सेल्समैनों पर धड़ाधड़ हो रही एफआईआर इसका जिम्मेदार कौन फूड स्पेक्टर की भूमिका पर खड़े हो रहे सवाल, शासकीय उचित मूल्य की दुकानों में अनियमितता, जिम्मेदार कौन?, उच्च पायदान में बैठा अधिकारी काट रहा मलाई, अधिकारियों के भ्रष्टाचार की कीमत चुका रहे निचले पायदान में बैठे कर्मचारी
कलयुग की कलम से राकेश यादव

सेल्समैनों पर धड़ाधड़ हो रही एफआईआर इसका जिम्मेदार कौन फूड स्पेक्टर की भूमिका पर खड़े हो रहे सवाल, शासकीय उचित मूल्य की दुकानों में अनियमितता, जिम्मेदार कौन?, उच्च पायदान में बैठा अधिकारी काट रहा मलाई, अधिकारियों के भ्रष्टाचार की कीमत चुका रहे निचले पायदान में बैठे कर्मचारी
कलयुग की कलम उमरिया पान-मध्यप्रदेश के ढीमरखेड़ा विकासखंड में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत उचित मूल्य की दुकानों पर लगातार अनियमितताओं की शिकायतें सामने आ रही हैं। इन शिकायतों पर प्रशासन ने सख्त कार्रवाई करते हुए सेल्समैनों पर धड़ाधड़ एफआईआर दर्ज करवाई हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या केवल सेल्समैन ही इस भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार हैं, या फिर इसके पीछे कोई बड़ा खेल चल रहा है जिसमें खाद्य विभाग के अधिकारी, खासतौर पर फूड इंस्पेक्टर, भी संलिप्त हैं? इस पूरे मामले में प्रशासन द्वारा उचित मूल्य की दुकानों में गड़बड़ी पाए जाने पर कार्यवाही की जा रही है, लेकिन असली मास्टरमाइंड तक अब तक प्रशासन नहीं पहुंच पाया है। जब सेल्समैनों पर कार्रवाई हो रही है, तो उन अधिकारियों की जवाबदेही क्यों तय नहीं हो रही है, जिनकी जिम्मेदारी दुकानों के आवंटन और स्टॉक की निगरानी करना था? यदि सेल्समैन अनाज में हेराफेरी कर रहे थे, तो क्या फूड इंस्पेक्टर को इसकी जानकारी नहीं थी? क्या वे अपनी जिम्मेदारी निभाने में पूरी तरह विफल रहे ? खाद्य विभाग के अधिकारी का काम होता है कि वे उचित मूल्य की दुकानों में अनाज के आवंटन और वितरण की पूरी प्रक्रिया पर नजर रखें। पीओएस मशीन में यह पूरी तरह ऑनलाइन ट्रैक होता है कि किसी दुकान में कितना स्टॉक है और कितना राशन वितरित किया गया। लेकिन कई मामलों में देखने को मिला है कि दुकान में मौजूद स्टॉक से अधिक अनाज का आवंटन कर दिया गया। उदाहरण के लिए, यदि किसी दुकान में पहले से 200 क्विंटल स्टॉक था और उसे 90 क्विंटल बांटना था, तो अतिरिक्त 100 से 150 क्विंटल अनाज का आवंटन क्यों किया गया? क्या फूड इंस्पेक्टर ने स्टॉक मिलान किया था? यदि नहीं, तो यह लापरवाही नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार का संकेत है। फूड इंस्पेक्टर की जिम्मेदारी थी कि वे नियमित रूप से दुकानों की जांच करें, स्टॉक का मिलान करें, और किसी भी अनियमितता की रिपोर्ट करें। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जब आठ महीने बाद किसी दुकान में 800 क्विंटल का स्टॉक दिखाई देने लगा, तो तब जाकर जांच की गई और पाया गया कि राशन की हेरा-फेरी हो चुकी है। अगर हर महीने जांच होती, तो इतनी बड़ी गड़बड़ी नहीं होती। सवाल यह उठता है कि क्या फूड इंस्पेक्टर भी इस घोटाले में शामिल थे? क्या उन्होंने जानबूझकर अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ा?
प्रशासन की कार्रवाई, सिर्फ सेल्समैन पर एफआईआर क्यों?
