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कटनी जिले के उमरियापान में संचालित ग्रेस मिशन प्राइवेट स्कूल में खुलेआम मनमानी जारी, नहीं है किसी का डर खुलेआम कमीशनखोरी जारी

कलयुग की कलम से सोनू त्रिपाठी की रिपोर्ट

उमरियापान- जिले के उमरियापान में संचालित ग्रेस मिशन प्राइवेट स्कूल की मनमानी दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है, कभी एडमीशन के नाम पर तो कभी कापी किताबों के नाम पर जमकर शोषण जारी है, हद तो यहां तक हो गई है कि प्राइवेट स्कूल संचालकों ने कापी किताब वहीं से खरीदना है जहां पर विद्यालय को जमकर कमीशन मिल रहा है, अगर गलती से किसी अभिभावक ने कापिया अलग से कम रेट पर बाहर से ले लिया तो प्रताड़ित व परेशान किया जाता है। विद्यालय संचालक बुक सेन्टर से मिलकर 50 से 60 प्रतिशत तक कमीशनखोरी कर रहे हैं। लेकिन फिर भी प्रशासन कोई ध्यान नहीं दे रहा है। मालूम हो कि इस सत्र में खुले स्कूलों की लूट का कार्यक्रम शुरू हो गया है। स्कूल वाले प्राइवेट प्रकाशकों की किताबें खरीदने के लिए अभिभावकों को मजबूर कर रहे हैं और अपने स्कूल के अंदर व अपनी बताई गई दुकान से ही किताब, कॉपी, स्टेशनरी, यूनिफार्म आदि खरीदने के लिए अभिभावकों को जमकर लूट रहे हैं। सरकार के आदेश को दरकिनार करके सरकार के नियमों को धत्ता दिया जा रहा हैं । कटनी जिले में अभी तक स्कूलों की इस मनमानी को रोकने के लिए कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया गया है और न ही स्कूलों में जाकर बच्चों के बस्ते का वजन तौल किया जा रहा है। एक तो नए शिक्षा सत्र में स्कूल फीस में काफी बढ़ोतरी कर दी है, इससे अभिभावक खासे परेशान हैं अब स्कूल संचालकों द्वारा एनसीईआरटी की किताबों की जगह प्राइवेट पब्लिशर्स की महंगी किताबों को खरीदवाने से उनकी परेशानी को और बढ़ा दिया गया है। विदित हैं कि सूत्र बताते है कि जो कॉपी बाजार में 20 – 25 रुपये की मिल रही है स्कूल वाले उसके कवर पेज पर अपने स्कूल का नाम लिखकर उसे 40 – 50 रुपये में बेच रहे हैं। नए छात्र पुराने छात्रों से किताब लेकर पढ़ाई ना कर सकें इसके लिए पुरानी किताबों के एक दो पाठ्यक्रम को बदल दिया गया है या आगे पीछे कर दिया है। स्कूल संचालक लूटने का हर प्रकार का हथकंडा अपना रहे हैं। स्कूल संचालक अपने स्कूल में नियमानुसार एनसीईआरटी की किताबें ना लगाकर कमीशन खाने के चक्कर में प्राइवेट प्रकाशकों की महंगी व मोटी किताबें लगा रहे हैं जिन पर मनमाने ढंग से दाम को प्रिंट किया जाता है। अपने स्कूल के अंदर खुली दुकानों या बाहर अपनी बताई गई दुकानों से ही खरीदने का दबाव डाल रहे हैं। जिन किताबों की कोई जरूरत नहीं है उन्हें भी खरीदने के लिए कहा जा रहा है।औचित्यहीन किताबें खरीदवाकर बच्चों के मासूम कंधों पर बस्ते का बोझ बढ़ाया जा रहा है। नर्सरी से लेकर कक्षा 12 तक के बच्चों के बस्ते का वजन तय कर दिया गया है उसके बावजूद नियमों को ताक में रखकर छात्रों के मासूम कंधों पर भारी बस्ते का बोझ लादा जा रहा है। ऐसा करके उनके स्वास्थ्य से खिलवाड़ किया जा रहा है। इस पर तुरंत कार्यवाही होनी चाहिए। अब देखना यह होगा कि क्या प्राइवेट स्कूलों के इस कमीशनखोरी के जाल को जिला प्रशासन तोड़ पायेगा या इन भ्रष्टाचारियों के आगे नतमस्तक नजर आयेगा।

अबोध बालक विद्यालय में कदम रखने से पूर्व हो जाते हैं भ्रष्टाचार का शिकार

जिले में जैसे ही बच्चे शिक्षित होने के लिए स्कूल में दाखिला कराने विद्यालय पहुंचते हैं वैसे ही स्कूल संचालकों के भ्रष्टाचार का शिकार हो जाते हैं। जब बचपन से ही भ्रष्टाचार जड़ित शिक्षा उनको मिलेगी तो जीरो टॉलरेंस नीति कैसे प्रदेश में प्रभावी हो सकती है? अपने आप में यह सवालिया निशान जनता के दिलों दिमाग में घर कर रहा है।

सर्व शिक्षा अभियान सिर्फ कागजों तक सीमित

एक तरफ सरकार सर्व शिक्षा अभियान चला रही है और दूसरी तरफ शिक्षा का अधिकार कानून भी लागू किया गया है लेकिन धरातल पर इसका पालन नहीं किया जा रहा है, निजी स्कूल अपनी मनमर्जी से वसूली दर वसूली का खेल पूरे साल चलाते हैं लेकिन जिम्मेदार सब कुछ देखकर अपनी आंखे बंद कर लेते हैं और मौन स्वीकृति देकर भ्रष्टाचार को प्रत्यक्ष रूप से बढ़ावा देते हैं। निजी स्कूलों में किताब व ड्रेस की आड़ में लूट, कॉपी पर स्कूल का नाम लिखने पर होती है डेढ़ गुना बढ़ोत्तरी जिले के सभी निजी स्कूलों ने एक अप्रैल से शुरू हो गये हैं, नए शिक्षा सत्र में स्कूल फीस में काफी बढ़ोतरी करने के साथ ही एनसीईआरटी की जगह प्राइवेट पब्लिशर्स की महंगी किताबों के कारण अभिभावकों की दिक्कत बढ़ गई है।

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