मध्यप्रदेश

एमपी में यहाँ हर विभाग को चला रहे बाबू, अधिकारी बने रहते है मूंक – दर्शक

कलयुग की कलम से सोनू त्रिपाठी की रिपोर्ट

उमरियापान/ढीमरखेड़ा- हर विभाग में बाबू की भूमिका आज के समय में इतनी बढ़ गई है कि वे कई मामलों में अधिकारी से भी अधिक शक्तिशाली नजर आते हैं। बाबू (क्लर्क) विभाग के अंदरूनी कामकाज को संचालित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन समस्या तब शुरू होती है जब वे अपने इस पद का दुरुपयोग करने लगते हैं। आज की स्थिति यह है कि अधिकांश विभागों में अधिकारी महज मूक दर्शक बनकर रह गए हैं, और पूरे विभाग को बाबू नियंत्रित कर रहे हैं। बाबुओं के माध्यम से बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार हो रहा है, जिससे न केवल विभाग की कार्यप्रणाली प्रभावित हो रही है, बल्कि आम जनता को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।

बाबुओं का विभाग पर नियंत्रण

प्रत्येक सरकारी विभाग में अधिकारी भले ही शीर्ष पद पर होते हैं, लेकिन बाबू ही वास्तविक रूप से उस विभाग का संचालन कर रहे होते हैं। बाबुओं के हाथ में न केवल फाइलों की देखरेख होती है, बल्कि वे यह भी तय करते हैं कि कौन सी फाइल किस अधिकारी के पास कब जाएगी और कितनी तेजी से काम होगा। अधिकारियों का हस्तक्षेप अक्सर सिर्फ औपचारिकता बनकर रह जाता है। यह स्थिति इसलिए भी गंभीर है क्योंकि अधिकारी बाबुओं की इस भूमिका को नजरअंदाज कर रहे हैं, जिससे उन्हें भ्रष्टाचार में हिस्सेदारी मिलती है। बाबू और अधिकारी के बीच भ्रष्टाचार का गठजोड़ अत्यंत गहरा है। बाबू, जो सभी महत्वपूर्ण दस्तावेज़ों और जानकारी तक पहुंच रखते हैं, उन्हें यह अधिकार होता है कि वे किस प्रकार से चीजों को आगे बढ़ाएंगे। अक्सर यह देखा जाता है कि काम को तेजी से कराने या फाइल को आगे बढ़ाने के लिए लोगों से पैसे मांगे जाते हैं। बाबू उस राशि का एक हिस्सा अधिकारी तक पहुंचाते हैं, और यह भ्रष्टाचार की एक श्रृंखला बन जाती है। इस व्यवस्था में आम जनता फंसकर रह जाती है, जो सरकारी कामों को निपटाने के लिए रिश्वत देने पर मजबूर हो जाती है।

थानों में वसूली अभियान

अगर थानों की बात करें, तो वहां भी वसूली अभियान बेहद सक्रिय है। थानों में आरक्षकों की भूमिका बड़ी ही अहम हो जाती है। यहां भी स्थिति कुछ वैसी ही है जैसी अन्य विभागों में बाबुओं की है। थानों में छोटे-मोटे मामलों को निपटाने के लिए पुलिसकर्मी रिश्वत मांगते हैं। अगर कोई मामला कोर्ट तक पहुंचने से पहले सुलझाना हो, तो पुलिस द्वारा रिश्वत की मांग की जाती है। यह स्थिति बेहद चिंताजनक है क्योंकि थाने, जो जनता की सुरक्षा के लिए होते हैं, वहां भी भ्रष्टाचार का जाल फैला हुआ है। आरक्षकों का इस वसूली अभियान में बड़ा योगदान होता है। उन्हें पुलिस प्रशासन की निचली इकाई माना जाता है, लेकिन उनका प्रभाव क्षेत्रीय स्तर पर काफी अधिक होता है। चाहे ट्रैफिक पुलिस हो या स्थानीय थाने, हर जगह आरक्षक भ्रष्टाचार के इस गंदे खेल में लिप्त नजर आते हैं। जहां भी पुलिस की तैनाती होती है, वहां आरक्षक छोटे-बड़े व्यापारियों, दुकानदारों, वाहन चालकों, और यहां तक कि आम लोगों से भी अवैध रूप से पैसे वसूलते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि आरक्षकों को थाने के उच्च अधिकारियों का समर्थन प्राप्त होता है, और यह एक सुनियोजित ढंग से चलने वाला अभियान बन जाता है। यह वसूली का धंधा न केवल कानून और व्यवस्था को कमजोर करता है, बल्कि जनता के बीच पुलिस प्रशासन के प्रति अविश्वास भी बढ़ाता है।

