मध्यप्रदेश

कटनी जिले के ढीमरखेड़ा विकासखंड में पदस्थ फूड इंस्पेक्टर ब्रजेश जाटव द्वारा की गई अनेकों दुकानों जांच…,लेकिन जांच…जांच ही रह गई लक्ष्मी का वजन इतना कि जांच पड़ी सस्ते-बस्ते में…

कलयुग की कलम से सोनू त्रिपाठी की रिपोर्ट

कटनी/उमरियापान- शीर्षक पढ़कर दंग मत होना यह कहानी है फूड इंस्पेक्टर ब्रजेश जाटव की , फूड इंस्पेक्टर ब्रजेश जाटव के कार्यकाल के दौरान उचित मूल्य दुकानों की जांच में भ्रष्टाचार और कालाबाजारी की घटनाओं का खुलासा हुआ है। उनके द्वारा अनेकों दुकानों की जांच की गई, परंतु जांच के परिणामस्वरूप कोई ठोस कार्यवाही नहीं की गई। इसके विपरीत, कई रिपोर्टों के अनुसार, ब्रजेश जाटव ने अपनी जांच को महज दिखावे की कार्यवाही बना दिया और दुकानदारों से अवैध रूप से धन उगाही का आरोप है। यह आरोप लगाए जा रहे हैं कि जबसे ब्रजेश जाटव पदस्थ हुए हैं, तबसे उचित मूल्य की दुकानों के सेल्समैनों द्वारा कालाबाजारी और अनियमितताओं में बढ़ोतरी देखी गई है। रिपोर्टों के अनुसार, ब्रजेश जाटव खुलेआम सेल्समैनों से पैसा मांगते हैं, और जब सेल्समैन पैसा देने से इंकार करते हैं, तो वह उन दुकानों पर जांच शुरू कर देते हैं। इस प्रकार, जांच का उद्देश्य अनियमितताओं को उजागर करना नहीं, बल्कि रिश्वतखोरी का माध्यम बनता नजर आ रहा है।

भ्रष्टाचार का खेल

फूड इंस्पेक्टर का कार्य खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता और आपूर्ति की निगरानी करना होता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि गरीब और जरुरतमंद लोगों को सरकारी योजनाओं के तहत सही मात्रा में और उचित मूल्य पर खाद्यान्न उपलब्ध हो। परंतु जब निगरानी और जांचकर्ता ही भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाएं, तो पूरी प्रणाली कमजोर हो जाती है। ब्रजेश जाटव पर लगे आरोपों से यही प्रतीत होता है कि वह अपने पद का दुरुपयोग करके न केवल सिस्टम को कमजोर कर रहे हैं, बल्कि जनता के हक के खाद्यान्न की भी कालाबाजारी करवा रहे हैं।

लक्ष्मी के वजन ने किया भ्रष्टाचार को भारी

रिश्वतखोरी के आरोपों के चलते, ब्रजेश जाटव की जांचें जांच ही रह जाती हैं। जांच का कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आता क्योंकि लक्ष्मी का वजन इतना भारी हो जाता है कि फाइलें “सस्ते-बस्ते” में धरी रह जाती हैं। इसका मतलब यह है कि जैसे ही जांच शुरू होती है, दुकानदारों से मोटी रकम वसूली जाती है, और जांच की प्रक्रिया वहीं समाप्त हो जाती है। इससे जनता को मिलने वाली सुविधाओं पर सीधा असर पड़ता है, और कालाबाजारी को बढ़ावा मिलता है।

उचित मूल्य दुकानों की स्थिति

उचित मूल्य की दुकानों का उद्देश्य गरीब तबके के लोगों को सस्ते दरों पर आवश्यक खाद्य सामग्री उपलब्ध कराना है। लेकिन जब फूड इंस्पेक्टर जैसे अधिकारी, जिन पर इन दुकानों की निगरानी का जिम्मा है, खुद भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाते हैं, तो इसका सीधा नुकसान उन लोगों को होता है, जो इन दुकानों पर निर्भर होते हैं। ब्रजेश जाटव की जांच में यह पाया गया कि कई उचित मूल्य की दुकानों में कालाबाजारी हो रही है, और सेल्समैन खुलेआम अनाज की हेराफेरी कर रहे हैं। सरकारी राशन को बाजार में ऊंची कीमतों पर बेचकर भारी मुनाफा कमाया जा रहा है, जबकि गरीब जनता राशन से वंचित हो रही है।

भ्रष्टाचार का विस्तृत जाल

यह समस्या केवल ब्रजेश जाटव तक सीमित नहीं है। जब एक अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त होता है, तो पूरी प्रणाली में घूसखोरी और अनियमितताओं का एक विस्तृत जाल फैल जाता है। ऐसी स्थिति में यह भी संभव है कि जाटव के साथ अन्य अधिकारी, और यहां तक कि स्थानीय नेताओं का भी भ्रष्टाचार में हाथ हो। यह पूरी प्रणाली को खोखला बना देता है, और गरीब जनता को उनके अधिकारों से वंचित कर देता है।

उच्च अधिकारी नही दे रहे हैं ध्यान

जब फूड इंस्पेक्टर जैसे जिम्मेदार पद पर बैठे अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाते हैं, तो इसका सबसे बड़ा नुकसान आम जनता को उठाना पड़ता है। उचित मूल्य की दुकानों से राशन लेने वाली जनता को सही मात्रा में और उचित दरों पर अनाज नहीं मिल पाता। ऐसे में गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए जीवनयापन मुश्किल हो जाता है। यही नहीं, जब अधिकारी कालाबाजारी को बढ़ावा देते हैं, तो बाजार में अनाज की कीमतें बढ़ जाती हैं, जिससे सभी वर्गों को महंगाई का सामना करना पड़ता है।

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