रेत माफियाओ का आतंक ढीमरखेड़ा में प्रशासनिक व्यवस्था पस्त, नियम और प्रशासनिक आदेशों की खुली धज्जियां उड़ाते हुए रेत माफिया बेखौफ होकर नदियों को कर रहे छलनी।
कलयुग की कलम से राकेश यादव

रेत माफियाओ का आतंक ढीमरखेड़ा में प्रशासनिक व्यवस्था पस्त, नियम और प्रशासनिक आदेशों की खुली धज्जियां उड़ाते हुए रेत माफिया बेखौफ होकर नदियों को कर रहे छलनी।
कलयुग की कलम उमरिया पान -ढीमरखेड़ा तहसील में रेत का अवैध खनन कोई नई बात नहीं है, लेकिन हाल के वर्षों में यह समस्या भयावह रूप ले चुकी है।कानून, नियम और प्रशासनिक आदेशों की खुली धज्जियां उड़ाते हुए रेत माफिया बेखौफ होकर नदियों को छलनी कर रहे हैं। तमाम शिकायते, घटनाएं, और ग्रामीणों के प्रदर्शन के बावजूद खनिज विभाग और स्थानीय प्रशासन की चुप्पी ने इस अवैध कारोबार को और अधिक प्रोत्साहन दिया है। इस पूरे प्रकरण में जहां शासन की भूमिका सवालों के घेरे में है, वहीं आम जनता विशेषकर गरीब और किसान वर्ग का जीवन प्रभावित हो रहा है।
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*रेत माफिया की दहशत कानून से ऊपर माफिया*
ढीमरखेड़ा क्षेत्र के विभिन्न गांवों दशरमन, महादेवी, दतला, बम्हौरी, सगवा, लालपुर, जिर्री, बड़ौदा और कुदरा में रेत माफिया खुलेआम अपना साम्राज्य चला रहे हैं। इन क्षेत्रों में प्रतिदिन सैकड़ों ट्रैक्टर-ट्रॉली बिना रॉयल्टी के रेत निकाल कर ले जाते हैं। यह कार्य रात के अंधेरे में नहीं, बल्कि दिनदहाड़े होता है, जैसे किसी वैध उद्योग की तरह। रॉयल्टी की आड़ में फर्जी टोकन जारी किए जा रहे हैं, जिनका न तो खनिज विभाग से कोई संबंध है और न ही प्रशासन से। यह टोकन महज एक लूट का ज़रिया बन गया है।
*घटना क्रम 1 दो मासूम बच्चों की मौत, फिर भी चुप्पी*
ग्राम जिर्री की घटना इस पूरे तंत्र की संवेदनहीनता को उजागर करती है। आनंद यादव और चाहत यादव नामक दो मासूम बच्चों की मौत रेत माफिया की लापरवाही के चलते हुई। आरोप है कि एक रेत कंपनी का ट्रैक्टर पीछा करते हुए आया, जिससे घबराकर ट्रॉली पलट गई और दोनों बच्चों की जान चली गई। परिजनों ने विलायतकला रोड पर शव रखकर घंटों तक रास्ता जाम किया, न्याय की मांग की, लेकिन न कोई कार्रवाई हुई, न माफिया पर शिकंजा कसा गया। चाहत की मां का विलाप आज भी प्रशासन के कानों तक नहीं पहुंच सका।
*घटना क्रम 2 ट्रैक्टर उठा ले गए, मालिक से वसूली की मांग*
एक अन्य गंभीर मामला ग्राम मुरवारी का है जहां ट्रैक्टर मालिक राकेश सोनी का वाहन रेत कंपनी द्वारा जब्त कर लिया गया। वाहन को न तो पुलिस के हवाले किया गया, न ही खनिज विभाग को जानकारी दी गई। उल्टे ट्रैक्टर मालिक से 50 हजार रुपये की मांग की गई, और न देने पर फर्जी मामले में फंसाने की धमकी दी गई। अंततः राकेश सोनी को 20 हजार रुपये देकर ट्रैक्टर छुड़वाना पड़ा। यह घटना बताती है कि क्षेत्र में प्रशासनिक व्यवस्था पूरी तरह चरमरा चुकी है और रेत माफिया की समानांतर सत्ता चल रही है।
*कहां है प्रशासन? हर जगह रेत माफिया*
सवाल उठता है कि आखिर प्रशासन क्यों चुप है? तहसील, खनिज विभाग, पुलिस मौन हैं। क्या यह मिलीभगत का नतीजा है या डर का? कई बार ग्रामीणों द्वारा शिकायती आवेदन, ज्ञापन और प्रदर्शन किए गए लेकिन नतीजा सिफर रहा। यह न केवल प्रशासनिक असफलता है, बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था पर करारा तमाचा भी है।
*गांव-गांव में अवैध रेत खनन रोजाना सैकड़ों ट्रॉली*
जिन गांवों में खनन की अनुमति नहीं है, वहां से भी रेत का उत्खनन हो रहा है। खासकर बम्हौरी और दशरमन जैसे इलाकों में रेत पॉइंट न होने के बावजूद, नदियों का दोहन जोरों पर है। सरकार को करोड़ों का नुकसान हो रहा है, लेकिन माफिया की जेबें भर रही हैं। यह सब कुछ पुलिस और प्रशासन की नाक के नीचे हो रहा है।
*ग्रामीणों से टोकन के नाम पर लूट*
रेत कंपनी द्वारा ट्रैक्टर ट्रॉली मालिकों से 2000 से 2500 रुपये प्रति ट्रॉली वसूले जा रहे हैं। यह रकम न तो शासन के खाते में जाती है और न ही कोई वैध दस्तावेज दिया जाता है। ट्रॉली मालिकों को जब रॉयल्टी की मांग करते हैं तो धमकाया जाता है, मारपीट की जाती है और गुंडागर्दी की जाती है। यह सबकुछ बताते हैं कि क्षेत्र में कानून का नहीं, बल्कि माफिया का राज है।
*रेत महंगी, जनता परेशान*
जिस रेत को ग्रामीण पहले उचित दाम पर ले आते थे, अब उसे कई गुना अधिक दाम पर खरीदना पड़ रहा है। इसका सीधा असर निर्माण कार्यों पर पड़ रहा है। मकान बनवाना, शौचालय निर्माण, कुआं खनन या अन्य कोई भी कार्य महंगा हो गया है। गरीब और मजदूर वर्ग सबसे अधिक प्रभावित हो रहा है। जहां लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि होती है, वहीं ढीमरखेड़ा में रेत माफिया सर्वोपरि है। अधिकारी मूक दर्शक बने हुए हैं, और जनप्रतिनिधि इन मुद्दों पर चुप्पी साधे हुए हैं। सवाल यह है कि क्या सरकार की “जीरो टॉलरेंस नीति” सिर्फ कागजों में है? क्या प्रशासनिक तंत्र पूरी तरह माफिया के सामने घुटने टेक चुका है? ढीमरखेड़ा तहसील में रेत माफिया का यह आतंक केवल एक अवैध कारोबार नहीं, बल्कि लोकतंत्र और जनहित पर सीधा हमला है। जिस दिन दो बच्चों की जान गई, उस दिन यह स्पष्ट हो गया था कि माफिया अब किसी भी हद तक जा सकते हैं। अब समय आ गया है कि प्रशासन, शासन, और समाज मिलकर इस समस्या के खिलाफ एकजुट हो। अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब ढीमरखेड़ा पूरी तरह माफिया के अधीन हो जाएगा और शासन नाम की चीज़ केवल किताबों और कागजों तक सीमित रह जाएगी।




