उमरिया–पान ग्राउंड रिपोर्ट चंदौल जलाशय की टूटी नहर से सिंचाई पर संकट—कानूनी दांव–पेंच में फंसे किसान, गेहूं की बुवाई पड़ रही प्रभावित एक माह पूर्व हुई कलेक्ट्रेट बैठक भी बेअसर—अधिकारियों की खामोशी भारी, नजदीकी गांवों में पलायन की आशंका गहराई
कलयुग की कलम से राकेश यादव

उमरिया–पान ग्राउंड रिपोर्ट
चंदौल जलाशय की टूटी नहर से सिंचाई पर संकट—कानूनी दांव–पेंच में फंसे किसान, गेहूं की बुवाई पड़ रही प्रभावित एक माह पूर्व हुई कलेक्ट्रेट बैठक भी बेअसर—अधिकारियों की खामोशी भारी, नजदीकी गांवों में पलायन की आशंका गहराई
कलयुग की कलम उमरिया पान – उमरिया पान क्षेत्र के किसानों के माथे पर इन दिनों गहरी चिंताओं की रेखाएँ किसी सांप की तरह लिपटी नज़र आती हैं। चंदौल जलाशय की मुख्य नहर, जो हजारों एकड़ कृषि भूमि के लिए पानी की धार बनकर बहती थी, आज अपनी जर्जर दीवारों और टूटी संरचना के कारण किसानों के भविष्य पर सबसे बड़ा सवाल बनकर खड़ी है। पानी न आने से गेहूं की बुवाई रुक गई है, खेत सूखे हैं, और किसानों की उम्मीदें भी उसी नहर की तरह दरकती दिखाई दे रही हैं।

यह वही नहर है जिसे क्षेत्र की जीवनरेखा कहा जाता है—क्योंकि इसी के सहारे गांवों की अर्थव्यवस्था चलती है, मजदूरों को काम मिलता है, और कृषि आधारित परिवारों का पूरा वर्ष चलता है। लेकिन समय पर मरम्मत न होने से आज हालत ऐसी है कि पानी खेतों तक पहुँचना तो दूर, नहर ही जगह–जगह ढह चुकी है। कई स्थानों पर बहाव रुक चुका है और जहां नहर बची भी है, वहाँ रिसाव इतना बढ़ा है कि पानी खेतों तक पहुँचने से पहले ही खत्म हो रहा है।
कलेक्ट्रेट में हुई महत्वपूर्ण बैठक—पर परिणाम शून्य
करीब एक माह पहले कलेक्ट्रेट परिसर में कलेक्टर आशीष तिवारी की अध्यक्षता में एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई थी। बैठक में बड़वारा विधायक धीरेंद्र बहादुर सिंह सहित जिले के चारों विधायक और जल संसाधन विभाग के अधिकारी मौजूद थे। चर्चा का मूल बिंदु यही था कि जिले के सभी जलाशयों की नहरों की मरम्मत प्राथमिकता से की जाए, ताकि रबी सीजन में किसान परेशान न हों। कलेक्टर ने स्पष्ट निर्देश भी दिए थे कि मरम्मत कार्य जल्द से जल्द शुरू कर समय से पहले पूरा कराया जाए।
लेकिन वास्तविकता बताती है कि आदेश सिर्फ कागजों में दौड़े, ज़मीन पर काम नहीं। नहर जस की तस पड़ी है, हालात बदतर हो रहे हैं, और फसल बोने का समय निकलता जा रहा है। किसान पूछ रहे हैं—“जब बैठक में समाधान तय हो गया था, तो आज भी पानी क्यों नहीं है?”
विभागों की टकराहट—सिंचाई का भविष्य दांव पर
सूत्रों के अनुसार, नहर मरम्मत कार्य वन विभाग और जल संसाधन विभाग के बीच कानूनी प्रक्रिया में अटका हुआ है। स्टाफ के स्तर पर अनुमति, सीमांकन और निर्माण दायित्व को लेकर कागजी खींचतान महीनों से चल रही है। किसान कहते हैं—“दो विभाग झगड़ रहे हैं और नुकसान हमारा हो रहा है।”
जब किसान अधिकारियों से बात करने की कोशिश करते हैं तो जवाब मिलता है—फाइल आगे बढ़ गई है, स्वीकृति जल्द मिलेगी, प्रक्रिया जारी है। लेकिन इन वाक्यों से खेत नहीं हरियाते। न पानी आता है, न फैसला।
रोजगार के अभाव में पलायन की नौबत
क्षेत्र में कृषि ही मुख्य आय का साधन है। उद्योग नहीं, निजी रोजगार नहीं, खेती ही रोटी का रास्ता है। और अब जब सिंचाई ठप हो गई है, किसान परिवारों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है। कई युवा मजदूरी के लिए बाहर जाने की बात खुलकर कहने लगे हैं। बुजुर्ग किसान बताते हैं—“गेहूं नहीं हुआ, तो अगले साल घर कैसे चलेगा?”बीवी–बच्चों की जिम्मेदारियों की चिंता किसानों को तोड़ रही है। परिवार की आर्थिक रीढ़ खेती ही है, और वह अब पानी के अभाव में कमजोर होती जा रही है।
सरकारी दावे ज़मीन पर खोखले साबित
सरकार कहती है कि सिंचाई व्यवस्था बाधित नहीं होगी, सभी व्यवस्था समय पर की जाएगी, किसानों को किसी भी प्रकार की तकलीफ नहीं दी जाएगी।पर उमरिया–पान के खेतों में यह दावा खोखला प्रतीत होता है। हकीकत यह है कि आज किसान पानी नहीं बल्कि वादों की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
अब ज़रूरत तेज़ कार्यवाही की—तुरंत मरम्मत ही समाधान
नहर की मरम्मत केवल निर्माण का विषय नहीं—यह हजारों किसानों के अस्तित्व का प्रश्न है। यदि चंदौल जलाशय की नहर जल्द दुरुस्त नहीं की गई, तो न सिर्फ इस सीजन की फसल जोखिम में पड़ेगी, बल्कि अगले वर्षों में भी कृषि उत्पादन घटेगा और बड़े पैमाने पर पलायन तय माना जा रहा है।सरकार और विभागों से उम्मीद है कि वे परिस्थितियों की गंभीरता समझें, तत्काल बैठकर समाधान निकालें और कार्य को बिना विलंब शुरू कराएं। क्योंकि—खेत इंतज़ार में खड़े हैं, पर मौसम नहीं रुकेगा।किसानों की रोटी पानी से उगती है—वादों से नहीं।