जब प्रशासन ने इन गड़बड़ियों की जांच शुरू की, तो सबसे पहले सेल्समैनों को निशाना बनाया गया। कनिष्ठ आपूर्ति अधिकारी द्वारा दर्ज करवाई गई एफआईआर में सिर्फ सेल्समैनों के नाम शामिल किए गए, जबकि फूड इंस्पेक्टर और अन्य बड़े अधिकारियों की भूमिका की जांच नहीं की गई। क्या सेल्समैन ही असली दोषी हैं? बेशक, उचित मूल्य की दुकानों में काम करने वाले सेल्समैन भी अनियमितताओं में शामिल हो सकते हैं, लेकिन वे अकेले इस खेल को अंजाम नहीं दे सकते। फूड इंस्पेक्टर की मंजूरी के बिना कोई अतिरिक्त आवंटन नहीं हो सकता।बिना जांच के बड़े पैमाने पर स्टॉक बढ़ना संभव नहीं है। अगर स्टॉक में गड़बड़ी थी, तो उसकी समय पर रिपोर्टिंग क्यों नहीं हुई? यह स्पष्ट है कि प्रशासन की कार्रवाई केवल छोटे कर्मचारियों को निशाना बना रही है, जबकि असली मास्टरमाइंड अब भी पर्दे के पीछे हैं।
बाढ़ आपदा के दौरान वितरित राशन और प्रशासन की गलती
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, जब हाल ही में बाढ़ आई थी, तब कई उचित मूल्य की दुकानों ने प्रभावित परिवारों को राशन वितरित किया था।यह राशन पीओएस मशीन में दर्ज नहीं हुआ, जिससे स्टॉक में असमानता दिखाई दी। सेल्समैनों ने इस मामले में कई बार उच्च अधिकारियों को लिखित में अवगत कराया था कि बाढ़ राहत के दौरान वितरित किए गए राशन की भरपाई अभी तक नहीं हुई है। इसके बावजूद, अब उन्हीं पर गबन का आरोप लगाया जा रहा है। इसका सीधा मतलब यह है कि प्रशासन की लापरवाही और गलतियों की सजा सिर्फ छोटे कर्मचारियों को दी जा रही है, जबकि बड़े अधिकारी खुद को बचाने में लगे हैं।
फूड इंस्पेक्टर और अन्य अधिकारियों की जांच हो
यदि कोई उचित मूल्य की दुकान में हेरा-फेरी होती है, तो सबसे पहले संबंधित फूड इंस्पेक्टर की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। फूड इंस्पेक्टर के पिछले छह महीने के कार्यों की समीक्षा की जाए। जिन दुकानों में अनियमितता पाई गई, वहां के आवंटन आदेशों की जांच हो।
बिना स्टॉक मिलान के अनाज देने वाले अधिकारियों पर भी कार्रवाई हो।
नियमित स्टॉक ऑडिट और डिजिटल ट्रैकिंग
हर महीने सभी उचित मूल्य की दुकानों में स्टॉक की जांच की जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि किसी भी दुकान में अतिरिक्त स्टॉक नहीं दिख रहा है। बाढ़ आपदा के दौरान जिन – जिन उचित मूल्य की दुकानों से राशन वितरित किया गया था, उनकी पूरी जानकारी निकालकर उन्हें उचित स्टॉक प्रदान किया जाए।
कलेक्टर दिलीप कुमार यादव से अपेक्षाएं
कलेक्टर दिलीप कुमार यादव प्रशासनिक सख्ती के लिए जाने जाते हैं। लेकिन इस मामले में केवल सेल्समैनों पर कार्रवाई करना पर्याप्त नहीं है। फूड इंस्पेक्टर और अन्य अधिकारियों की जांच करवाई जाए।सभी एफआईआर की समीक्षा की जाए और असली दोषियों की पहचान हो। बिना स्टॉक मिलान के किए गए आवंटनों को पुनः जांचा जाए।भ्रष्टाचार में संलिप्त पाए जाने वाले फूड इंस्पेक्टरों को निलंबित किया जाए। अगर इन कदमों पर अमल किया गया, तो सार्वजनिक वितरण प्रणाली में पारदर्शिता आ सकेगी और भविष्य में इस तरह की अनियमितताओं को रोका जा सकेगा । ढीमरखेड़ा विकासखंड में उचित मूल्य की दुकानों में गड़बड़ी का मामला सिर्फ सेल्समैनों तक सीमित नहीं है। इस पूरे घोटाले में बड़े अधिकारियों की संलिप्तता से इनकार नहीं किया जा सकता। फूड इंस्पेक्टर और अन्य जिम्मेदार अधिकारियों की भूमिका की जांच आवश्यक है। यदि प्रशासन वास्तव में भ्रष्टाचार खत्म करना चाहता है, तो उसे केवल छोटे कर्मचारियों को सजा देने के बजाय असली गुनहगारों तक पहुंचना होगा। जब तक ऐसा नहीं होगा, तब तक सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार की उम्मीद नहीं की जा सकती।



