ पेट भरने की समस्या नहीं है, बल्कि जीवन की गुणवत्ता को भी प्रभावित कर रही है।

*बेरोज़गारी और महंगाई का संगम*

अगर महंगाई बढ़े और आमदनी भी उसी अनुपात में बढ़े, तो शायद लोगों को उतना फर्क न पड़े। लेकिन समस्या तब होती है जब रोज़गार की कमी और बेरोज़गारी महंगाई के साथ मिल जाती है। आज के हालात में यही देखने को मिल रहा है। नौकरियों के अवसर सीमित हैं, काम अस्थायी हो गया है और ऊपर से खर्चे लगातार बढ़ते जा रहे हैं। युवा वर्ग, जो देश का भविष्य माना जाता है, महंगाई और बेरोज़गारी के इस दोहरे दबाव में सबसे अधिक परेशान है। यही कारण है कि आज का युवा आर्थिक असुरक्षा से जूझ रहा है और उसका मनोबल टूट रहा है।

*राजनीतिक और सामाजिक असर*

महंगाई का असर राजनीति पर भी साफ़ दिखाई देता है। चुनावी घोषणाओं में हर दल महंगाई कम करने का वादा करता है। रसोई गैस, पेट्रोल-डीज़ल और बिजली के दाम चुनावी मुद्दों की तरह इस्तेमाल किए जाते हैं। लेकिन चुनाव जीतने के बाद वही महंगाई “वैश्विक कारणों” और “आर्थिक सुधारों” के नाम पर आम जनता के सिर पर लाद दी जाती है।सामाजिक दृष्टि से देखें तो महंगाई रिश्तों पर भी असर डालती है। खर्च बढ़ने से घरों में कलह बढ़ती है, परिवार टूटने लगते हैं और लोग तनाव में जीने को मजबूर हो जाते हैं।

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