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आपातकाल स्‍वर्णिम लोकतंत्र का काला अध्‍याय शासकीय तिलक महाविद्यालय में मनाया गया संविधान हत्‍या दिवस वक्‍ताओं ने व्‍यक्‍त किए विचार

कलयुग की कलम से राकेश यादव

आपातकाल स्‍वर्णिम लोकतंत्र का काला अध्‍याय शासकीय तिलक महाविद्यालय में मनाया गया संविधान हत्‍या दिवस वक्‍ताओं ने व्‍यक्‍त किए विचार

कलयुग की कलम कटनी -आपातकाल लगाये जाने के 50वीं वर्षगांठ पर शासकीय तिलक महाविद्यालय में बुधवार को आयोजित संविधान हत्‍या दिवस पर संगोष्‍ठी एवं विचार परिचर्चा का आयोजन किया किया। जो संविधान एवं लोकतांत्रिक मूल्‍यों की रक्षा हेतु जनजागरण के प्रति समर्पित रहा। संविधान हत्‍या दिवस का आयोजन उच्‍च शिक्षा विभाग, संस्‍कृति विभाग, स्‍कूल शिक्षा विभाग और जनसंपर्क विभाग के संयुक्‍त तत्‍वावधान में किया गया।

इस दौरान डिप्‍टी कलेक्‍टर विवेक गुप्‍ता, शासकीय तिलक कॉलेज के प्राचार्य सुनील वाजपेई, शासकीय कन्‍या महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. चित्रा प्रभात, लोकतंत्र सेनानी और बड़ी संख्‍या में उनके परिजन, प्राध्‍यापक डॉ. के के मिश्रा, माधुरी गर्ग और डॉ. रूक्‍मणी प्रताप सिंह सहित जिले के विभिन्‍न कॉलेजों से आये हुए प्राचार्य, प्राध्‍यापक और छात्र-छात्रायें मौजूद रहे।

इस मौके पर महाविद्यालय परिसर में संविधान के काला दिवस पर आधारित जीवंत सचित्र प्रदर्शनी भी लगाई गई थी। जो लोगो के जनाकर्षण का केन्‍द्र रही। इसके अलावा चलचित्र प्रदर्शित कर आपात काल लगाये जाने के हालातों और स्थितियों की सूचनापरक जानकारी भी प्रदान की गई।

इस अवसर पर शासकीय कन्‍या महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. चित्रा प्रभात ने अपने उद्बोधन में आपातकाल के 21 माह की अवधि के दौरान लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस दौरान अभिव्यक्ति की आजादी पर बंदिश लगाते हुए समाचार पत्रों तक के प्रकाशन पर रोक लगाई गई। वहीं राजनीति शास्‍त्र के विभागाध्‍यक्ष के के मिश्रा ने कहा कि आपातकाल वास्तव में संविधान हत्‍या के प्रयास का दौर था। कार्यक्रम को वंदना मिश्रा, प्रबुद्ध पुरबार और पारस जैन ने भी संबोधित किया।

वक्‍ताओं ने कहा कि 25 जून 1975 से 31 मार्च 1977 तक करीब 21 माह के कालखंड में देश में आपातकाल रहा। इस दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री ने अपने राजनीतिक स्‍वार्थ के लिए न केवल संवैधानिक संस्‍थाओं का दुरूपयोग किया। इसलिए इसे लोकतंत्र के लिए काला दिन माना जाता है और इस आपातकाल का विरोध करने वाले नेताओं को जिन्‍होंने लोकतंत्र की रक्षा के लिए संघर्ष किया वास्‍तव में वह स्‍वाधीनता संग्राम में क्रांतिकारियों द्वारा किए गये संघर्ष और बलिदानियों की याद दिलाता है। आपातकाल के संघर्ष में जिन देशभक्‍तों ने अपना योगदान दिया, उसी का यह प्रतिफल है कि आज दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र सुरक्षित है।

इस कार्यक्रम में जिला श्रम अधिकारी केबी मिश्रा, सहायक आयुक्‍त सहकारिता राजयशवर्धन पुनील और परियोजना अधिकारी जिला पंचायत कमलेश सैनी भी मौजूद रहे।

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