उमरियापान सहित ग्रामीण अंचलों में जगह-जगह विराजमान हुए विघ्नहर्ता गणपति प्रतिमाएं श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं।
कलयुग की कलम से राकेश यादव

उमरियापान सहित ग्रामीण अंचलों में जगह-जगह विराजमान हुए विघ्नहर्ता गणपति प्रतिमाएं श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं।
कलयुग की कलम उमरिया पान -गणेशोत्सव का पर्व आस्था और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। बुधवार को पर्व के प्रथम दिन उमरियापान नगर सहित आसपास के ग्रामीण अंचलों में जगह-जगह प्रथम पूज्य विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश की प्रतिमाओं की स्थापना विधि-विधान पूर्वक की गई। घर-घर और सार्वजनिक पंडालों में आकर्षक गणेश प्रतिमाएं श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं।
उमरिया पान में झंडाचौक हनुमान मंदिर परिसर, संयासी महाराज प्रांगण, न्यू बस स्टैंड, कटरा बाजार, आजाद चौक, अंधेलीबाग, नई बस्ती, बरातरे,व्यौहार मोहल्ला सहित अनेक स्थानों पर भव्य पंडाल सजाकर गणेश प्रतिमाएं विराजमान की गई हैं। वहीं ग्रामीण अंचलों में बम्हनी महनेर, मडेरा, शुक्ला, पिपरिया, पोड़ीखुर्द और ढीमरखेड़ा सहित हर गांवों में भी श्रद्धालुओं ने उत्साहपूर्वक गणपति स्थापना कर पूजा-अर्चना प्रारंभ की है।
हर स्थान पर सुबह-शाम नियमित रूप से पूजन और आरती की जा रही है। भक्तों की भीड़ श्रद्धाभाव से गजानन की आराधना कर रही है। आयोजन समितियों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमों और भजन-कीर्तन की भी तैयारियां की गई हैं। बच्चे, युवा और महिलाएं मिलकर उत्सव में शामिल होकर सामूहिक धार्मिक वातावरण का आनंद ले रहे हैं।
गणेश प्रतिमा स्थापना का महत्व
हिंदू धर्मशास्त्रों में भगवान श्री गणेश को प्रथम पूज्य और विघ्नहर्ता कहा गया है। किसी भी धार्मिक कार्य, यज्ञ या अनुष्ठान की शुरुआत गणेश पूजन से करने की परंपरा है। मान्यता है कि गणेश जी की उपासना से जीवन के सभी विघ्न दूर होते हैं और सफलता के मार्ग प्रशस्त होते हैं।
गणेशोत्सव का पर्व खासतौर पर भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से प्रारंभ होकर दस दिनों तक चलता है। इस दौरान घरों एवं सार्वजनिक स्थलों पर गणेश प्रतिमा स्थापित कर प्रतिदिन पूजा, भजन, आरती एवं प्रसाद वितरण किया जाता है। दसवें दिन यानी अनंत चतुर्दशी को गणपति विसर्जन कर उन्हें विदा किया जाता है।
्प्रतिमा स्थापना का आध्यात्मिक महत्व यह है कि मिट्टी से बनी प्रतिमा हमें जीवन और मृत्यु के चक्र का बोध कराती है। भगवान गणेश का स्वरूप बुद्धि, विवेक, ज्ञान और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। भक्त मानते हैं कि गणपति की स्थापना से घर-परिवार में सुख-शांति, सौहार्द और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
सामाजिक एकता का पर्व
गणेशोत्सव केवल धार्मिक आयोजन ही नहीं बल्कि सामाजिक एकता और सामूहिकता का भी प्रतीक है। मोहल्लों और गांवों में सामूहिक रूप से प्रतिमा स्थापना से आपसी भाईचारा बढ़ता है और समाज में सहयोग की भावना मजबूत होती है। बच्चे जहां उत्सव से धर्म और संस्कृति का ज्ञान प्राप्त करते हैं, वहीं युवा और बुजुर्ग सामूहिक आयोजन में मिल-जुलकर परंपरा को आगे बढ़ाते हैं।नगर एवं ग्रामीण अंचलों में इन दिनों हर ओर उल्लास का वातावरण है। ढोल-ढमाकों और भजनों के स्वर वातावरण को भक्तिमय बना रहे हैं। श्रद्धालु उत्साह के साथ गजानन की सेवा और पूजन में लीन होकर धर्मलाभ अर्जित कर रहे हैं।




