बाउंड एग्रीमेंट के आधार पर कार्यरत ब्लॉक मेडिकल ऑफिसरों का तीन माह से अटका वेतन, जिम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही से बढ़ी परेशानी — स्वास्थ्य मंत्री और कलेक्टर से हस्तक्षेप की मांग
कलयुग की कलम से राकेश यादव

बाउंड एग्रीमेंट के आधार पर कार्यरत ब्लॉक मेडिकल ऑफिसरों का तीन माह से अटका वेतन, जिम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही से बढ़ी परेशानी — स्वास्थ्य मंत्री और कलेक्टर से हस्तक्षेप की मांग
कलयुग की कलम कटनी – जिले के स्वास्थ्य विभाग में बाउंड (एग्रीमेंट) के आधार पर कार्यरत ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर (BMO) पिछले तीन माह से वेतन न मिलने के कारण आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। ये डॉक्टर प्रतिदिन गांव-गांव जाकर मरीजों की जांच, टीकाकरण, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य से जुड़ी सेवाएं, अस्पतालों की निगरानी और आपात स्थितियों में 24 घंटे ड्यूटी निभाते हैं। बावजूद इसके, नियमित रूप से अपनी सेवाएं देने वाले इन अधिकारियों को वेतन भुगतान में लगातार देरी की जा रही है, जिससे इनके सामने परिवार का खर्च चलाने में गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई है।
सूत्रों के अनुसार, स्वास्थ्य विभाग के कुछ जिम्मेदार अधिकारी नए ड्राफ्ट शेड्यूल या आईडी अपडेट के नाम पर दो-दो हजार रुपए की राशि मांगने की बातें भी सामने आई हैं। यह स्थिति न केवल विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाती है बल्कि उन डॉक्टरों के मनोबल पर भी गहरा असर डाल रही है, जो अपने कर्तव्य को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए निरंतर कार्यरत हैं।

वेतन न मिलने से डॉक्टरों में आक्रोश
ब्लॉक स्तर पर तैनात अधिकांश डॉक्टरों का कहना है कि वे लगातार अस्पतालों में सेवाएं दे रहे हैं, मगर तीन महीनों से उनके खातों में एक रुपया तक नहीं पहुंचा है। कई डॉक्टरों को अपने बच्चों की फीस, घर का किराया और दवाओं के खर्च तक के लिए उधार लेना पड़ रहा है।
इनका कहना है कि “हम लोग सरकारी आदेशों के तहत बॉन्डिंग के आधार पर कार्य कर रहे हैं, लेकिन समय पर वेतन नहीं मिलने से मानसिक और आर्थिक दोनों तरह से परेशान हैं। विभाग को इस दिशा में शीघ्र कार्रवाई करनी चाहिए।”

स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित होने का खतरा
जानकारों का कहना है कि यदि इस तरह डॉक्टरों को समय पर वेतन नहीं मिला, तो भविष्य में स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हो सकती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर स्वास्थ्य तंत्र की रीढ़ माने जाते हैं। ये न केवल स्वास्थ्य कार्यक्रमों की निगरानी करते हैं बल्कि आकस्मिक बीमारियों, महामारी नियंत्रण और सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में भी अहम भूमिका निभाते हैं।ऐसे में उनका मनोबल टूटना या सेवाओं में असंतोष बढ़ना पूरे जिले के स्वास्थ्य ढांचे पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
शासन-प्रशासन को देना होगा ध्यान
जिले के सामाजिक संगठनों और जनप्रतिनिधियों ने इस मामले में स्वास्थ्य मंत्री, जिला कलेक्टर और मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। उनका कहना है कि शासन-प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जो डॉक्टर नियमित रूप से अपनी ड्यूटी कर रहे हैं और जिम्मेदारी निभा रहे हैं, उनके वेतन का भुगतान समय पर हो।
वहीं, जो डॉक्टर अपनी बॉन्डिंग की शर्तों का पालन नहीं करते, लापरवाह रहते हैं या अपने कार्य में उदासीनता दिखाते हैं, उन पर विभागीय कार्रवाई की जानी चाहिए। लेकिन पूरी व्यवस्था को लापरवाही की भेंट चढ़ाकर मेहनती डॉक्टरों को परेशान करना अनुचित है।
आर्थिक अनियमितता पर उठ रहे सवाल
सूत्रों का यह दावा कि आईडी निर्माण या ड्राफ्ट शेड्यूल अपडेट के नाम पर धन की मांग की जा रही है, गंभीर आरोप हैं। यह न केवल प्रशासनिक नैतिकता के खिलाफ है बल्कि भ्रष्टाचार की श्रेणी में भी आता है। इस पर जिला प्रशासन को तत्काल जांच कर कठोर कार्रवाई करनी चाहिए ताकि भविष्य में कोई भी अधिकारी या कर्मचारी डॉक्टरों का शोषण करने की हिम्मत न कर सके।
समय पर भुगतान से बढ़ेगा मनोबल
विशेषज्ञों का मानना है कि स्वास्थ्य जैसी संवेदनशील व्यवस्था में कार्यरत कर्मचारियों और डॉक्टरों को समय पर भुगतान मिलना बेहद आवश्यक है। समय पर वेतन से न केवल उनका मनोबल बढ़ेगा बल्कि सेवाओं की गुणवत्ता भी बनी रहेगी।स्वास्थ्य विभाग को चाहिए कि नियमित और ईमानदारी से सेवाएं दे रहे डॉक्टरों की सूची बनाकर प्राथमिकता के आधार पर उनका वेतन जारी करे।
जनहित में शीघ्र निर्णय की अपेक्षा
जिले के नागरिकों का भी कहना है कि डॉक्टर समाज के सबसे जिम्मेदार वर्ग में आते हैं। वे दिन-रात लोगों की जान बचाने में लगे रहते हैं। ऐसे में यदि उन्हें वेतन के लिए संघर्ष करना पड़े तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है।अब यह देखना होगा कि स्वास्थ्य मंत्री और जिला कलेक्टर इस मामले में कब तक संज्ञान लेते हैं और इन डॉक्टरों को न्याय दिलाने की दिशा में क्या कदम उठाते हैं।
निष्कर्ष:
स्वास्थ्य विभाग में बाउंडिंग पर कार्यरत डॉक्टरों का वेतन तीन माह से लंबित है, जिससे वे आर्थिक और मानसिक परेशानी में हैं। विभागीय स्तर पर हो रही कथित अनियमितताओं की जांच आवश्यक है। शासन-प्रशासन को चाहिए कि नियमित सेवाएं देने वाले डॉक्टरों को तत्काल वेतन भुगतान कर उनका मनोबल बढ़ाएं और व्यवस्था में पारदर्शिता सुनिश्चित करें।




