ग्राम पंचायत महनेर का आश्रित ग्राम वीरान घुघरी शुक्ला पिपरिया छोटा कछार गांव घुघरी सहित अनेको जगह पर रेत का अवैध उत्खनन – नदियों का छलनी होता सीना, बेखौफ माफिया और प्रशासन की खामोशी
कलयुग की कलम से राकेश यादव

ग्राम पंचायत महनेर का आश्रित ग्राम वीरान घुघरी शुक्ला पिपरिया छोटा कछार गांव घुघरी सहित अनेको जगह पर रेत का अवैध उत्खनन – नदियों का छलनी होता सीना, बेखौफ माफिया और प्रशासन की खामोशी
कलयुग की कलम उमरिया पान – ग्राम पंचायत महनेर के आश्रित ग्राम वीरान घुघरी में पिछले कई महीनों से रेत का अवैध उत्खनन अब एक खुला खेल बन चुका है। यह खेल न केवल शासन के नियमों की धज्जियाँ उड़ा रहा है, बल्कि प्रकृति की नींव को भी हिला रहा है। नदियों का स्वरूप बदल गया है, खेतों और गांवों का पर्यावरण असंतुलित हो रहा है, और रेत कारोबारियों का आतंक इतना बढ़ गया है कि ग्रामीण खुद को असुरक्षित महसूस करने लगे हैं।

एक समय था जब वीरान घुघरी और आसपास के क्षेत्रों की नदियाँ स्वच्छ, शांत और जीवनदायिनी मानी जाती थीं। ग्रामीणों की जरूरतें इन्हीं नदियों से पूरी होती थीं। लेकिन आज हालात पूरी तरह बदल चुके हैं। लगातार हो रहे अवैध उत्खनन ने नदियों का सीना छलनी कर दिया है। जहां कभी जल की सहज धारा बहती थी, वहाँ अब गहरे गड्ढे और धूल के गुबार दिखाई देते हैं।
इसी तरह छोटा कछार और शुक्ला पिपरिया घुघरी जैसे गांवों में भी रात के अंधेरे में रेत निकालने से नदियाँ खाई जैसी दिखने लगी हैं। खेतों तक आने-जाने वाले किसानों और नदी किनारे पानी पीने आने वाले गोवंश के लिए ये गहरे गड्ढे मौत के कुएँ साबित हो रहे हैं। कई मवेशी इन गड्ढों में फँसकर जान गंवा चुके हैं, लेकिन इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं।

