UNCATEGORIZED

जाति जनक होने पर शर्म नहीं गर्व करें ब्राम्हण

कलयुग की कलम

जाति जनक होने पर शर्म नहीं गर्व करें ब्राम्हण

रोजगार का जाति मूलक एकाधिकार दिया पुत्रों को

स्वमेव स्वीकार किया भिक्षाटन

अपने शत्रुओं को भी विजय श्री का आशीर्वाद देता है ब्राम्हण

जब ब्राम्हण अपने बुध्दि विवेक को किसी राजनीतिक पार्टी के पद तले रखकर चारण बन जायेगा तो वही कहा जायेगा जैसा संगठन विशेष के मुखिया ने कहा है।

बुजुर्ग हो चुके संगठन विशेष के मुखिया की मजबूरी है कि वह अपने अस्तित्व को बनाये और बचाये रखने के लिए अपने सांड़ हो चुके पुत्र की राजनीतिक गद्दी बचाये रखने के लिए समाज की सबसे कमजोर हो चुकी कौम पर हमला करे। उनकी नजर में वर्तमान में ब्राम्हण ही सबसे साफ्ट टारगेट नजर आता है।

जाति वर्ण व्यवस्था का जनक शास्त्र सम्मत है फिर भी विधर्मियों द्वारा अनेक वर्षों से अपनी कुंठित मानसिकता की रोटियां सेंकने के लिए मनुवाद पर हमले किए जा रहे हैं। ऐसे विधर्मियों की लानत मनालत भी उनकी ब्रांडिंग ही होगी जिससे बचना चाहिए । उसकी जगह इनका सामाजिक राजनैतिक बहिष्कार करने की जरूरत है।

वर्ण व्यवस्था ब्रम्हा रचित अथवा ब्राम्हण रचित है इस पर सफाई देने की जरूरत नहीं है ब्राम्हणों को।

चलिए एक बार अक्ल से सिफर लोगों की बात को ही सही मान लिया जाय कि ब्राम्हण जाति वर्ण व्यवस्था का जनक है। तो जनक होने के नाते उसने अपने जायों को जीवन यापन के लिए जातिपरक रोजगार का एकाधिकार दिया है।

ब्राम्हणों द्वारा बनाये गये जाति वर्णित रोजगार व्यवस्था पर तात्कालिक जाति पुरोधाओं ने कभी एतराज नहीं जताया जिस तरह से आज वोट बैंक की खातिर ब्राम्हणों पर तोहमत लगाई जा रही है।

अर्थ मूलित व्यवसाय अन्य वर्णों को सौंप कर खुद के लिए भिक्षाटन चुना था ब्राम्हणों ने। जिसका दुष्परिणाम आज की सडांध मारती राजनीतिक व्यवस्था में सबसे ज्यादा ब्राम्हण ही भुगत रहा है। ब्राम्हणों के व्यवसाय को अन्य वर्णों द्वारा कब्जाया जा रहा है। वर्तमान में अल्पसंख्यक बनकर रह गया है ब्राम्हण।

विचित्र किन्तु सत्य यही नजर आ रहा है कि अपनी दुर्दशा के लिए स्वमेव जिम्मेदार है ब्राम्हण।

 

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता

स्वतंत्र पत्रकार

Related Articles

error: Content is protected !!
Close