अधिकारी बने मूकदर्शक

अधिकारी, जिनकी जिम्मेदारी होती है कि वे इन अनियमितताओं और भ्रष्टाचार पर नजर रखें, वे खुद मूकदर्शक बने हुए हैं। इसका कारण यह है कि बाबू और आरक्षकों के माध्यम से उन्हें भी रिश्वत का एक हिस्सा मिलता है। अधिकारी अपनी कुर्सी बचाए रखने के लिए इन भ्रष्टाचार के मामलों को नजरअंदाज करते हैं। इससे न केवल भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है, बल्कि अधिकारियों की कार्यक्षमता और नैतिकता पर भी सवाल उठता है। यह स्थिति एक प्रकार से पूरे प्रशासनिक ढांचे को खोखला कर रही है। जब अधिकारी ही भ्रष्टाचार को रोकने के बजाय उसमें भागीदार बन जाते हैं, तो आम जनता के लिए न्याय की उम्मीद कम हो जाती है। अधिकारी अपने पद का उपयोग केवल अपने लाभ के लिए कर रहे हैं, और वास्तविक समस्याओं से वे मुँह मोड़ रहे हैं।

वसूली का व्यापक प्रभाव

विभागों में चल रही इस प्रकार की वसूली का व्यापक असर समाज के हर वर्ग पर पड़ रहा है। छोटे व्यापारियों से लेकर आम जनता तक, हर किसी को इस भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, छोटे दुकानदारों से पुलिसकर्मी या अन्य सरकारी कर्मचारी अवैध वसूली करते हैं, जिसका असर उनके व्यापार पर पड़ता है। जब व्यापारियों को अपनी मेहनत की कमाई का एक बड़ा हिस्सा भ्रष्ट कर्मचारियों को देना पड़ता है, तो उनका व्यापार प्रभावित होता है। इसी तरह, आम आदमी को भी सरकारी काम करवाने के लिए रिश्वत देनी पड़ती है, जिससे उसकी आर्थिक स्थिति और कमजोर हो जाती है। यह वसूली अभियान केवल थानों या सरकारी कार्यालयों तक सीमित नहीं है, बल्कि हर जगह फैला हुआ है। चाहे वह शिक्षा विभाग हो, स्वास्थ्य विभाग हो, या फिर परिवहन विभाग हो, हर जगह वसूली का यह खेल चल रहा है। सरकारी स्कूलों में प्रवेश के लिए, अस्पतालों में इलाज के लिए, या फिर वाहन पंजीकरण के लिए, हर जगह रिश्वत की मांग की जाती है।

भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने की जरूरत

इस स्थिति से निपटने के लिए सबसे जरूरी है कि आम जनता भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाए। जब तक लोग चुप रहेंगे और इस व्यवस्था को स्वीकार करेंगे, तब तक यह भ्रष्टाचार का खेल चलता रहेगा। जरूरत है कि लोग अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हों और भ्रष्टाचार के खिलाफ एकजुट हों। सरकार को भी इस समस्या को गंभीरता से लेना चाहिए। केवल नीतियां और कानून बनाना पर्याप्त नहीं है, बल्कि उन पर सख्ती से अमल करने की भी जरूरत है। भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों, बाबुओं और आरक्षकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। इसके साथ ही, प्रशासनिक ढांचे में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने की भी आवश्यकता है, ताकि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सके।

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