रेत की इतनी बेतहाशा खुदाई हो रही है कि नदी का प्राकृतिक संतुलन पूरी तरह बिगड़ चुका है। नदी की संरचना कमजोर हो गई है, जिससे बारिश के मौसम में किनारों पर कटाव बढ़ने का खतरा है। यह कटाव किसानों की उपजाऊ भूमि को नुकसान पहुँचा सकता है। साथ ही, नदी का जलस्तर लगातार नीचे जा रहा है, जिससे भविष्य में क्षेत्र में जल संकट की गंभीर स्थिति बन सकती है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि इस पूरे रेत कारोबार के पीछे प्रभावशाली ठेकेदारों और माफियाओं का गठजोड़ काम कर रहा है। ग्रामीणों ने कई बार शिकायतें कीं, पर कार्रवाई का स्तर शून्य ही रहा। कुछ ग्रामीणों ने यह भी बताया कि जब कोई आवाज उठाता है, तो उसे माफियाओं की ओर से धमकियाँ मिलती हैं। ऐसे में भय और असुरक्षा का माहौल पूरे क्षेत्र में व्याप्त है।
रेत उत्खनन को लेकर शासन ने स्पष्ट नियम बनाए हैं – सीमित मात्रा में मानव श्रम से खुदाई, पर्यावरणीय अनुमति और निर्धारित समयावधि में उत्खनन। मगर वीरान घुघरी सहित अनेकों अवैध रेत खदानों में इनमें से कोई नियम लागू नहीं है। ट्रैक्टर–ट्रॉली से दिन-रात रेत की लूट जारी है। तेज रफ्तार वाहनों के कारण गांव की सड़कों पर धूल का गुबार छाया रहता है, जिससे ग्रामीणों का जीना मुहाल हो गया है।
कई बार इन वाहनों की टक्कर से हादसे भी हुए, लेकिन प्रभावित लोग डर के कारण शिकायत दर्ज नहीं करा पाते। प्रशासन की चुप्पी और निष्क्रियता ने माफियाओं के हौसले और भी बढ़ा दिए हैं। यही कारण है कि अब यह अवैध उत्खनन सिर्फ एक अपराध नहीं, बल्कि एक संगठित माफिया नेटवर्क का रूप ले चुका है।
ग्राम पंचायत महनेर और उसके अधीनस्थ ग्रामों की जिम्मेदारी है कि वे प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करें, लेकिन हालात बताते हैं कि या तो पंचायत असहाय है या फिर मूक दर्शक बनी हुई है। यह स्थिति पंचायत की भूमिका पर भी सवाल खड़े करती है।
पर्यावरणीय खतरे बढ़े:
रेत उत्खनन से न केवल नदी की संरचना बिगड़ रही है, बल्कि पेड़ों की जड़ें उजड़ रही हैं, जैव विविधता खतरे में है, और भू-जल स्तर लगातार नीचे जा रहा है। यह स्थिति आने वाले वर्षों में खेती-किसानी और पेयजल दोनों के लिए चुनौती साबित होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अब भी स्थिति पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो आने वाले कुछ वर्षों में यह क्षेत्र बंजर भूमि में बदल सकता है।
ग्रामीणों में आक्रोश, प्रशासन से उम्मीदें:
ग्रामीणों का कहना है कि वे विकास के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन प्राकृतिक संसाधनों की लूट स्वीकार्य नहीं है। उनका कहना है कि यदि प्रशासन सख्त कार्रवाई करे, मशीनें जब्त करे और माफियाओं पर जुर्माना लगाए, तो कुछ ही दिनों में यह अवैध उत्खनन बंद हो सकता है।
लेकिन जब कानून के रखवाले ही आंख मूँद लें, तो अपराधी और भी निडर हो जाते हैं। यही स्थिति आज वीरान घुघरी की है। प्रशासन की खामोशी और माफियाओं का दबदबा इस बात की ओर संकेत करता है कि कहीं न कहीं राजनीतिक या आर्थिक हितों की परतें इस अवैध कारोबार को ढँक रही हैं।
सवाल उठता है —
आखिर यह सब इतनी खुलेआम कैसे हो रहा है? कौन है जो इन माफियाओं को संरक्षण दे रहा है? और क्यों शासन-प्रशासन की आँखों के सामने नदियों की हत्या हो रही है?
यह मुद्दा सिर्फ वीरान घुघरी का नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश में फैलती उस पर्यावरणीय लापरवाही का प्रतीक है, जहाँ प्राकृतिक संसाधनों को मुनाफे के लिए नष्ट किया जा रहा है। यदि समय रहते सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाली पीढ़ियाँ जल संकट, भूमि क्षरण और पर्यावरणीय असंतुलन की भयावह कीमत चुकाएँगी।
ग्रामीणों की एक ही माँग है —
“नदी बचाओ, गांव बचाओ, आने वाले भविष्य को बचाओ।”
प्रशासन को चाहिए कि वह तत्काल प्रभाव से अवैध रेत उत्खनन पर रोक लगाए, दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे और नदी संरक्षण के लिए दीर्घकालिक नीति बनाए। जब तक माफियाओं पर अंकुश नहीं लगेगा, तब तक नदियाँ लुटती रहेंगी और गांवों का भविष्य अंधकार में डूबता रहेगा।




