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चर्चित होने के लिए

कलयुग की कलम

शातिर शत्रु

शातिर मित्र

शातिराने अंदाज में

खिंचवाते हो चित्र ।

करके अपलोड

मोबाइल में अपने

दुनिया को दिखाते हो

झूठे सपने ।

पता नहीं क्या क्या

करते हो वायरल

नासमझी में सीने से

गिरा के आंचल ।

बदन पे कपड़ों की चिंदी लटकाए

कैसी दुकान लेकर तुम आए ?

भूखे गिद्धों की लार टपकती

देख दृश्य नहीं आंख झपकती ।

लाइक और व्यूवर्स की

उंगलियों की हरकत

जब बढ़ जाती तब क्यूं

लगता हो रही है बरकत ।

ये सब आज देखेंगे

लोग कल भूल जाएंगे

क्यों न कुछ ऐसा भला काम करें

जिसे लोग वर्षों तक भुला न पाएंगे

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डॉ. मन्तोष भट्टाचार्य

मदर टेरेसा नगर , जबलपुर

( म.प्र )

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