आर. एस. एस. के पद संचलन में शिक्षक हुए शामिल नियमों के तहत होना चाहिए कार्यवाही, आर.एस.एस. पद-संचलन और शिक्षकों की भागीदारी, एक विधिक एवं नैतिक विवेचन, उमरियापान के पद संचलन में दिखे दो शिक्षक
संदीप तिवारी की खबर

आर. एस. एस. के पद संचलन में शिक्षक हुए शामिल नियमों के तहत होना चाहिए कार्यवाही, आर.एस.एस. पद-संचलन और शिक्षकों की भागीदारी, एक विधिक एवं नैतिक विवेचन, उमरियापान के पद संचलन में दिखे दो शिक्षक
कटनी | भारत में शिक्षक को केवल ज्ञानदाता ही नहीं बल्कि चरित्र-निर्माता, समाज का आदर्श और राष्ट्र की धुरी माना गया है। शिक्षक का आचरण छात्रों, अभिभावकों और समाज पर गहरा प्रभाव डालता है। इसलिए सरकारी सेवा में रहते हुए एक शिक्षक का राजनीतिक या विचारधारात्मक गतिविधियों से जुड़ना हमेशा संवेदनशील प्रश्न बन जाता है। इसी संदर्भ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) के पद-संचलन में शिक्षकों की भागीदारी पर बहस होती रही है।
*आर.एस.एस. और पद-संचलन की प्रकृति*
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन है, जो स्वयं को सीधे राजनीति से अलग बताता है। संघ की शाखाओं में अनुशासन, राष्ट्रभक्ति, चरित्र निर्माण और संगठन पर बल दिया जाता है। समय-समय पर आर.एस.एस. के पद-संचलन (जिसे “पथ संचलन” या “मार्च पास्ट” कहा जाता है) आयोजित होते हैं, जिनमें स्वयंसेवक गणवेश धारण कर नगर के मार्गों से अनुशासित तरीके से निकलते हैं।आर.एस.एस. इसे सांस्कृतिक और संगठनात्मक प्रदर्शन मानता है, न कि राजनीतिक गतिविधि। किंतु समाज और शासन के दृष्टिकोण से यह अक्सर एक विचारधारात्मक संगठन की गतिविधि के रूप में देखा जाता है।
*सरकारी सेवकों के लिए आचार-संहिता*
भारत में सभी सरकारी कर्मचारियों, जिनमें शिक्षक भी शामिल हैं, पर केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम 1964 अथवा संबंधित राज्य सिविल सेवा आचरण नियम लागू होते हैं। कोई भी सरकारी सेवक किसी राजनीतिक दल या राजनीतिक आंदोलन से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ नहीं रह सकता। सरकारी सेवक ऐसी किसी गतिविधि में भाग नहीं ले सकता जिससे उसकी निष्पक्षता, कर्तव्य-पालन या सार्वजनिक छवि प्रभावित हो। अब प्रश्न यह है कि आर.एस.एस. को राजनीतिक संगठन माना जाए या नहीं? न्यायालयों और सरकारों ने अलग-अलग अवसरों पर इसे कभी सांस्कृतिक, कभी वैचारिक संगठन के रूप में माना है। परंतु व्यवहारिक रूप से इसकी छवि एक विशेष राजनीतिक विचारधारा (हिन्दुत्व और भाजपा से निकटता) से जुड़ी हुई मानी जाती है। इसलिए सेवा नियमों की व्याख्या करते समय अक्सर अधिकारियों का मानना रहता है कि शिक्षकों या अन्य सरकारी कर्मचारियों का आर.एस.एस. की गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल होना निष्पक्षता के विरुद्ध है।
*न्यायिक दृष्टांत सब दिख रहे हैं उमरियापान में बेअसर*
भारतीय न्यायपालिका ने इस विषय पर समय-समय पर टिप्पणी की है।केरल उच्च न्यायालय (1970 के दशक में) ने आर.एस.एस. को राजनीतिक संगठन मानते हुए सरकारी कर्मचारियों की इसमें भागीदारी को अनुशासनात्मक अपराध माना। कुछ अन्य मामलों में न्यायालयों ने कहा कि जब तक कोई संगठन प्रतिबंधित नहीं है, तब तक उसके सदस्य होना अवैध नहीं है, परन्तु सरकारी कर्मचारी के लिए “सक्रिय भागीदारी” अनुशासनहीनता मानी जा सकती है।
*शिक्षा विभाग के परिपत्र और आदेश*
अधिकांश राज्यों के शिक्षा विभाग ने परिपत्र जारी कर स्पष्ट किया है कि शिक्षक किसी भी राजनीतिक गतिविधि, जुलूस या विचारधारात्मक संगठन के पद-संचलन में शामिल नहीं हो सकते।यदि ऐसा करते पाए जाते हैं तो उन पर अनुशासनात्मक कार्यवाही जैसे कारण बताओ नोटिस, वेतनवृद्धि रोकना, निलंबन अथवा सेवा समाप्ति तक की कार्रवाई हो सकती है। कुछ राज्य सरकारों ने विशेष रूप से आर.एस.एस. की गतिविधियों में भाग लेने वाले शिक्षकों को कारण बताओ नोटिस जारी किए हैं।
*कार्यवाही का हैं प्रावधान*
यदि कोई शिक्षक आर.एस.एस. के पद-संचलन में शामिल होता है और इसकी सूचना विभाग तक पहुँचती है, तो सामान्यत: यह प्रक्रिया अपनाई जाती हैं विभाग पहले यह देखता है कि शिक्षक की भागीदारी प्रत्यक्ष प्रमाण (फोटो, वीडियो, प्रत्यक्षदर्शी गवाही) से साबित हो रही है या नहीं। शिक्षक से पूछा जाता है कि आपने यह गतिविधि क्यों की और किस आधार पर आपने इसे सेवा नियमों का उल्लंघन नहीं माना। यदि उत्तर असंतोषजनक हुआ तो चेतावनी, वार्षिक वेतनवृद्धि रोकना या सेवा पुस्तिका में प्रतिकूल प्रविष्टि की जा सकती है। बार-बार उल्लंघन या संगठनात्मक सक्रियता साबित होने पर निलंबन या बर्खास्तगी तक की कार्यवाही हो सकती है।
*नैतिक दृष्टिकोण पर असर*
कानूनी पक्ष से इतर, शिक्षकों की भूमिका आदर्श निर्माण की होती है। यदि कोई शिक्षक किसी विशेष विचारधारा या संगठन से खुलकर जुड़ता है तो छात्रों के मन में उसकी निष्पक्षता पर प्रश्न उठ सकता है। शिक्षा का वातावरण विचारधारात्मक विभाजन का शिकार हो सकता है।अभिभावकों का विश्वास डगमगा सकता है कि शिक्षक सभी बच्चों के साथ समान दृष्टि रखेंगे। शिक्षा का मूल उद्देश्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण, सहिष्णुता और राष्ट्रीय एकता है। इस दृष्टि से शिक्षक को अपनी निजी मान्यताओं को व्यक्तिगत स्तर तक सीमित रखना चाहिए, न कि सार्वजनिक रूप से पद-संचलन में प्रदर्शित करना चाहिए।




