मध्यप्रदेश

हम पत्रकारों के नेतृत्वकर्ता कौन है?

 ये चापलूसी कर रहे हैं, दलाली कर रहे हैं या पत्रकारिता कर रहे हैं?

पंडित प्रदीप मोदी

(साहित्यकार/स्वतंत्र पत्रकार)

9009597101

इन दिनों आम जनता के बीच हिन्दी पत्रकारिता बड़ी ही हास्यास्पद स्थिति में आ खड़ी हुई हैं। कमोबेश यह स्थिति सभी जगह बनी हुई है। एक अखबार पर, एक पत्रकार पर भ्रष्ट व्यवस्था हमलावर होती है तो पत्रकारों के नेतृत्वकर्ता और समूचा पत्रकार जगत तमाशबीन बनकर ताली बजाने के अलावा कुछ नहीं करता,पता नहीं ऐसी स्थिति पर पत्रकारों के नेतृत्वकर्ताओं को शर्म क्यों नहीं आती ? सवाल तो उठेगा कि आखिर हम पत्रकारों के नेतृत्वकर्ता कौन है? ये व्यवस्था के पांव में लोट लगाकर दलाली रहे हैं, चापलूसी कर रहे हैं,या पत्रकारिता कर रहे हैं?आए दिन सच्चे पत्रकारों को दबाने और कुचलने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन पत्रकार समाज संगठित होकर प्रतिकार तक नहीं कर पा रहा है, क्यों?यह क्यों..? चुगली कर रहा है कि पत्रकार समाज,शासन-प्रशासन के पट्टाधारी दलालों को अपना पदाधिकारी चुनकर नेतृत्व सौंप देता है और ये पट्टाधारी दलाल व्यवस्था के साधन बनकर अपने ही समाज के सदस्यों को लुटने-पिटने को अकेला छोड़ देते हैं।कहा गया है अकेली कुल्हाड़ी कभी वृक्ष नहीं काट सकती,जब तक कि उसमें वृक्ष की लकड़ी का हत्था ना लग जाए तो क्या प्रेस जगत के नेतृत्वकर्ता लकड़ी का हत्था बनकर पत्रकारिता के वृक्ष को काटने का अक्षम्य अपराध कर रहे हैं? वैसे तो चारों ओर भ्रष्ट व्यवस्था द्वारा निर्भिक निष्पक्ष पत्रकारों को कुचलने का दमन चक्र चल रहा है,लेकिन इंदौर में दो अखबारों पर हुए हमलों ने पत्रकार जगत के नेतृत्वकर्ताओं की पोल खोल कर रख दी।संझा लोकस्वामी और खुलासा फर्स्ट, ये दो अखबार शासन-प्रशासन के गलियारों में चलने वाली गतिविधियों को जनता के बीच लाने के लिए पहचाने जाते हैं।संझा लोकस्वामी को दो साल पहले तबाह कर दिया गया और अब खुलासा फर्स्ट को तबाह करने के लिए भ्रष्ट अधिकारियों ने कमर कसी है।लोकस्वामी को बर्बाद किया,तब भी प्रेस जगत के नेतृत्वकर्ता मुंह में दही जमाकर बैठे रहे और अब भ्रष्ट अधिकारी खुलासा फर्स्ट को बर्बाद करने की मंशा जाहिर कर रहे है,तब भी प्रेस जगत के नेतृत्वकर्ता तमाशा देख रहे हैं,ताली बजा रहे हैं। प्रेस जगत के नेतृत्वकर्ता,पत्रकारों के, प्रेस प्रतिष्ठानों के संरक्षण एवं समर्थन में खड़े नहीं हो पा रहे हैं तो कहना होगा ये पत्रकारिता नहीं कर रहे हैं, दलाली कर हैं तथा पागल हाथी बनकर घर की ही फौज मारने का काम कर रहे हैं। पत्रकार जगत ने संगठित होकर अपने नेतृत्वकर्ताओं से सवाल जरूर करना चाहिए कि वे पत्रकारिता कर रहे हैं या भ्रष्ट अधिकारियों की दलाली कर रहे हैं ? पत्रकारों के नेतृत्वकर्ता अपने ही पत्रकार साथियों के पक्ष में आकर खड़े नहीं हो पा रहे हैं तो ये समाज के पक्ष में, समाज में रहने वाली जनता के पक्ष में कैसे खड़े रहते होंगे? खुलासा फर्स्ट पर हुए हमले के बाद भी प्रेस जगत के नेतृत्वकर्ताओं का मौनी बाबा बने रहना, बता गया पत्रकारों के नेतृत्वकर्ता पत्रकारिता नहीं कर रहे हैं, अपितु भ्रष्ट अधिकारियों की दलाली कर रहे हैं।

 

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