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खुशियों की दास्तां अतरिया की सविता बाई बनीं जैविक खेती की मिसाल, 4.5 एकड़ भूमि से रचा आर्थिक आत्मनिर्भरता का इतिहास जैविक खेती से हुई साढ़े 25 हजार रुपये की आमदनी, परिवार को मिला सेहत का वरदान, अब बनीं गांव की प्रेरणा

कलयुग की कलम से राकेश यादव

खुशियों की दास्तां

अतरिया की सविता बाई बनीं जैविक खेती की मिसाल, 4.5 एकड़ भूमि से रचा आर्थिक आत्मनिर्भरता का इतिहास जैविक खेती से हुई साढ़े 25 हजार रुपये की आमदनी, परिवार को मिला सेहत का वरदान, अब बनीं गांव की प्रेरणा

कलयुग की कलम ढीमरखेड़ा–ज़िले के विकासखंड ढीमरखेड़ा के एक छोटे से गाँव अतरिया की किसान सविता बाई ने अपने संघर्ष, लगन और नवाचार से वो कर दिखाया है, जो कई बड़े किसान नहीं कर पाए। सीमित संसाधनों और मात्र 4.5 एकड़ ज़मीन में खेती कर अपने परिवार का जीवन यापन करने वाली सविता बाई ने अब आधुनिक और जैविक खेती को अपनाकर न केवल आर्थिक तरक्की की, बल्कि गांव में प्रेरणा की प्रतीक बन गई हैं।

सविता बाई अपने खेत में गेहूं, चना और धान की भी खेती करतीं हैं। पर्यावरणविद एवं मानव जीवन विकास समिति के सचिव निर्भय सिंह बताते हैं कि सविता बाई को न केवल उन्नत कृषि तकनीकों का प्रशिक्षण दिया गया है, बल्कि बीते साल उन्हें व्यावसायिक स्तर पर बैंगन, टमाटर और मिर्च की खेती शुरू करने हेतु पौधे और तकनीकी सहायता भी दिया गया।

खास बात

सविता बाई ने केवल 0.25 एकड़ में उन्नत विधि से सब्जियों की खेती कर 25 हजार 500 रुपए की आमदनी अर्जित की। जो गेहूं, धान, चना आदि की खेती से अर्जित आमदनी के अतिरिक्त है। इसके साथ ही उनके परिवार को शुद्ध, ताज़ी सब्जियाँ रोज़ाना घर पर ही उपलब्ध होने लगीं। खेती में रासायनिक खाद की जगह जैविक तरीकों का इस्तेमाल कर उन्होंने मिट्टी की गुणवत्ता को भी बेहतर बनाया।

अब उनके पूरे परिवार की सेहत में सुधार देखने को मिल रहा है और आर्थिक स्थिति में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। आस-पास के ग्रामीण भी अब उनकी खेती देखने आ रहे हैं और उनकी राह पर चलने की कोशिश कर रहे हैं।

आज सविता बाई न केवल एक सफल किसान हैं, बल्कि कटनी जिले की ग्रामीण महिलाओं के लिए एक जीवंत उदाहरण बन चुकी हैं।

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